मोहन यादव की ताजपोशी ,एक तीर से कई निशाने

अनगिनत कयासों को ठीक उलटते हुए भाजपा हाईकमान ने दिए कई महत्वपूर्ण सन्देश ,दिग्गजों को साइड लाइन कर मौका दिया एक युवा चेहरे को ,बेशक पर्यवेक्षक भेजे गए लेकिन स्पष्ट हो गया की वे विधायकों की राय जानने नहीं हाईकमान का फैसला सुनाने आये थे ,मुख्यमंत्री ,उपमुख्यमंत्री दोनों ही चीज़ों का कयास कोई नहीं लगा पाया ,दिग्गजों को प्रदेश राजनीती में कोई महत्वपूर्ण पद नहीं ,जिनके नाम प्रमुखता से बाजार में चल रहे थे उन्हें किया साइड लाइन ,क्या कुछ कहती हे ये रणनीति ?

मोहन यादव की ताजपोशी ,एक तीर से कई निशाने
courtesy: The ET

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर 

कहते हैं "Action speaks louder then words " और यही भाजपा हाईकमान की कुछ सालों से निति रही हे ,मीडिया से लगाकर बुद्धिजीवी ,राजनैतिक विश्लेषक जिन बातों को लेकर कयास लगाते रहते हैं उन्हें भी इस निर्णय ने  आउट ऑफ़ द बॉक्स सोचने पर मजबूर कर दिया ,स्पष्ट कर दिया की आलाकमान जिन बातों को सूक्ष्मता से देख रहा हे समझ रहा हे वो कुछ अलग ही हैं ,जिन बातों को मीडिया चटखारे ले कर लिखता ,बोलता हे आलाकमान की सोच उससे कही आगे हे ,यहाँ समस्या का त्वरित नहीं स्थाई समाधान होता हे ! "जब तक ज़रूरी नहीं तब तक बात नहीं" की निति एक बार फिर स्पष्ट कर दी गयी ,एक बार फिर सन्देश "समस्या नहीं समाधान" पर नज़र ! मोहन यादव की ताजपोशी ने बहुत हद तक एक सन्देश दिया की कर्म करते रहो फल की चिंता मत करो के साथ वर्षों से प्रदेश भाजपा में चल रही गुप्त अदावत का भी अंत कर दिया ! कैलाश विजयवर्गीय और शिवराज की अदावत किसी से छुपी नहीं ,वहीँ प्रह्लाद पटेल पर पहेली FIR का सत्य भी सबके सामने हे ,त्रिकोणीय स्तर पर चल रही यह फ़ज़ीहत भी यादव की ताजपोशी से कही न कही अब खत्म हो जाये ,क्यूंकि किस्सा कुर्सी का था और अब कुर्सी ही ख़त्म ! अक्सर स्थानीय मुद्दों पर हाईकमान की नज़र नहीं होती और अगर होती भी थी तो स्थानीय नेतृत्व तक ही उसे सिमित रखा जाता था ,लेकिन इस निर्णय ने एक बात और साफ़ कर दी की पार्टी लाइन से आगे कोई भी नहीं बढ़ सकता ,अगर राष्ट्रहित सर्वोपरि हे तो पार्टी और उसकी गाइड लाइन ही लक्ष्मण रेखा हे ! शुरू से ही संघ और भाजपा का राष्ट्रहित की निति पर चुनाव लड़ रही थी ,और यह सिर्फ चुनावी जुमला नहीं था !   

मोहन यादव  की ताजपोशी का कार्यकर्ताओं पर असर 

चुनाव की शुरुआत से ही पार्टी के कई वरिष्ठ नेता वर्षों से उपेक्षा झेल रहे जमीनी कार्यकर्ताओं का मुद्दा हर मोर्चे पर उठा रहे थे, और ऐसा नहीं है कि यह मुद्दा सिर्फ वही उठा रहे थे ! जमीनी स्तर पर यह एक हकीकत भी थी ! बेशक हाईकमान द्वारा समय रहते हैं इस समस्या का भी हल निकाल लिया गया और एक अस्थाई निराकरण भी दे दिया, लेकिन कहीं ना कहीं इस समस्या का स्थाई हल भी कार्यकर्ताओं तक पहुंचाना वक्त की जरूरत बन चुकी थी ! मोहन यादव की ताजपोशी ने अब स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा में कद नहीं कार्य देखा जाता है और जिम्मेदारियां देने में योग्यता के अनुसार कभी भी कुछ भी हो सकता है ! अक्सर सभी राजनीतिक पार्टियों कि यह परिपाटी बन चुकी थी के सत्ता के पद पर सिर्फ वरिष्ठों का हक हुआ करता था ,और अगर उनका किसी कारण  यह ढुलमुल होता था तो उन्ही के वंश का कोई उनकी रियासत पर कब्ज़ा करता था ,लेकिन भाजपा ने अब इस परिपाटी को भी बदलने का संकेत कहीं कहीं दे दिया हे ! और होना भी चाहिए क्यूंकि राजतन्त्र और लोकतंत्र में यही फर्क होता हे ,राजतन्त्र में राजा कोख से और लोकतंत्र में राजा मतदान से पैदा होता हे ! बेशक पिछले कुछ सालों में कोख से पैदा हुए राजा भी जनता ने देखे जिनका बिना अनुभव बिना योग्यता के राजतिलक तो करवा दिया लेकिन वे राजधर्म निभाने में कहीं न कहीं असफल ही हुए !

पुरुषार्थ और भाग्य   

अक्सर राजनेताओं को अपने पुरुषार्थ पर अत्यधिक भरोसा बना हुआ रहता हे ,जिसके बलबुते पर वह सत्ता में अपनी लगातार दावेदारी करते रहते हैं  ! कहीं न कहीं हाईकमान भी उनके उस पुरुषार्थ को अनदेखा नहीं कर पाता था ! लेकिन इस बार लगातार आ रहे बयानों की समीक्षा की जाए तो यह बदलाव शुरुआत से ही दबी ज़ुबान में देखने को मिलता हे ,जब खुद अमित शाह यह कह चुके थे की बदलाव श्रुष्टि का नियम हे और यह होता ही हे ! पुरुषार्थ और भाग्य में बस इतनी ही दुरी भी होती हे ,अगर सिर्फ पुरुषार्थ ही होता तो राजा विराट के घर महाबली भीम को रोटी नहीं बनानी पड़ती ,और अजेय अर्जुन को वृहनला नहीं बनान पड़ता और न ही पांडवों और राजा राम को वनवास भोगना पड़ता ! कहना भी ठीक होगा बलवान इंसान नहीं वक़्त होता हे ,और जब यह फैसले लेता हे तो........ !!!!!!!!