यहां गढ़ा है परशुराम जी का फरसा… खुले आसमान में रखा मगर अभी तक नहीं लगी जंग !
झारखंड में एक जगह है, जिसका नाम है टांगीनाथ. टांगीनाथ धाम के लिए कहा जाता है कि यहां परशुराम जी का फरसा गढ़ा है और इस फरसे पर आजतक जंग नहीं लगी है.
द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर
आज भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाने वाले भगवान परशुराम की जयंती है. मान्यता है कि भगवान परशुराम का अवतार पृथ्वी पर अन्याय के प्रति न्याय का प्रतिपादन, दुष्टों का नाश और धर्म राज्य की स्थापना करने के लिए हुआ था. वहीं, जब भी परशुराम जी की बात होती है उनके फरसे से जुड़ी कहानियां जरूर सुनाई जाती है. फरसे को परशुराम का हथियार माना जाता है और इस फरसे से ही उन्होंने दुष्टों का विनाश किया था. कहा जाता है कि परशुराम जी का ये ही फरसा झारखंड में रांची के पास एक गांव में गड़ा हुआ है.
कहा जाता है कि झारखंड के रांची शहर से 150 किलोमीटर दूर घने जंगलों में परशुराम जी का फरसा आज भी गड़ा हुआ है. इस जगह का नाम है गुमला और इसे टांगीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है. इस जगह को परशुराम की तप स्थली माना जाता है. लोगों का कहना है कि हजारों साल से यह फरसा खुले आसमान के नीचे गड़ा है, लेकिन इस फरसे पर जंग नहीं लगती है. इस वजह से इस फरसे की काफी मान्यता है.
टांगीनाथ कहे जाने की वजह
झारखंड की स्थानीय भाषा में टांगी कहा जाता है और इस वजह से टांगीनाथ धाम कहा जाता है. यह फरसा नाटकों या टीवी में दिखाए गए फरसे से थोड़ा अलग है और यह त्रिशूल के आकार का है.
जंग ना लगने को माना जाता है चमत्कार
टांगीनाथ में जिस फरसे को परशुराम जी का कहा जाता है, वो फरसा लोहे का है. कहा जाता है कि यह हजारों सालों से यहां जमीन में गड़ा है और खुले आसमान के नीचे है. यानी इस फरसे के ऊपर कोई शेल्टर आदि नहीं लगाया गया है और बारिश, धूप में यह ऐसे ही रहता है. इतने साल से खुले में रखे इस फरसे की खास बात ये ही मानी जाती है कि इसमें अभी तक जंग नहीं लगी है और इसे परशुराम का चमत्कार माना जाता है. लोगों का मानना है कि पानी और हवा के संपर्क में आने से लोहे में जंग लगना काफी आम है, लेकिन इस फरसे के साथ ऐसा नहीं है और अभी तक जंग नहीं लगी है. हालांकि, कई जानकारों का कहना है कि कुछ खास तरह के लोहे के वजह से भी जंग नहीं लगती है.
परशुराम जी ने की थी तपस्या
परशुराम जी का फरसा गड़े होने की लोक कथा के साथ ही कहा जाता है कि इस जगह पर परशुराम जी ने कई सालों तक तपस्या की थी. रिपोर्ट्स के अनुसार लोगों का मानना है कि पिता जमदग्नि के कहने पर परशुराम ने अपनी माता रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दिया था. इसके बाद फिर पिता से मिले वरदान में उन्हें दोबारा जीवित भी करवाया, लेकिन मातृ हत्या के दोष से मुक्त होने के लिए उन्होंने टांगीनाथ में कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और दोष मुक्त हुए.