बकवास सा सर्कस निकली रोहित शेट्टी की “सर्कस”

इस शुक्रवार रोहित शेट्टी की फिल्म “सर्कस” रिलीज हुई, जिसका इंतजार बड़ी बेसब्री से किया जा रहा था। सिक्सटीज़ के बैकग्राउंड में बनी यह फिल्म न तो रोहित की गोलमाल सिरीज की तरह है और न ही कॉप सिरीज की तरह। यह फिल्म दो पुरानी फिल्मों को कॉपी करने की असफल कोशिश है। पर इस फिल्म को देखकर निराशा ही हाथ लगती है क्यों न तो यह वैल्यू फॉर मनी निकली और न ही वैल्यू फॉऱ टाइम।

बकवास सा सर्कस निकली रोहित शेट्टी की “सर्कस”
cirkus movie review

फिल्म न हंसा पाई और न ठीक से रुला पाई, दिमाग का दही कर दिया

फिल्म रिव्यू. एक्सपोज लाइव न्यूज नेटवर्क।

1968 में किशोर कुमार अभिनीत, बिमल राय की फिल्म “दो दूनी चार” को देखना ऐसा लगता है, मानो किसी म्यूजिकल कंसर्न में बैठकर मृदंग की ताल पर वीणा की मधुर झंकार सुनी जा रही हो। इसके बाद इसी प्लॉट पर गुलजार 1982 में संजीव कुमार की अभिनीत “अंगूर” फिल्म लेकर आए थे। “दो दूनी चार” में किशोर कुमार और असित सेन का अपना ही रंग नजर आया तो “अंगूर” भी शानदार फिल्म निकली, जो संजीव कुमार और देवेन वर्मा के उच्चकोटि के अभिनय से सजी हुई थी।

रोहित शेट्टी इसी प्लॉट या थीम पर अपनी फिल्म “सर्कस” लेकर आए हैं, पर “सर्कस” वास्तव में सर्कस ही निकली। "दो दूनी चार" और "अंगूर" का ऐसा जादू है कि आज भी ऐसा लगता है कि मानो मृदंग की ताल या तबले की थाप कहीं गूंज रही हो, ऐसे में अचानक से “सर्कस” इस तरह सामने आती है कि जैसे कोई टीन-कनस्तर पीटकर म्यूजिकल कंसर्ट करने की कोशिश कर रहा हो।

प्लॉट –

कहानी वही है जुड़वा भाईयों के दो जोड़े हैं, दोनों अलग-अलग शहरों में रहते हैं। अचानक से एक जोड़ा, उस शहर में पहुंच जाता, जहां दूसरा जोड़ा रहता है और तब कॉमेडिकल सीन क्रियेट होते हैं। "दो दूनी चार" और "अंगूर" की मूल कहानी गुलजार ने लिखी थी और “सर्कस” को लिखने वाले कोई फरहाद सामजी, संचित बेंद्रे और विधि घोडगांवकर हैं। कहानी या स्क्रिप्ट ही जब ठीक ढंग से न लिखी गई तो फिल्म कैसी बनेगी, समझा जा सकता है।

डायरेक्शन-

रोहित शेट्टी लगता है कि अब चुक गए हैं। यानी वे अपना बेस्ट दे चुके हैं, गोलमाल की पहली व दूसरी सिरीज के रूप में। यही कारण है कि गोलमाल सिरीज की आखिरी फिल्म भी कोई खास धमाल नहीं मचा पाई। कॉप सिरीज में वे जरूर दर्शकों को कुछ हद तक बांधने में सफल हुए, पर वह भी इन दोनों फिल्मों की ऊंची स्टार कास्ट के कारण। “सर्कस” में भी ऊंची स्टार कास्ट तो रोहित ले आए, पर इसे प्रेंजेटेबल नहीं बना पाए। ऐसा लगता है कि रोहित अब केवल टाइम पास टाइप काम करने लगे हों और वैसी ही फिल्में ही बनाने से ज्यादा कुछ और करने का उनका इरादा भी नहीं है। सिक्टीज़ के बैकग्राउंड के बाद भी स्क्रीन पर इतने रंग फेंक दिए कि परदा किसी बदरंग दीवार सी लगने लगता है।

एक्टिंग-

स्टार कास्ट के दम पर फिल्म चलाने की कोशिश के बीच एक्टिंग की बात ही करें तो बेहतर है। रनवीर सिंह अपने सिगनेचर अवतार में ही नजर आए, यानी उछलकूद टाइप। वरुण शर्मा ने "चूचे" की इमेज से निकलने की कोशिश की तो है, पर यहां ह्यूमर नहीं पैदा कर पाए। जैकलीन के लिए छोटे कपड़े ही उसकी एक्टिंग है, फिल्म किसी भी काल की हो, छोटे कपड़े पहनना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। पूजा हेगड़े के लिए करने को ज्यादा कुछ था नहीं। कुल जमा संजय मिश्रा ने जरूर थोड़ा दम मारा। बाकी स्टार कास्ट पूरी की पूरी गोलमाल की उठा ली गई, अजय देवगन को छोड़कर, जैसे मुकेश तिवारी, जॉनी लीवर, वर्जेश, सिद्धार्थ, अश्विनी, जिनके दम पर फिल्म में कुछ जगह हास्य पैदा करने कोशिश की गई है, पर इन सबके होने के बाद भी “सर्कस” में एक बेढब और बकवास सा सर्कस ही चलता नजर आता है।

क्यों देखें –

फिल्म देखना या न देखना तो आपकी मर्जी पर निर्भर है, पर हां इतना जरूर कहेंगे कि अगर कॉमेडी फिल्म देखने की इच्छा से जा रहे हैं तो निराश होना पड़ेगा और अगर रोहित शेट्टी की सिग्नेचर स्टाइल की फिल्म देखने के तमन्नाई हैं, तो और ज्यादा निराशा होगी। फिल्म न तो ह्यूमर पैदा कर पाई और न ही नजरों को बांध पाई। अरे पहला फनी सीन ही आधे घंटे बाद दिखा, वह भी बेढब सा। पूरी फिल्म केवल एक ही ह्यूमर के दम पर टिकी है, वह है रनवीर के जरिए इलेक्ट्रिक शॉक लगने का।

कास्ट एंड रिटर्न –

फिल्म का बजट था, 115 करोड़ रुपए, पहले दिन यानी शुक्रवार को फिल्म का कलेक्शन रहा, मात्र 6.25 करोड़ रुपए।

रैटिंग – वैल्यू फॉर मनी – 3.5/10 स्टार, वैल्यू फॉर टाइम – 3/10 स्टार

आईएमडीबी रैटिंग – 5.9/10 स्टार

क्रू एंड कास्ट के लिए विकीपीडिया के लिए यहां क्लिक करके देख सकते हैं –

https://en.wikipedia.org/wiki/Cirkus_(film)

या आईएमडीबी के लिए यहां क्लिक करके देख सकते हैं –

https://www.imdb.com/title/tt11112808/?ref_=fn_al_tt_1