गफलत से गफलत में न्याय नगर के सदस्य

इंदौर में न्याय नगर और कृष्णबाग़ के बीच ज़मीन विवाद से ग़लतफहमी फैली है। भूमाफिया ने फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनाकर अवैध बस्तियाँ बसाईं। श्री राम बिल्डर्स के पक्ष में कोर्ट का फैसला आने के बाद प्रशासन पर कार्रवाई का दबाव है। न्याय नगर का ज़मीन से कोई संबंध नहीं है।

गफलत से गफलत में न्याय नगर के सदस्य

कृष्णबाग़ को कहा जा रहा न्याय नगर, अधूरे परीक्षण से छप रही ख़बरों से परेशान न्याय नगर के सदस्य

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क, इंदौर।

कल कृष्णबाग़ सेक्टर सी में हुई कार्यवाही और उसके बाद फैली अफवाहों से न्याय नगर के सदस्य बेहद परेशान हो गए हैं। दरअसल, जिस भूमि पर यह कार्यवाही की गई थी, वह श्री राम बिल्डर्स द्वारा वर्षों पहले न्याय नगर से खरीदी गई थी, जिस पर अब न्याय नगर का कोई अधिकार नहीं है। इसके बावजूद, न्याय नगर के निवासियों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है।

कृष्णबाग़ को कहा जा रहा न्याय नगर:

इस मामले में, जिस भूमि को लेकर हंगामा मचा हुआ है, वह सर्वे (66/2 K, 73/4/2, 74, 75/3, 83/2, 84/2) के अंतर्गत आती है, जो न्याय नगर की भूमि से पूरी तरह अलग है। फिर भी लोग इसे न्याय नगर की ही ज़मीन समझ रहे हैं, जो न्याय नगर के निवासियों के लिए चिंता का कारण बन गया है।

जमीन पर अवैध बस्ती का निर्माण:

श्री राम बिल्डर्स की लंबी न्यायालीन लड़ाई का फायदा उठाकर भूमाफिया मनोज नागर, रामकृष्ण तिल्लोरे, और राजेश राठौर ने फर्जी दस्तावेज़ तैयार कर वहां नोटरी पर अवैध बस्ती बसा दी और इस स्थान का नाम दिया कृष्णबाग़। इस गलतफहमी की वजह से अब न्याय नगर के सदस्य संचालक मंडल से सच्चाई जानने की कोशिश कर रहे हैं। संचालक मंडल पर इस स्थिति के कारण खासी फजीहत हो रही है, जबकि न्याय नगर संस्था और सदस्यों का उक्त जमीन से कोई लेना-देना नहीं है।

भूमाफिया के अलावा ये भी जिम्मेदार:

उपभोक्ता सावधानी अधिनियम के अनुसार, किसी भी चीज़ की खरीदारी करते समय उसकी जाँच-पड़ताल करना उपभोक्ता की जिम्मेदारी होती है। अगर कोई व्यक्ति धोखा खाता है और वर्चस्व के प्रलोभन में आ जाता है, तो इसे उपभोक्ता की गलती माना जाता है और इसका दोष किसी और पर नहीं लगाया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय श्री राम बिल्डर्स के पक्ष में आने के बाद प्रशासन पर अदालत की अवमानना की तलवार लटक गई और तेजी से प्रशासन की टीम सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का पालन करने के लिए पहुँच गई। क्योंकि निर्णय में न्यायालय द्वारा जिला प्रशासन को सख्त हिदायत दी गई है कि भूमि को खाली कर कब्जा श्री राम बिल्डर्स को सौंपा जाए, जिसकी समय सीमा भी निर्धारित की गई है।

यदि ऐसा नहीं होता है, तो जिला प्रशासन को इसके गंभीर परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं। हाँ, यह बात भी सही है कि धोखा खाई जनता को मुआवज़ा भी भूमाफियों की निजी संपत्ति को कुर्क कर जिला प्रशासन को दिलवाना चाहिए, लेकिन जिला प्रशासन के पास अभी तक इन भूमाफियों के खिलाफ कोई ठोस शिकायत या दस्तावेज़ नहीं पहुँचे हैं, जिससे जनता का नुकसान हो रहा है।

प्रशासन को भी सही नहीं ठहराया जा सकता:

दरअसल, श्री राम बिल्डर्स ने उक्त भूमि न्याय नगर से वर्ष 2003 में खरीदी थी, जिसके बाद न्यायालीन विवाद के चलते वर्ष 2005 में श्री राम बिल्डर्स द्वारा न्यायालय में याचिका लगाई गई थी। इस याचिका में जिला प्रशासन को भी पार्टी बनाया गया था। तब से लेकर 2023 तक चली इस लंबी लड़ाई के दौरान लगभग 200 से अधिक प्लॉट भूमाफिया द्वारा बेच दिए गए।

अब सवाल यह उठ रहा है कि 20 साल तक श्री राम बिल्डर्स और जिला प्रशासन द्वारा इन्हें कभी भी रोका क्यों नहीं गया? अगर रोकने की कार्यवाही तभी कर दी गई होती, तो आज इतने लोग धोखा खाने का शिकार नहीं होते और भूमाफिया को इस तरह पनपने का कोई मौका ही नहीं मिलता। न ही राष्ट्र की संपत्ति का इतना बड़ा नुकसान होता।

समाधान की दिशा में उठाए गए कदम:

  • जांच समिति की नियुक्ति:
    प्रशासन ने अब जांच समिति की नियुक्ति कर दी है, जो पूरे मामले की गहराई से पड़ताल करेगी। समिति का उद्देश्य यह जानना है कि कैसे भूमाफियाओं ने इतना बड़ा धोखा दिया और किसकी लापरवाही के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई।

  • जनता के लिए जागरूकता अभियान:
    प्रशासन अब एक जागरूकता अभियान शुरू करने जा रहा है, जिसमें लोगों को अवैध भूमि खरीद से बचने के लिए जानकारी दी जाएगी। इसके अंतर्गत लोगों को सही दस्तावेज़ों की पहचान करना और उन्हें कैसे सत्यापित करना है, इस पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

  • सख्त कानूनी कार्रवाई:
    प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके तहत जिन लोगों ने अवैध दस्तावेज़ बनाकर भूमि बेची है, उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज होगा और उन्हें गिरफ्तार कर सजा दी जाएगी।

न्याय नगर के सदस्यों की मांग:

  • पारदर्शिता की अपील:
    न्याय नगर के सदस्यों ने संचालक मंडल से इस पूरे मामले में पारदर्शिता की मांग की है। उन्होंने कहा है कि उन्हें सही जानकारी दी जाए और अगर उनकी जमीन से संबंधित कोई निर्णय लिया जा रहा है, तो उन्हें भी इसमें शामिल किया जाए।

  • भूमि विवाद का समाधान:
    सदस्यों का मानना है कि जब तक यह विवाद सुलझ नहीं जाता, तब तक वे चैन से नहीं बैठेंगे। उनका कहना है कि न्याय नगर के नाम पर हो रही इस गफलत को जल्द से जल्द सुलझाना चाहिए, ताकि वे अपनी ज़मीन के बारे में निश्चिंत हो सकें।

भूमाफिया और प्रशासन पर सवाल:

  • अवैध निर्माण पर रोक क्यों नहीं?
    सवाल उठता है कि 20 वर्षों तक श्री राम बिल्डर्स और प्रशासन ने इस अवैध निर्माण को रोकने के लिए क्या कदम उठाए? यदि पहले ही कार्रवाई की जाती, तो इतनी बड़ी संख्या में लोग धोखे का शिकार नहीं होते।

  • जनता के हितों की अनदेखी:
    प्रशासन की लापरवाही के कारण जनता के हितों की अनदेखी हुई है। ऐसे में प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि वे जनता को न्याय दिलाने के लिए तत्पर रहें और दोषियों को सजा दिलाएं।

भूमाफियाओं के खिलाफ प्रशासन की कार्रवाई:

  • अवैध दस्तावेज़ों की जांच:
    प्रशासन अब उन सभी दस्तावेज़ों की जांच कर रहा है, जिनके आधार पर भूमाफियाओं ने भूमि बेची थी। इस जांच के दौरान प्रशासन ने पाया कि अधिकतर दस्तावेज़ फर्जी हैं और उन पर अवैध तरीके से नोटरी की मुहर लगाई गई थी।

  • जमीन की वैधता की पुष्टि:
    प्रशासन अब यह सुनिश्चित कर रहा है कि श्री राम बिल्डर्स के पास जमीन की वैधता से संबंधित सभी दस्तावेज़ मौजूद हैं और उनके अधिकारों का हनन नहीं हुआ है। इसके लिए प्रशासन ने एक विशेष टीम गठित की है, जो जमीन की वैधता की पुष्टि करेगी।

प्रभावित लोगों के लिए राहत के उपाय:

  • आर्थिक सहायता:
    प्रशासन ने उन लोगों के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा की है, जिन्होंने इस धोखे में अपनी जमा-पूंजी खो दी है। प्रशासन का कहना है कि वे प्रभावित लोगों को राहत देने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।

  • वैकल्पिक आवास की व्यवस्था:
    प्रशासन अब उन लोगों के लिए वैकल्पिक आवास की व्यवस्था कर रहा है, जिनकी बस्तियाँ अवैध रूप से बनाई गई थीं और जिन्हें अब हटाया जा रहा है।

निष्कर्ष:

यह घटना प्रशासन और जनता दोनों के लिए एक सीख है कि भूमि की खरीदारी के दौरान सतर्क रहना कितना महत्वपूर्ण है। इस गफलत ने यह सिद्ध कर दिया है कि जरा सी लापरवाही कितनी बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है। प्रशासन को चाहिए कि वह अपनी जिम्मेदारियों को समझे और जनता के हित में कार्य करे, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं दोबारा न हो।