निगम ने पहेली बार दिखाया प्राधिकरण को यथार्थ का आइना

मुख्यमंत्री की मंशा अनुरूप अवैध कॉलोनियों को वैध करने की प्रक्रिया शुरू होते ही प्राधिकरण ने दिखाया अपना असली रूप ,संभवत इसलिए ही मुख्यमंत्री जी की मंशा इतने लंबे समय से पूरी नहीं हों पा रही और परंपरा अनुसार इस बार भी प्राधिकरण ने लगाई आपत्तियां,एक बार फिर गफलत का माहौल तैयार करने की शुरू की कोशिशें ! पूर्वे में की गई गलतियों को सुधार करवाने में यदि अध्यक्ष महोदय सफल होते है तो मुख्यमंत्री की मंशा अवश्य पूरी हों सकती हे 

निगम ने पहेली बार दिखाया प्राधिकरण को यथार्थ का आइना

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर 

पिछले सप्ताह कॉलोनी सेल  प्रभारी द्वारा इंदौर विकास प्राधिकरण अध्यक्ष को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री की मंशा अनुसार कॉलोनियों को वैध करने की प्रक्रिया का जिक्र करते हुए 114 अवैध कॉलोनियों की सूची संलग्न कर उन पर अनापत्ति प्रमाण पत्र की मांग करी है !

उन्होंने अपने पत्र में लिखा की  114 कॉलोनी ऐसी हैं जो वर्षों पूर्व बस चुकी है, हजारों मकान इन भूमियों पर बने हैं और यह सभी कॉलोनियां प्राधिकरण की विभिन्न योजनाओं में सहमिल थी या हैं ! क्योंकि माननीय मुख्यमंत्री की मंशा है कि पूरे प्रदेश की  अवैध कॉलोनियों को वैध किया जाए ,उसी अनुक्रम में निगम द्वारा भी इन पर नागरिक अधोसंरचना विकसित की जानी है लेकिन विकास प्राधिकरण की योजना या तो वहां पहले से घोषित है या प्रस्तावित है जिसके कारण ना प्राधिकरण उन पर विकास कर पाएगा और ना ही योजना को मूर्त रूप दे पाएगा इसलिए उचित होगा इंदौर विकास प्राधिकरण इन्हें अपनी योजनाओं से मुक्त कर अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करें ताकि नागरिक अधोसंरचना वहां पर निगम द्वारा विकसित की जा सके !  पत्र मिलते ही खुद प्राधिकरण अध्यक्ष मैदान में उतर आए और मामले में गफलत फैलाना शुरू कर दी प्राधिकरण अध्यक्ष का कहना है डीनोटिफिकेशन हेतु निगम द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई है  ना ही इस आशय के पत्र की प्राधिकरण को प्राप्त हुवा हे जबकि असलियत यह हे की  योजना प्राधिकरण द्वारा लाई गई है और नोटिफिकेशन भी प्राधिकरण द्वारा ही दिया गया है अर्थात डी नोटिफिकेशन की कार्रवाई भी  प्राधिकरण को अपने स्तर पर ही करनी है ! दूसरा एक सबसे बड़ा मामला यह है कि प्राधिकरण जब भी योजना लागू करता है उसमें सिर्फ कृषि भूमि का ही अधिग्रहण किया जाता है लेकिन असलियत में चीजें इसके विपरीत हुई है योजनाओं कि जब भी घोषणा की जाती है उसमें घनी बसाहट और टीएनसी डायवर्टेड भूमियों को भी शामिल किया जाता रहा है जिसके बाद वहां घनी बसाहट बसा दी जाती हे इसीलिए प्राधिकरण को सबसे बड़े भूमाफिया की श्रेणी में रखा गया है और असल में हुआ भी यही है 1977 के पहले जो प्राधिकरण का उदय नहीं हुआ था शहर में नगण्य अवैध बस्तियां बसी हुई थी लेकिन प्राधिकरण के आते ही हर जगह अवैध बस्तियों का जाल बिछ  चुका है और अवैध बस्तियों का जनक भी इंदौर विकास प्राधिकरण को ही माना जाता है अब बेशक प्राधिकरण अध्यक्ष कह रहे हैं कि डी नोटिफिकेशन के लिए निगम ने कभी मांग नहीं करी या कोई कार्यवाही नहीं करी तो असल में डिनोटिफिकेशन की कार्रवाई प्राधिकरण को करना है 

क्या कहते हैं डिनोटिफिकेशन के नियम 

  • दरअसल जैसा ऊपर बताया गया है कि जब भी योजना घोषित होती है सिर्फ कृषि भूमि का ही विकास हेतु अधिग्रहण किया जाना चाहिए यह स्पष्ट नियम है लेकिन प्राधिकरण TNCP , डायवर्टेड भूमिया और घनी  वसाहट को भी अपनी योजनाओं में शामिल कर लेता है जिसका मूल कारन बंद कमरे में बिना भौतिक सत्यापन किये योजना घोषित करना हे और  जिसके कारण न्यायालय विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है ! अगर किसी योजना की उम्र और वहां बसी बसाहट को देखा जाये तो स्पष्ट हो जायेगा की प्राधिकरण की नीतियों में कितनी विसंगति हे !
  • दूसरा नियम यह कहता है कि जब किसी योजना को अवैधानिक मानते हुए किसी न्यायालय ने योजना निरस्त कर दी है उस योजना में डी नोटिफिकेशन की जरूरत नहीं है इस आशय का संकल्प भी प्राधिकरण बहुत पहले पारित कर चुका है !
  • जहाँ सिर्फ प्राधिकरण द्वारा नोटिफिकेशन मात्र जारी किया गया हे और अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू ही नहीं की जा सकी हैं वहां भी डिनोटिफिकेशन की कार्यवाही की ज़रूरत नहीं हे ! 

उपरोक्त नियमों के आलोक में अगर प्राधिकरण अपनी रिपोर्ट बना लेता हे तो लगभग सभी कॉलोनियों को प्राधिकरण अपने ेस्तर पर अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर सकता हे ! जिसमे उसे राज्य शासन की और किसी पत्र की कोई आवशयकता नहीं पढ़नी चाहिए ! 

भारतीय किसान संघ ,युवा किसान संघ और किसान सेना जैसे संघठन पहले ही प्राधिकरण को भंग  करने की मांग करते आये हैं 

लक्समीनारायण पटेल ,दिलीप मुकाती (BKS ) का कहना हे प्राधिकरण इन्ही सब नीतियों और गोलमोल बातों को लेकर भंग होने की स्थिति में खड़ा हो गया हे और अब इस संस्था को तत्काल प्रभाव से शहर हित में बन्द कर दिया जाना चाहिए ! वैसे भी संवैधानिक दृष्टि से अब इसका कोई अस्तित्व नहीं बचा हे ! 

विपिन पाटीदार युवा किसान संघ का कहना हे जितनी अवैध बस्तिया आज शहर में बसी उसका जनक इंदौर विकास प्राधिकरण ही हे ,विडंबना हे की जब कोई राजनैतिक बोर्ड बनता हे वह भी अफसरों की भाषा बोलने लगता हे ,जिसमे जनहित में सुधार  की तत्काल आवश्यकता हे ! आज जनता परेशान  हो रही हे !

इक़बाल अहमद बाबा फरीद नगर का कहना हे हमारी कॉलोनी पहले से ही डाइवर्टेड भूमि पर बसी हे जिसका TNCP भी योजना के पहले किया जा चूका हे लेकिन पहले योजना १३२ फिर योजना १३४ फिर १७१ (तीनों ही समापत ) योजना हे लेकिन बावजूद इसके हमें NOC प्रदान नहीं की जा रही हे बस मामले में गोलमाल रवैया अपनाया जा रहा हे ! ऐसा ही हाल पुष्प विहार का हे ! 

मामलो में गफलत पैदा करने से अदालतों पर भी बढ़ा हे भार 

इन्ही सब बातों के काऱण आज कई मामले न्यायालयों में विचारधीन हे , लगातार भ्रमित करते रहने की नीतियों के कारण आज कई मामले वर्षों से न्यायालयों में लंबित हे ,बेशक देश की अदालतें शासन और प्राधिकरण को कई बार फटकार चुकी हे लेकिन दोनों को ही कोई फर्क नहीं पढ़ रहा ,लगातार अदालतों को भी भ्रमित किया जा रहा हे और  अदालतों पर अतिरिक्त भार बढ़ाया जा रहा हे  ! विधिक ख़र्चों को लेकर भी प्राधिकरण पर कोई अंकुश नहीं होने के वजह से प्राधिकरण  भी एक बड़ी राशि विधिक खर्चों में खुले आम धड़ल्ले से खर्च कर रहा हे ! बेशक पीड़ित की पुश्तें लड़ते लड़ते या तो ख़तम हो रही हे या उम्र दराज़ हो चुकी हैं !