रातों-रात गेहूं के निर्यात पर केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई रोक से किसानों और व्यापारियों में भारी रोष

देश की खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर सरकार ने गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से बैन लगा दिया है और गेहूं को प्रतिबंधित श्रेणी में रखा गया है

रातों-रात गेहूं के निर्यात पर केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई रोक से किसानों और व्यापारियों में भारी रोष
image courtesy :the financial express

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नटवर्क-इंदौर 

केंद्र सरकार की दलील कि बढ़ते गेहूं के भाव से आटे के दामों में भारी बढ़ोतरी देखी जा रही है जिसके कारण महंगाई का स्तर लगातार बढ़ रहा है और इसी कारण गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई है !  जहां एक और सरकार द्वारा गेहूं एमएसपी ₹2015 प्रति कुंटल घोषित की गई है वहीं निर्यात के लिए बंदरगाहों पर 2600 ₹ तक प्रति कुंटल की बोली लगाई गई है ! सरकार ने एक और दलील देते हुए कहा है इसका  प्रभाव पड़ोसी और अन्य कमजोर देशों की जरूरतों का समर्थन करने में भी पड़ेगा क्योंकि सरकार के पास पर्याप्त मात्रा में स्टाफ मौजूद रहेगा वही लगातार बढ़ रही आटे की कीमतें भी नियंत्रित की जा सकेंगे  ! इन तमाम दलीलों को व्यापारी और किसान संगठन सिरे से नकार रहे हैं और इसका विरोध करना भी शुरू हो गया है किसानों और व्यापारियों ने केंद्र सरकार पर सीधे आरोप लगाते हुए कहां है कि कहीं ना कहीं इसमें एक बड़ा भ्रष्टाचार होने की बू आ रही है क्योंकि मात्र गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने से महंगाई पर इसका कोई असर नहीं होगा ! अगर सरकार वाकई महंगाई को कम करना चाहती है तो उसे दूसरी अन्य चीजों की तरफ भी ध्यान देना पड़ेगा  ! किसान संगठनों का भी कहना है की सरकार किसानों को फायदा पहुंचाना नहीं चाहती है और कहीं ना कहीं किसी रूप में कृषि को खत्म करने की तरफ बढ़ती जा रही हे ! अभी हाल ही में कृषि सुधार कानून भी इसी मंशा से लाया गया था जिसका पूरे भारत में विरोध हुआ और अंततः सरकार को बैकफुट पर आना पड़ गया !  

इंदौर मंडी व्यापारी संघ के अध्यक्ष नारायण गर्ग का कहना है कि : 

रातों-रात बैन लगाना उचित नहीं है और हम इसका विरोध कर रहे हैं ,उन्होंने कहा किसान और व्यापारी जिस भाव में गेहूं खरीद रहे हैं उसमें मात्र सौ से डेढ़ सौ रुपए कुंटल की तेजी इस बार रही है जो किसी भी सूरत में ज्यादा नहीं कही जा सकती ,रही बात आटे की तो आटा ज्यादातर मल्टीनेशनल कंपनियां बना रही है और गेहूं किस भाव में खरीदती हैं और उनकी लागत क्या पड़ती हे , उस पर कितना मुनाफा वो कमाते हैं यह जगजाहिर सत्य है !  किसी भी सूरत में यह कंपनियां अपने खुदरा मूल्यों को कम नहीं करेगी  ! 

वहीं भारतीय किसान संघ के जिला उपाध्यक्ष दिलीप मुकाती का कहना है :

यह सरकार की दमनकारी नीति है जिसका हम विरोध कर रहे हैं और आगे की रणनीति पर संगठन स्तर पर चर्चा चल रही हे ! यह किसानों और खेती  को हर तरीके से खत्म करने का एक षड्यंत्र हे 

युवा किसान संघ के सचिव विपिन पाटीदार का कहना हे : 

किसान तो शोषण का पर्याय है पर सरकार की कथनी और करनी में अंतर रहेगा तब तक ऐसी दिक्कत सभी को रहेंगी । यहां किसानों के नुकसान के अतिरिक्त व्यापारियों का नुकसान हुआ है इस हेतु समय सीमा उस अनाज को निर्यात करने के लिए जो गंतव्य के लिए निकल चुका है उसको पूर्ण करने तक ऐसे आदेश पर स्टे के लिय इन्हे सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी चाहिए। ऐसे तात्कालिक आदेश संभवतः भारत की निर्यात नीति को भी दूषित करते है जिसके आने वाले परिणाम दुस्प्रभावी सिद्ध होंगे ।
क्योंकि यह आदेश लोकतांत्रिक व्यवस्था का न होकर जिसकी लाठी उसकी भैंस
जैसा हो गया ।