धर्म क्या हे ?
युवा संत परम पूज्य ( आचार्य) पंडित श्री सतीश जी मिश्रा ने कहा हम क्यों धर्म को अपनाते है? क्या धर्म को अपनाना जरूरी है? क्या धर्म के बिना जीवन नहीं?
द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर
हम अकसर लोगों को कहते सुनते हे हम हिन्दु हैं , हम मुस्लिम है तो कोई कहता है हम जैन है कोई क्रिस्चन कोई सिख है । पता नहीं कितने धर्म है पर कौन सा धर्म बङा है? ये सवाल कभी ना कभी हमारे आपके सभी के मन में उठता है, पर हमें इसका जवाब ना ही मिलता और ना समझ आता है । सभी अपने-अपने धर्म को बङा और दूसरे धर्म से ऊँचा समझते है पर कोई ये नहीं बताता धर्म है क्या? हम क्यों धर्म को अपनाते है? क्या धर्म को अपनाना जरूरी है? क्या धर्म के बिना जीवन नहीं?
युवा संत परम पूज्य ( आचार्य) पंडित श्री सतीश जी मिश्रा
कितने सारे सवाल हमारे मन में एक साथ आते है पर हमें जवाब किसी से नहीं मिलता, अगर तथाकथित ज्ञानी लोगों से इसका जवाब पाना चाहते है तो सब का जवाब एक ही मिलता है, सब का मालिक एक है , एक ईश्वर है, एक खुदा है , एक गाॅड है। अब सवाल मेरे मन का ये है जब सब एक है तो धर्म इतने सारे कैसे हो गाये और हर धर्म के संचालक भी अलग -अलग हो गये। इतना सब जानने के बाद भी सवाल वहीं है
धर्म क्या हैं?
धर्म, धर्म का शाब्दिक अर्थ है धारण करना।
इसके आधार पर आप जो धारण करते हैं वो धर्म है, अगर इस बात को सरल शब्दों में कहा जाये तो अपका व्यवहार, आपका कर्म ही आपक धर्म है। आप कैसा व्यवहार करते है आप कैसा कर्म करते है आप जैसा करेंगे वैसा ही आपका धर्म होगा अगर आप अच्छा करते है तो आप अपने धर्म पर है।
अब सवाल उठता है अच्छा क्या करते है?
हम आम बोलचाल में जिन्हें धर्म कहते है उनमें से धर्म कोई भी सभी धर्म हमें समान बात सिखाते है और वो बाते क्या हैं!
सबका मालिक एक है जैसे सूरज, चांद धरती एक है ऐसे ही सबका मालिक एक है बस हम सभी व्यक्ति अपनी भाषा के अनुरूप उन्हें अलग -अलग नामों से जानते हैं ।
जैसे हवा और पानी को पकङा नही जा सकता, बांटा नहीं जा सकता ऐसे ही इस संसार के रचनाकार को बांटा नहीं जा सकता वो सबके लिए समाना है।
सभी धर्मों का मानना हैं इंसानियत से बङा कोई धर्म नहीं अगर एक इंसान के अंदर इंसानियत नहीं तो किसी भी धर्म का हो, वो अपने धर्म पर कुछ भी करने को तैयार हो पर वह कहलाता अधर्मी है।
वास्तविक धर्म भाषा, रंग ,रूप ,स्थान , जन्म से तय नहीं होता है वो हमारे कर्मों से तय होता है।
अब सवाल है क्या धर्म के बिना जीवन सम्भव हैं? नहीं वास्तविक धर्म के बिना जीवन सम्भव नहीं है।
क्या है वास्तविक धर्म?
जो हमें मानव से मानव के रिश्ते का ज्ञान दे ।
सही और गलत का भेद बताऐ ।
सिर्फ जन्म से हमार धर्म नहीं बनता इसका ज्ञान हमें सिखलाये ।
मंदिर -मस्जिद के डर से ना बांधे ।
ज्ञान को सर्वोपरि रखे।
जिसमें तर्क करने की क्षमता, समय के अनुसार बदलाव करने की क्षमता हो वो धर्म है ।
जो परम्परा के आदर्शों पर चल कर समय के साथ आधुनिक हो जाये ,पुरानी रह कर परम्परा में जीवीत रहे ।
जो एकाकार का ज्ञान हमें दे वही वास्तविक रूप में धर्म है ।
क्या अलग- अलग रूपों में धर्म को देखना गलत है?
नहीं आप धर्म को किसी भी रूप में जाने, चाहे आप हिन्दु बनकर माने या मुस्लिम बनकर माने, या सिख और ईसाई बनकर माने धर्म के सभी प्रकार हमें वास्तविक धर्म का ही ज्ञान देते है। सभी प्रकार के धर्मों में समान ज्ञान दिया जाता है बस भाषा का ही अंतर होता है।
भाषा के अंतर से ना वास्तविक धर्म बदलता है और ना ही ज्ञान।
आज धर्म को लेकर लोगों के विचार इतने उग्र क्यों है?
इसका कारण भी हम में से ही तत्थाकथित धर्म ज्ञानी है जिन्होनें धर्म को व्यापार बना लिया है और जन्म के साथ हमें किस धर्म का नाम मिलेगा ये तय कर दिया है। इन लोगों ने भगवान के लिए मन्दिर ,अलहा के लिए मस्जिद और ईसा के लिए चर्च फिक्स कर दिया है। इन लोगों ने धर्म को बाजारों में बिकने वाला सजावटी समान बना कर रख दिया है जो आज सिर्फ हमारे शरीर को सजा रहा है, जिसके अंदर हमारे मन को साफ करने की क्षमता अब शेष नहीं रहा है। धर्म के ठेकेदारों ने आज धर्म को ही बेबस लाचार कर दिया या ये कहा जाये की आज खुद धर्म को एक वास्तविक धर्म की आवश्कता है।
किस धर्म को अपनाना सही है?
आप जन्म से किसी भी धर्म के है आपका धर्म आपके लिए श्रेष्ट है अगर आप उसके वास्तविक रूप और ज्ञान को अपनाते है मानावता को ऊपर रखते है और सभी को समान समझते है तो सभी धर्म श्रेष्ट है।