पानी से घिरा, फिर भी पानी को तरसता शहर – कब जागेंगे जिम्मेदार?

एक तरफ मां नर्मदा और यशवंत सागर रोज़ाना इंदौर को लगभग 430 MLD पानी देती हैं, दूसरी ओर वर्षा जल से अनुमानित 516 MLD पानी शहर को मिल सकता है — इसके बावजूद इंदौर हर साल गर्मियों में जल संकट से कराह उठता है। सवाल उठता है कि आखिर इतने संसाधनों के बावजूद भी क्यों इंदौर की जनता हर साल पानी के लिए त्राहिमाम करती है?

पानी से घिरा, फिर भी पानी को तरसता शहर – कब जागेंगे जिम्मेदार?

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर 

शहर की रोज़मर्रा की जल जरूरत लगभग 460 MLD है, जिसे माँ नर्मदा और यशवंत सागर पूरा करते हैं, फिर भी हर साल गर्मी आते ही कई क्षेत्रों में जल संकट गहराने लगता है। नगर निगम द्वारा टैंकरों के माध्यम से पानी पहुंचाने की व्यवस्था तो की जाती है, लेकिन जब मांग अधिक होती है तो कई बार यह प्रणाली भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है।

वर्षा जल: इंदौर की अदृश्य संपत्ति

एक अध्ययन के अनुसार यदि किसी क्षेत्र में 35 इंच औसत वर्षा होती है, तो प्रति वर्ग किमी 23 करोड़ गैलन जल संग्रह हो सकता है। इंदौर का क्षेत्रफल 530 वर्ग किमी है। इसका मतलब है कि सिर्फ बारिश के पानी से लगभग 188,495 MLD यानि 516 MLD प्रति दिन  जल संग्रह किया जा सकता है — जबकि शहर की जरूरत सिर्फ 460 MLD है जिसमे से 430 MLD माँ नर्मदा और यशवंत सागर से पहले  हो प्राप्त हो रही हे ।

प्रशासनिक योजनाएं और जमीनी हकीकत में अंतर

इंदौर जिला प्रशासन और मध्य प्रदेश शासन समय-समय पर जल प्रबंधन को लेकर योजनाएं लागू करता है और जनता को आश्वासन देता है कि उन्हें मूलभूत सुविधाओं के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा, लेकिन योजना से ज़्यादा उसका क्रियान्वयन हमेशा कमजोर रहा है। पानी जैसे गंभीर मुद्दे पर अब तक कई सेमिनार, भाषण और योजनाएं बनीं – जैसे ग्राउंडवॉटर रिचार्जिंग, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग, वाटर कंजर्वेशन – लेकिन इनका व्यावहारिक अमल न के बराबर रहा।

अगर इस जल को सही ढंग से संग्रहित और पुनर्भरण किया जाए तो इंदौर में 24x7 पानी सप्लाई सिर्फ वर्षा जल से भी संभव है।

सबसे महंगा पानी पीता है इंदौर

महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने हाल ही में कहा था, “इंदौर के लोग दुनिया का सबसे महंगा पानी पी रहे हैं।” नर्मदा से इंदौर तक पानी को लाने के लिए 70 किमी लंबा सफर तय होता है, जिसमें भारी मशीनरी, जनशक्ति और हर महीने करोड़ों रुपये का खर्च आता है।

भूजल स्तर गिरा – संकट और गहरा

इंदौर में भूजल स्तर निरंतर गिर रहा है। वर्ष 2022 में जहां यह स्तर 150 मीटर पर था, वहीं 2023 में घटकर 160 मीटर तक पहुंच गया। अगर यही हालात रहे तो इंदौर भी जल्द ही बेंगलुरु जैसे शहरों की श्रेणी में आ जाएगा, जहां पानी की समस्या विकराल रूप ले चुकी है।

समाधान की ओर बढ़ता इंदौर

हालांकि राहत की बात यह है कि इंदौर नगर निगम अब इस दिशा में सक्रिय हुआ है। नागरिकों को अपने घरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के लिए प्रेरित किया गया है। कई घरों में यह प्रणाली लागू हो चुकी है, जिससे वर्षा जल ज़मीन में रिसकर भूजल स्तर को बढ़ा रहा है।

वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के लिए यह प्रणाली अनिवार्य कर दी गई है। 1500 वर्ग फीट से बड़े हर भवन के लिए नक्शा तभी पास होता है, जब वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम प्लान में शामिल हो।

जन भागीदारी से ही होगा समाधान

नगर निगम ने अब एक नई पहल की है जिसमें आम नागरिक अपने घर या प्रतिष्ठान पर भूजल स्तर बढ़ाने के लिए विशेषज्ञों की राय लेकर योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं। इसके अलावा तालाबों, नहरों और जल स्त्रोतों की सफाई और पुनर्जीवन का काम भी तेजी से किया जा रहा है।

इंदौर जल संकट से जूझ रहा है, जबकि समाधान खुद शहर में मौजूद है। जरूरत है सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति, ईमानदार क्रियान्वयन और जनभागीदारी की। अगर वर्षा जल को सहेज लिया जाए, तो इंदौर फिर कभी पानी के लिए नहीं तरसेगा।