रतन टाटा: एक युग का अंत, आपको कैसे कहें अलविदा..?
रतन टाटा को भारत सरकार की तरफ से पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे अवार्ड मिल चुके हैं, लेकिन वे तो भारत के असल रत्न थे, एक ऐसा रत्न, जिसका पूरा जीवन बेदाग रहा। कर्म योग यानी निष्काम भाव से देश के लिए कर्म। ज्ञान योग यानी दूरंदेशी और जन के मन की गहरी समझ। ध्यान योग यानी मानवता की उन्नति और तरक्की के लिए चिंतन। भक्ति योग यानी कर्म को पूजा मानकर बिना रुके, बिना थके, निरंतर गतिमान। सांख्य योग यानी बिना आसक्ति के कर्मयोग का संपूर्णता से पालन। टा....टा..... हम नमन करते हैं, देश की उस शख्सियत को जो हजारों वर्षों में एक बार धरा पर अवतरण लेती है।
कुछ जीवन ऐसे होते हैं जो केवल अपने काम से नहीं, बल्कि अपनी आत्मा की गहराई से पहचाने जाते हैं। रतन टाटा का नाम भले ही उद्योगपति के रूप में प्रसिद्ध हो, लेकिन उनका असली परिचय उनकी विनम्रता, सादगी और समाज के प्रति उनकी असीम करुणा से जुड़ा है। आज जब हम उन्हें अंतिम विदाई दे रहे हैं, तो यह केवल एक महान उद्योगपति को अलविदा कहना नहीं है, बल्कि एक ऐसे इंसान को श्रद्धांजलि देना है जिसने अपने जीवन से यह सिखाया कि सच्ची महानता किसी चमक-धमक में नहीं, बल्कि सरलता और निस्वार्थता में होती है।
रतन टाटा का जन्म एक संपन्न और प्रतिष्ठित पारसी परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने कभी इस संपन्नता का बोझ अपने ऊपर नहीं लिया। टाटा समूह की बागडोर संभालने के बाद भी उनकी सबसे बड़ी पहचान उनकी विनम्रता थी। एक बार जब उनसे पूछा गया कि वह अपनी उपलब्धियों पर कैसा महसूस करते हैं, तो उन्होंने कहा, "मैं केवल अपना काम कर रहा हूं, जो भी किया, वह मेरी जिम्मेदारी थी।" यह उस व्यक्ति की बात थी जिसने नैनो जैसी क्रांतिकारी कार लॉन्च की थी। नैनो सिर्फ एक कार नहीं थी, यह एक सपना था—हर भारतीय को कार की सवारी का सपना। लेकिन जब यह कार व्यावसायिक रूप से सफल नहीं हो पाई, तब भी उन्होंने इसे अपनी हार नहीं माना। उन्होंने कहा, "मैंने कोशिश की, क्योंकि मैं चाहता था कि आम आदमी भी एक कार का सपना देख सके।" यह वह दृष्टिकोण था, जो उन्हें दूसरों से अलग करता था—उन्होंने हमेशा समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को पहले रखा।
जागुआर-लैंडरोवर और टाटा
रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने कई ऐतिहासिक औद्योगिक निर्णय लिए। इनमें सबसे प्रमुख था 2008 में ब्रिटिश मोटर कंपनियों जगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण। इस निर्णय के समय, बहुत से आलोचक यह मानते थे कि यह एक जोखिम भरा कदम था, लेकिन रतन टाटा ने अपने दृष्टिकोण और निर्णय लेने की क्षमता से इसे एक बड़ी सफलता में बदल दिया। उन्होंने न केवल इन कंपनियों को पुनर्जीवित किया, बल्कि उन्हें वैश्विक ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में एक नई पहचान दिलाई। इसके अलावा, टाटा स्टील का 2007 में कोरस का अधिग्रहण भी एक और साहसी निर्णय था, जिससे टाटा समूह ने वैश्विक इस्पात उद्योग में एक मजबूत उपस्थिति दर्ज की। यह अधिग्रहण उस समय का सबसे बड़ा विदेशी सौदा था, जिसने भारत को औद्योगिक विकास के नए आयाम दिए।
मुंबई हमला और टाटा
रतन टाटा का जीवन ऐसे अनगिनत उदाहरणों से भरा हुआ है, जो उनके महान दिल को दर्शाते हैं। 26/11 के मुंबई हमले के बाद, जब ताज होटल में तबाही मची थी, तब रतन टाटा ने अपने कर्मचारियों और वहां के पीड़ितों के परिवारों की व्यक्तिगत रूप से देखभाल की। उन्होंने उन परिवारों के दरवाजे पर जाकर उनसे मुलाकात की, जो इस हमले में अपने प्रियजनों को खो चुके थे। यह काम उन्होंने बिना किसी मीडिया प्रचार या शोर-शराबे के किया। वह उन करोड़पति मालिकों में से नहीं थे, जो केवल लाभ के लिए जीते थे। उनके लिए हर व्यक्ति की गरिमा मायने रखती थी। यही वजह थी कि उन्होंने अपने कर्मचारियों के जीवन में सुधार लाने के लिए व्यक्तिगत रूप से कदम उठाए।
सादगी की मूरत टाटा
उनकी सादगी और सरलता का एक और मार्मिक उदाहरण तब सामने आया जब वे एक साधारण उड़ान में इकॉनमी क्लास में बैठे दिखाई दिए। रतन टाटा की आर्थिक स्थिति इतनी बुलंद थी कि वे किसी भी निजी जेट या प्रथम श्रेणी की सुविधाओं का उपयोग कर सकते थे, लेकिन उन्होंने हमेशा साधारण जीवनशैली अपनाई। उनके लिए धन और वैभव केवल साधन थे, साध्य नहीं। एक बार उनसे जब पूछा गया कि उन्होंने विवाह क्यों नहीं किया, तो उन्होंने बड़ी सरलता से कहा, "शायद मेरे जीवन का उद्देश्य कुछ और था, शायद मुझे अपने परिवार से परे समाज की सेवा करनी थी।"
उनके व्यक्तिगत जीवन में भी उनकी विनम्रता और सादगी साफ दिखाई देती थी। एक बार जब एक ट्विटर यूजर ने मजाक में कहा कि रतन टाटा ने उसे फॉलो क्यों नहीं किया, तो रतन टाटा ने न केवल उसे फॉलो किया बल्कि धन्यवाद भी दिया। यह वह इंसान था, जो अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान के बावजूद आम लोगों से जुड़ा हुआ था। उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि वह किसी से ऊपर हैं, बल्कि हमेशा यह माना कि हर व्यक्ति की कहानी महत्वपूर्ण होती है।
मानवता की सेवा का ध्येय टाटा
रतन टाटा के परोपकार को किसी भी रूप में मापा नहीं जा सकता। उन्होंने अपने ट्रस्ट्स के माध्यम से न केवल शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में योगदान दिया, बल्कि उन क्षेत्रों में भी काम किया, जहां आमतौर पर उद्योगपति अपने कदम रखने से कतराते हैं। एक बार उन्होंने कहा था, "अगर हम केवल अपने लिए काम करेंगे, तो हमें जीवन में कोई सच्ची खुशी नहीं मिलेगी।" और सचमुच, उन्होंने इस विचार को अपने हर निर्णय में साकार किया। चाहे वह ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने का प्रयास हो या लाखों छात्रों को छात्रवृत्ति देकर उन्हें उज्जवल भविष्य का मार्ग दिखाना, रतन टाटा का हर काम इस बात का प्रमाण था कि वे केवल एक उद्योगपति नहीं, बल्कि एक सच्चे समाजसेवी थे।
पर कहना पड़ेगा अलविदा...टाटा...
रतन टाटा का निधन हमारे लिए केवल एक महान उद्योगपति को खोना नहीं है, बल्कि एक ऐसे इंसान को अलविदा कहना है, जिसने अपने जीवन की हर सांस को दूसरों की भलाई में खर्च किया। उन्होंने हमें यह सिखाया कि सच्चा नेतृत्व केवल बड़े फैसलों में नहीं, बल्कि छोटे-छोटे कार्यों में भी झलकता है। चाहे वह किसी कर्मचारी का सम्मान हो, किसी जरूरतमंद की मदद हो, या फिर समाज की भलाई के लिए किया गया कोई काम—रतन टाटा ने अपने हर कदम से हमें यह सिखाया कि असली सफलता केवल धन और शक्ति में नहीं, बल्कि सादगी और सेवा में निहित होती है।
आज जब हम उन्हें विदाई दे रहे हैं, तो हमारी आंखों में आंसू हैं, लेकिन दिल में गर्व भी है कि हमने अपने जीवनकाल में एक ऐसे व्यक्ति को देखा, जिसने अपने हर कार्य से यह सिद्ध किया कि इंसानियत और विनम्रता से बड़ा कोई गुण नहीं। रतन टाटा के जाने से एक युग का अंत हुआ है, लेकिन उनकी सादगी, करुणा और परोपकार की विरासत हमेशा जिंदा रहेगी।
- नीरज द्विवेदी- संपादक, द एक्सपोज लाइव