“आदिपुरुष” निहायत ही घटिया, वाहियात और वीभत्स फिल्म
`आदिपुरुष’ इस फिल्म को लेकर ओम राउत और प्रभाष का प्रचार-प्रसार तंत्र जी-जान से जुटा है कि फिल्म हिट हो जाए। इसके लिए दोनों दुनियाभर के प्रोपोगंडा भी कर रहे हैं, लेकिन फिल्म इतनी वाहियात और बेहूदा है कि एक बारगी तो रोना आता है और फिर मन गुस्से से भर उठता है कि आखिर हिंदु इतने सॉफ्ट टार्गेट क्यों हैं कि जिसकी जो मर्जी वह उन पर थोप रहा है, उनके धार्मिक चरित्रों की बधिया उखेड़ रहा है। जो इस फिल्म की तारीफ कर रहे हैं, उन हिंदुओं को भी अपना डीएनए चेक करवा लेना चाहिए कि किस स्तर पर मिलावट हो गई है।
रामायण का इतना बेहूदा चित्रण, ओम राउत और प्रभाष से यह उम्मीद तो न थी
हिंदू होने के बाद भी अगर आ रही है फिल्म पसंद तो जांच कर लें अपने डीएनए की
फिल्म रिव्यू. एक्सपोज लाइव न्यूज नेटवर्क।
ये सब लिखते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा, दिमाग कह रहा है कि पत्रकार को निष्पक्ष होना चाहिए, लेकिन दिल से यही आवाज आती है कि सारी निष्पक्षता के बाद भी हिंदु हूं और इस बार वार हिंदुत्व की आत्मा पर हुआ है, श्रीराम पर हुआ है। कंटेंट में कल्पनाशीलता का सहारा लेकर आप कुछ भी परोस देंगे। अभिव्यक्ति की ये कैसी स्वतंत्रता है।
फिल्म रामायण का चित्रण कम और वीडियो गेम ज्यादा लगती है। कैरेक्टर भी एनिमेशन से वैसे ही बनाए गए। रावण का कैरेक्टर भी एनिमेटेड या एआई के जरिए माडिफाइ किया हुआ लगता है। सुग्रीव जैसे वीर वानर को गोरिल्ला के रूप में दिखाकर क्या माइंड सेट करना चाहते हैं, समझ से परे है। इस फिल्म को देखकर केवल रौद्र रस, भयानक रस, वीभत्स रस का ही मन में संचार होता है।
प्लॉट –
फिल्म रामायण पर आधारित बताई जा रही है, लेकिन इसमें मुख्य रूप से लंकाकांड का चित्रण है। सीता हरण से लेकर रावण के वध तक की कहानी पर फिल्म को बनाया गया है, लेकिन कहानी को इस कदर तोड़ा-मरोड़ा गया है कि नई पीढ़ी ने अगर रामायण नहीं पढ़ी हो तो उनके दिमाग में राम के चरित्र को लेकर कई भ्रांतियां भर जाएंगी।
डायरेक्शन- (ओम राउत)
ओम, तुम्हारे डायरेक्शन और रामायण के प्रेजेंटेशन के इस बेहूदा तरीके को लेकर मन के किसी कोने में दबी शुद्ध देशी गालियां बाहर आने के मचल रही हैं, लेकिन मार्यादा के कारण व्यक्त नहीं कर पा रहा हूं। फिर भी पाठक उनकी कल्पना अपने मन में कर सकते हैं। हद है पूरी फिल्म में राम, सीता और लक्ष्मण को कहीं भी इस नाम से संबोधित नहीं किया जाता। राघव, जानकी और शेष कहते हैं। राम कहने में इन्हें एलर्जी है और फिल्म बना डाली रामायण पर। जो लंका सोने की कही जाती है, उसका सेट ऐसा लगाया जैसे नरक का चित्रण किया जा रहा हो, काले पत्थरों की। किसी ग्रंथ में लका का चित्रण ऐसा मिला तुम्हें मि. ओम राउत। हर चरित्र की छीछालेदारी की, टपोरी भाषा का खुलकर प्रयोग करवाया गया, उन चरित्रों के द्वारा, जिन्हें हम आज भी दिल से भगवान मानते हैं। नहीं ओम तुमने फिल्म नहीं बनाई, बल्कि जानबूझकर हिंदु आस्था पर चोट की है, इसका दंड दिया जाना आवश्यक है।
एक्टिंग- (स्टार कास्ट : प्रभाष, कृति सैनन, सैफ अली खान, सनी सिंह, देवदत्त नागे)
प्रभाष किसी एंगल से राम लग रहे थे, समझ नहीं आया। पूरी फिल्म में ऐसा नजर आया, जैसे भांग का गोला चढ़ाकर एक्टिंग करने आ गया हो। चढ़ी हुई आंखें, बाडी लैंग्वेज पर कंट्रोल नहीं। कृति को सीता मैय्या बनाने की जगह किसी अप्सरा का लुक देने की पूरी कोशिश की गई। सैफ ने वीडियो गेम के कैरेक्टर की तरह अपना काम करके छुट्टी पा ली और सनी के लिए कुछ था ही नहीं करने को।
क्यों देखें –
एक बार फिर कहूंगा कि अपने अंतर्मन को पीड़ा देना हो, क्रोध से उबलना हो तो ही इस फिल्म को देखने जाना, यदि हिंदु हैं तो और यदि हिंदु और उनकी आस्था की छीछालेदारी में मजा आता है तो यह फिल्म आपके लिए एकदम परफेक्ट है।
कास्ट एंड रिटर्न –
फिल्म का बजट 700 करोड़ रुपए है और पहले दिन का कलेक्शन 35 करोड़ रहा है।