"पिले ओढ़ने क्या ओढ़ना रे ,धुप पड़े उड़ जाए ,ग....द्दार की क्या दोस्ती रे भीड़ पड़े भग जाए"
"स्वार्थ के लिए संगत करि "--------" की और धरम को अपने लिया घटाए" ,(यह लेख आल्हा खंड में लिखा हुआ है,और जिस प्रसंग में लिखा हे वही हालात बने हुए हैं ) आज दोनों बड़े राजनैतिक दलों के लिए आत्मचिंतन वक्त्त की मांग बन चुकी हे , एक दूसरे में शारीरिक विलय तो हो रहा है,पर आत्मा आज भी अलग अलग हे ! घटनाक्रम माँ अहिल्या की नगरी इंदौर का है जिसमें कांग्रेस के बम का बीजेपी में आगमन मानव बम की तरह प्रतीत हो रहा है !
द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नटवर्क इंदौर
हालिया शहर में हुए बम काण्ड के बाद प्रतिक्रियाओं का दौर थम ही नहीं रहा ,जहाँ जनता तो लगातार अलग अलग प्रतिक्रिया दे रही हैं , ज़मीन और मास्टर प्लान के भय से पीड़ित किसानों के एक सोशल मीडिया ग्रुप पर यह प्रतिक्रिया आ रहीं है जो शब्दश: है !
"इस चुनाव में बीजेपी के परंपरागत वोटर का धर्म संकट कांग्रेस के उम्मीदवार के नहीं होने से ख़त्म हो गया है । अतः ऐसे किसान वोटर जिनकी जमीनें 140 किलोमीटर रिंग रोड़ में जा रहीं है और बची हुई जमीनें 100 गावों के मास्टर प्लान में शामिल कर नगर निगम सीमा वहां तक करने की तैयारी में हे ! निकट भविष्य में बची जमीनें ख़त्म / अथवा विवादित करने की ख़बर भी सभी किसान लगातार सुन रहें है ! ज़मीन बची है तब तक रोजडे की समस्या बढ़ती ही जा रहीं हैं जिसका हल करने की कोशिश आज तक नहीं हुईं । इसलिए इस बार सभी किसानों को सेवफल पर वोट देकर किसानों के संगठित होने की सूचना सरकार तक पहुंचा देनी चाहिए। जय जय श्री सीताराम जी"!
आम जनता और बीजेपी के परंपरागत वोटर भी पहली बार विचलित दिख रहें है और साथ में बीजेपी के वरिष्ठ नेता भी इस गिनती में शामिल होते जा रहे हैं ! जहाँ शहर से 8 बार सांसद रही ताई भी कह कह चुकी हैं की यह भाजपा की निति के विपरीत हे ,वहीँ अब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने बम को "खोटा सिक्का" बोल कर सत्य सामने ला दिया है क्योंकि खोटे सिक्के चलन में नहीं रहते हुवे सिर्फ़ संग्रहण तक सीमित रहते है ! भाजपा का एक तबका जहाँ इसे अपनी जीत में गिन रहा हे वहीँ वरिष्ठ राजनेता इसे नीति के विपरीत करार दे रहे हैं ! क्योंकि संभवत भारत के इतिहास की यह पहली घटना होगी जिसमें सुनिश्चित जीत पर कालिख लगी हों क्योंकि इसमें काल से पूर्व घटना को घटित करवाया गया और चीर विरोधी पार्टी को बीजेपी की मुख्य धारा से सीधे जोड़ दिया गया हे ।
पुरे देश में हो रहे लगातार दलबदल को अब जनता सहन नहीं कर पा रही ,एक दल से दूसरे और दूसरे से पहले की तरफ राजनेताओं का पलायन अब जनता को सुहाता नज़र नहीं आ रहा ! सिर्फ जनता ही नहीं अब वरिष्ठ नेता भी इस नीति के विरोध में अपने स्वर मुखर करने लगे हैं ! दलबदल भी कोई और नहीं वे कर रहें जिन्होंने दशकों तक एक दल के झंडे तले अपना राजनैतिक रुतबा कायम कर लिया ! अचानक से उन्हें दूसरे दल की नीतियों में आखिर ऐसा क्या दिखा गया की गाली देते देते शहद का स्वाद चख लिया ,ये सवाल अब सभी के मन में उठना लाज़मी भी हे ! दलबदल किस लालच से या किसी मजबूरी से ? और अगर दोनों ही हैं तो जनता सवाल तो करेगी ,करना भी चाहिए ! पार्टियों की अपनी नीतियां होती हैं और उन्ही नीतियों के आधार पर मतदाता अपना झुकाव किसी दल की तरफ करता हे ,उसे किसी व्यक्ति विशेष से कोई फर्क नहीं पड़ता ,लेकिन राजनैतिक दल जब नीतियों के विपरीत चले जाएँ तो इसे स्वस्थ लोकतंत्र भी नहीं कहा जा सकता ! नीति को छोड़ आज हम जनमत की तरफ बढ़ रहे हे जो श्री राम की कार्यशैली कभी भी नहीं रहीं , कहीं यह हमारे पतन की आधारशिला तो नही?
किसी लालच के चलते नीतियों से समझौता करना क्या जायज़ हे ?
जिस राम को आज हम अपना आरध्य मान रहे हैं,पूज रहे हैं ,अपने सारे बिगड़े काम राम नाम लेकर आज सिद्ध करवा रहे हैं ! क्या उनकी नीति और उनके संस्कारों का अनुसरण करना हमारा कर्त्वय नहीं ,क्या ऐसा जनमत जो आपकी रीति नीति का कभी नहीं रहा जिसका न ही विधि अनुसार शोधन हुआ हो,उस जनमत के लिए अपनी नीतियों ,संस्कारों से समझौता करना उचित हे ? राम भी तो नीतियों के साथ रहे और वनवास तक भोग लिया ,जनमत तो उनके ही साथ था जो उन्हीं के राज्य का था। लेकिन श्री राम भी निति से बंधे रहें। कहते है ,जिस रिश्ते की शुरआत स्वार्थ से होती हे ,वह ख़तम भी स्वार्थ पर ही होता हे !