टमाटर का खेल, भाव आसमान पर, लेकिन किसान वहीं का वहीं

“टमाटर पेट्रोल से भी अधिक महंगे हैं। 1 किलो टमाटर के लिए 200 रुपये।” "उच्च कीमत और गुणवत्ता के कारण मैकडॉनल्ड्स ने अपने व्यंजनों से टमाटर हटा दिए" "टमाटर से भारत में महंगाई प्रभावित होगी, आरबीआई चिंतित" "बढ़ते भाव का किसको फायदा किसको नुकसान ?"

टमाटर का खेल, भाव आसमान पर, लेकिन किसान वहीं का वहीं

क्यों बढ़ रहे हैं टमाटर के दाम और क्या हम जल्द ही कीमतों में नरमी की उम्मीद कर सकते हैं?

टमाटर की कीमतों में भारी उछाल, शहरों में 155 से 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंची कीमतें

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क, इंदौर

टमाटर भारतीय घर का अहम हिस्सा है, भारतीय रसोई का राजा है और जब इसकी कीमतें आसमान छूने लगती हैं तो इससे हर भारतीय परिवार का मासिक बजट गड़बड़ा जाता है। ऊपर कुछ सुर्खियाँ हैं, जिन्होंने वास्तव में भारत के हर एक घर को प्रभावित किया है और भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ग के लिए खतरा पैदा कर रहा है।

हाल के सप्ताहों में खुदरा बाजारों में टमाटर की कीमतें 150 रुपये से 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ गई हैं और विशेषज्ञों को मूल्य निर्धारण में आसानी के संकेत नहीं दिख रहे हैं। टमाटर की अत्यधिक कीमत का कारण पर्यावरण, लॉजिस्टिक और बाजार कारकों का संयोजन है। वहीं टमाटर की महंगाई के चलते उपभोक्ता दाम कम होने का इंतजार कर रहे हैं। हालाँकि, कई कारक टमाटर की कीमतों को प्रभावित करते हैं।

भारत में टमाटर का उत्पादन

भारत में टमाटर की दो फसलें उगाई जाती हैं, रबी की फसल, महाराष्ट्र के जुन्नार तालुका और कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में उगाई जाती है। रबी फसलों की सप्लाई मार्च से अगस्त के बीच बाजार में आ जाती है। दूसरी है ख़रीफ़ की फसल, जो यूपी और नासिक में उगाई जाती है और साल के बाकी दिनों में बाज़ार में आती है। ये स्थान देश में टमाटर के प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं।

इस वर्ष क्या ग़लत हुआ?

इसकी ज़िम्मेदारी मानसून, अपर्याप्त उत्पादन और अत्यधिक गर्मी सहित विभिन्न कारकों पर होगी। पहला बैच जनवरी-मार्च के महीने में लगाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन का पहला बैच अप्रैल-जून के दौरान आता है। रबी की फसल से किसानों को बेहतर रिटर्न भी मिलता है। हालाँकि, इस वर्ष अचानक गर्मी के कारण फसल प्रभावित हुई, क्योंकि इससे कीटों का हमला हुआ, जिसके परिणामस्वरूप उपज कम हुई और बाजार दरें ऊंची हो गईं।

पत्तों के वायरस ने बरपाया कहर

पत्तों के वायरस ने कर्नाटक और महाराष्ट्र में ऐसा कहर बरपाया कि स्थानीय कृषि उपज बाजार समिति को पिछले साल जून में लगभग 5.50 लाख क्विंटल टमाटर मिले थे, लेकिन इस साल सिर्फ 3.2 लाख क्विंटल ही मिले हैं। फिर मई में बेमौसम बारिश हुई। पिछले हफ्तों में उत्पादक राज्यों से टमाटर की आपूर्ति बाधित हुई है, जहां कटाई और परिवहन प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इन परिस्थितियों का टमाटर की उपलब्धता पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है।

अन्य सब्जियों के बारे में क्या?

ठीक है, टमाटर की बढ़ोतरी हर घर की जेब पर असर कर रही है, लेकिन तथ्यों को सही करने के लिए, कुछ राज्यों में फूलगोभी, आलू, प्याज, पत्तागोभी, मिर्च और भिंडी जैसी बाकी सब्जियों की कीमतों में भी मामूली वृद्धि देखी गई है। टमाटर का चर्चा में आने का कारण यह हो सकता है कि उनका उत्पादन देश के कुछ हिस्सों तक ही सीमित है, जिससे परिवहन शुल्क बढ़ जाता है, साथ ही उनकी सेल्फ लाइफ कम हो जाती है, जिससे भंडारण में कठिनाई होती है।

क्या कीमतें कम होने की कोई संभावना है?

टमाटर की तेजी तभी कम होगी जब खरीफ टमाटर को बाजार में उतारा जाएगा, जिसकी रोपाई मानसून के आगमन के बाद शुरू हो चुकी है। इसलिए, आप कह सकते हैं कि अगस्त के मध्य के बाद ही ताजा उपज बाजार में उतारी जाएगी, जिससे खुदरा कीमतें कम हो जाएंगी। इस बीच, सरकार ने हाल ही में कहा कि मौजूदा उछाल मौसमी घटना के कारण हैं और अगले 15 दिनों के भीतर कीमतें घटने और एक महीने के भीतर सामान्य होने की संभावना है।

किसको मिल रहा फायदा ?

बढ़ती कीमत की अगर बात करें तो हर किसी के मन में यह सवाल आ रहा है कि बढ़ती कीमत से महंगाई का खतरा बना हुवा है। आम जनता की जेब पर अत्यधिक भार पढ़ रहा है लेकिन क्या कहना है किसानों और किसान नेताओं का?

कोई भी फसल ख़राब होगी तो कीमत बढ़ेगी,जहाँ तक बढ़ते भाव के फायदे किसको की बात है तो जग जाहिर है किसान को इसका कुछ भी फायदा कभी नहीं मिलता है। आज भी किसान से खरीदी और बाजार में बेची का भाव आसानी से पता किया जा सकता है। रही बात बजट गड़बड़ाने की तो वैसे भी टमाटर ठंड की फसल है, कुछ दिन आम जनता को इंतज़ार करना चाहिए, भाव अपने आप नियंत्रित हो जायेंगे।

  • जगदीश रावलिया, महासचिव-किसान सेना

बाजार में खरीदी और बिक्री के भाव में बहुत बड़ा अंतर देखने में आया है। स्पष्ट हे किसान को इसका कोई फायदा नहीं मिल रहा है। मौसम की मार के कारण जो उत्पादन प्रति बीघा मिलना चाहिए, वह आधे से भी काम हुवा है, लेकिन मज़दूरी वहीं की वहीं है, जिससे किसान की लगत बढ़ी है। आज जो भाव किसान को मिल रहे हैं वह लागत के लगभग ही हैं, जिसका फायदा बिचोलिये अच्छा  खासा उठा रहे हैं।

  • दिलीप मुकाती, महानगर अध्यक्ष-भा.कि.स.

कृत्रिम तेजी पर जब तक सरकार कदम नहीं उठाएगी किसान तो वहीं का वहीं रह जायेगा। आम जनता को बढ़ते भाव का खामियाज़ा उठाना पड़ेगा। कहीं न कहीं व्यवस्थाओं में सुधार की आवश्यकता है। सिर्फ टमाटर ही नहीं अन्य फसलों के साथ भी अक्सर यही होता है। बढ़ते भाव का सर्वाधिक फायदा बिचोलिये ले जाते हैं।

  • दिनेश पालीवाल, किसान