क्या एमपी में खत्म हो रहा है लैंड पुलिंग एक्ट..?
प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना, जिसमें औद्योगिक क्षेत्र को 400 स्क्वेयर किलोमीटर के दायरे में लाया जाना था। अंततः एमपीआईडीसी की इस योजना को सरकार द्वारा किसानों के विरोध के चलते खत्म कर दिया गया।
देवास, उज्जैन औद्योगिक निवेश क्षेत्र को लेकर भारतीय किसान संघ के नेतृत्व में 32 गांव के किसानों का था विरोध
पीथमपुर और मंडीदीप जैसा औद्योगिक निवेश क्षेत्र था प्रस्तावित, सिंचित भूमि का किया जाना था अधिग्रहण
किसानों के विरोध के चलते मुख्यमंत्री को करना पड़ी थी घोषणा, एमपीआईडीसी ने लिखा देवास कलेक्टर को पत्र
द एक्सपोज लाइव न्यूज़ नेटवर्क, देवास।
देवास, उज्जैन व धार क्षेत्र में प्रस्तावित लगभग 6600 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण से बनने वाले प्रदेश के तीसरे औद्योगिक क्षेत्र को लेकर कई दिनों से देवास एवं आसपास के किसान लगातार विरोध कर रहे थे। कुछ ही महीनों पहले तकरीबन 900 ट्रैक्टरों के साथ हजारों किसानों ने देवास कलेक्ट्रेट का घेराव किया था, जिसका नेतृत्व भारतीय किसान संघ कर रहा था।
दरअसल किसान और किसान संघ की मांग थी कि अगर प्रदेश में औद्योगिक निवेश क्षेत्र बनता है, तो प्राथमिक तौर पर उसके लिए बंजर भूमि को चिन्हित किया जाना चाहिए।
खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण और रोजगार के लिए था घातक
सिंचित भूमि पर उद्योगों को लगाना कई मायनों में मानव जाति के लिए घातक है। सबसे पहला कारण खाद्य सुरक्षा, दूसरा पर्यावरण, तीसरा किसानों के रोजगार का भी अधिग्रहण होता है। बेशक सरकार कहती है कि किसानों को रोजगार दिया जाएगा, लेकिन दरअसल जमीनी तौर पर ऐसा होता नहीं है।
किसानों को मजदूर बनाने की थी साजिश
किसान, जो आज अपना खुद का कृषि उद्योग संचालित कर रहा है, मेहनत मजदूरी करता है और अनाज का उत्पादन करता है, उसको कहीं ना कहीं मजदूर बनाने की यह एक सोची-समझी रणनीति साबित हुआ है। इन्हीं सब बातों के चलते किसानों में लगातार विरोध बना हुआ था और विरोध भी इस कदर रहा कि खुद मुख्यमंत्री को भरे मंच से सोनकच्छ में लैंड पूलिंग एक्ट खत्म करने की घोषणा करनी पड़ी थी, जो अब आधिकारिक रूप से ख़त्म हो गयी है।
मां का चीरहरण बर्दाश्त नहीं...
हमारी मांग सरकार द्वारा मान ली गयी है। दिल से उनका धन्यवाद देते हैं। हम विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन विनाश की कीमत पर विकास नहीं होने दिया जायेगा। हमारी मांग शुरू से सिंचित भूमि को संरक्षित करने की रही है। भूमि को किसान हमेशा "माँ" का दर्जा देते आया है और माँ का चीरहरण किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।
- अतुल माहेश्वरी, प्रान्त संगठन मंत्री-भारतीय किसान संघ