महालक्ष्मी नगर और बॉम्बे हॉस्पिटल इलाका : हादसों का हॉटस्पॉट, जहां नियमों की धज्जियां और लापरवाहियां चरम पर

महालक्ष्मी नगर, जिसे अब "हादसों का नगर" कहना गलत नहीं होगा, यहां हर मोड़ पर एक नई कहानी और हर दिन एक नया हादसा देखने को मिलता है। यह क्षेत्र किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं, जहां गाड़ियों का असंतुलन, बेतरतीब यातायात और नियमों की धज्जियां रोज़मर्रा का हिस्सा बन चुके हैं।

महालक्ष्मी नगर और बॉम्बे हॉस्पिटल इलाका : हादसों का हॉटस्पॉट, जहां नियमों की धज्जियां और लापरवाहियां चरम पर

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर 

यहां का हाल तो ऐसा है कि कमल हासन की फिल्म 'हादसा' का मशहूर गाना "हर मोड़ पर होता है कोई न कोई..." पूरी तरह चरितार्थ होता है। बॉम्बे हॉस्पिटल, तुलसी नगर, साईकृपा और महालक्ष्मी नगर में चलती दुपहिया गाड़ियां अचानक गिर जाती हैं, गाड़ियां खंभों से टकराती हैं, और किसी की जान तक ले जाती हैं,ऐसे किस्से यहाँ आम बात हे ।

युवाओं की बेलगाम रफ्तार

बॉम्बे हॉस्पिटल के आसपास युवाओं की रफ्तार और नियमों को तोड़ने का सिलसिला आम हो गया है। इन नवधनाढ्य वर्ग के "सुपुत्र-सुपुत्रियां" बिना किसी डर के गाड़ियां दौड़ाते हैं। न चालान की परवाह, न पुलिस का खौफ—उनके लिए वक्त इतना कीमती है कि दोस्त के जन्मदिन या गर्लफ्रेंड के इंतजार में सड़कें उनकी बपौती बन जाती हैं। इनके पिताजी के संबंध शहर के बड़े नेताओं से होते हैं, एक फोन लगाकर सब मैनेज हो जाता है।

युवाओं की बातें ऐसी कि खुद नटवरलाल और हर्षद मेहता भी सुनकर हैरान रह जाएं। दुनिया को जेब में रखने का घमंड और नशे में चूर आंखें, मानो यहां का लाइफस्टाइल बन चुका है। पुलिस अगर ब्रेथ एनालाइजर से पकड़े भी, तो ये ड्राई नशे में रहते हैं, जिससे कानून को मात देने में माहिर हैं।

दुकानदारों की दबंगई

बॉम्बे हॉस्पिटल के पास की सर्विस रोड और फुटपाथ पर दुकानदारों की हुकूमत चलती है। फुटपाथ को 'सीटिंग ज़ोन' बना दिया गया है, और सड़कों को पार्किंग के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। कोई निगम या प्रशासन इन पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर पाता। आवासीय नक्शे पास करवा कर होटल और हॉस्टल चलाना यहां आम बात है। बेसमेंट का उपयोग नियमों के अनुसार नहीं होता, और किसी की मजाल नहीं कि इन्हें रोके।

पुलिस और प्रशासन की मजबूरी 

नरीमन रोड और मैला ग्राउंड चौराहे पर फुटपाथों पर गाड़ियां धड़ल्ले से पार्क होती हैं। प्रशासन का ध्यान नशे के व्यापार और VIP मूवमेंट में है। नगर निगम स्वच्छता अवार्ड में व्यस्त है, और जनता की परेशानियां तो किसी की प्राथमिकता में हैं ही नहीं।

महालक्ष्मी नगर एक उदाहरण है कि जब नियमों का पालन करने वाले चुप हो जाएं, और लापरवाहों का बोलबाला हो, तो हादसे और अराजकता कैसे आम हो जाते हैं। सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस अराजकता को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगा, या जनता इसी नियति को सहने के लिए मजबूर रहेगी?