इंदौर में दलजीत दोसांझ का म्यूज़िक कॉन्सर्ट: विवाद और समाज के बदलते विचार
हाल ही में इंदौर में आयोजित दलजीत दोसांझ के म्यूज़िक कॉन्सर्ट ने न केवल मनोरंजन का माहौल बनाया, बल्कि कई विवादों को भी जन्म दिया। यह विवाद तब शुरू हुआ जब एक स्थानीय विधायक और कुछ सामाजिक संगठनों ने इस शो में शराब परोसे जाने और मांस की बिक्री को बंद करने की मांग की। इस विरोध ने सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर बहस को जन्म दिया, जिसमें कई लोगों ने अपनी-अपनी राय दी। कुछ बड़बोलों ने इसे गांव की सोच बता शहर को ही गावठी सोच कह डाला ,शायद वे ये भूल गए ज्ञान की कमी के कारण सोच नहीं पाए भारत सोने की चिड़िया उस काल में ही कहलाता था जब गाओं का बोलबाला था , आज भी इंदौर की 70 % जनता में गांव का ही दिल धड़कता हे ! कहना सही भी होगा ,"अध जल गगरी छलकत जाए" !
द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर
बेशक दलजीत ने कार्यक्रम की शुरुआत कालों के काल का नाम ले कर शुरू करि और युवाओं में एक सही सन्देश देने की कोशिश करी , लेकिन विवाद तब और बढ़ गया जब मूल मुद्दों के बाद कुछ आपत्ति जनक प्रतिक्रियां सामने आने लगी
विवाद के मुख्य बिंदु
1. शराब और मांस पर रोक:
विधायक और सामाजिक संगठनों ने इस बात पर आपत्ति जताई कि सार्वजनिक कार्यक्रमों में शराब और मांस का परोसा जाना इंदौर की सांस्कृतिक परंपरा के खिलाफ है। और वो भी ऐसे विधायक ने जो इस तरह के विवादों से अपने आप को अक्सर दूर ही रखते हैं ,अब सवाल यह उठता हे की पीड़ा कितनी गहरी रही होगी, की खुद विधायक को सामने आकर मुखर होना पड़ गया !
2. शहरी और ग्रामीण सोच का टकराव:
विरोध के जवाब में कुछ लोगों ने इसे प्रगतिशील सोच के खिलाफ बताया और इंदौर की पारंपरिक सोच को "गांव वाली मानसिकता" कहकर खारिज कर दिया। शराब कोई आज की इज़ाद नहीं ,अनादिकाल से इसका उपयोग होता आया हे ,लेकिन शराब के भी तो अपने तौर तरीके होते हैं ! इसे सार्वजनिक इलाकों में खुले आम परोस देना कौन से संस्कृति हे ! एक शायर ने अपनी पीड़ा को भी यह कहकर दर्शाया हे ,
"क्या सलीका था कभी, जब जाम छलकाते थे लोग
इसमें भी एक शान थी, जब पीके लहराते थे लोग
इक्का-दुक्का छुप-छुपाकर, इस तरफ आते थे लोग
अब तो इस माशूक पर, हर शख्स की नीयत खराब "
3. तेजी से बदलती सामाजिक संरचना:
इंदौर तेजी से शहरीकरण और आधुनिकीकरण की ओर बढ़ रहा है, लेकिन इसके साथ ही नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों में बदलाव के मुद्दे भी उभर रहे हैं। खुलेआम सिगरेट पीना, लिव-इन रिलेशनशिप, और अन्य शहरी व्यवहारों पर सवाल उठाए जा रहे हैं। आये दिन थानों में ऐसे विवाद सामने आते हैं जिसमे खुद पुलिस भी अचंभित और शर्मसार हो जाती हे !
मुद्दे का गहराई से विश्लेषण
शहरीकरण और नैतिक मूल्य:
इंदौर का तेजी से विकसित होना जहां इसे आधुनिकता की ओर ले जा रहा है, वहीं परंपरागत सोच और आधुनिक विचारों के बीच टकराव पैदा कर रहा है। यह बदलाव स्वाभाविक है, लेकिन इसे सही दिशा में ले जाना जरूरी है,और जो ले जा रहे हैं उनको भला बुरा कहना ,ऐसी तो कभी इंदौर की सोच नहीं रही !
सार्वजनिक स्थानों की नैतिकता:
सार्वजनिक कार्यक्रमों में शराब और मांस का परोसा जाना व्यक्तिगत पसंद का मामला हो सकता है, लेकिन इसे सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़कर देखने वाले लोगों की चिंताओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
समाज में ध्रुवीकरण:
ग्रामीण और शहरी मानसिकता के बीच बढ़ता तनाव यह दिखाता है कि सामाजिक मुद्दों पर सहमति और संवाद की कमी है। किसी भी पक्ष को कट्टरपंथी नजरिए से देखना समस्या का समाधान नहीं है। आज जब शहर के अधिकतर हिस्सों में शहर की पारम्परिक भाषा "ग्रामीण मालवी " का ही उपयोग हो रहा हे ,शहर के पुराने लोग आज भी एक दूसरे से उसी "ग्रामीण तेहज़ीब" से मिलते हैं।,आपसी भाई चारा भी "ग्रामीण संस्कृति" दिखा रहा हे ,ऐसे में कुछ अधबीच के बाबाजियों का शहर को "गाँवठी" सोच वाला करार देना जायज नहीं लगता !
इंदौर का यह विवाद केवल एक कार्यक्रम तक सीमित नहीं है; यह समाज के बदलते मूल्यों और उनके प्रभाव पर एक बड़ी बहस की ओर इशारा करता है ! आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए संवाद और सहिष्णुता जरूरी है। सार्वजनिक कार्यक्रमों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन होना चाहिए। सामाजिक संगठनों और प्रशासन को ऐसे मुद्दों को भावनात्मक दृष्टिकोण के बजाय व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखना चाहिए। समाज को यह समझने की जरूरत है कि आधुनिकता केवल बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि विचारों की प्रगतिशीलता और सहिष्णुता में भी होनी चाहिए।
बहरहाल बहस जिस भी दिशा में जाए ,कहीं न कहीं इंदौर की जनता उन विधायक और संगठनों पर गर्व तो कर ही रही हे ,और एक निश्चिंतता का भाव भी देखने को मिल रहा हे की जब तक ऐसे संगठन और जनप्रतिनिधि मौज़ूद हैं शहर का ज़ज़्बा और संस्कृति सुरक्षित हे !