एनओसी निरस्त करने का मामला उलझेगा आईडीए और टीएनसीपी के बीच
योजना 97 में सर्वोच्च न्यायालय से केस जीतने के बाद भी धड़ल्ले से खरीद-फरोख्त हो रही है। भोपाल में प्रमुख सचिव द्वारा सुनवाई करते हुए घोटाला पकड़ाया था। इसके बाद भी प्राधिकरण संशय की स्थिति नहीं हटा रहा है। 1500 करोड़ की ज़मीन पर करोड़ों का निवेश किया जा चुका है।
योजना 97 में सर्वोच्च न्यायालय में प्रकरण होने के बावजूद आईडीए ने जारी की 20 से अधिक एनओसी
द एक्सपोज लाइव न्यूज़ नेटवर्क, इंदौर।
योजना क्रमांक 97 का केस प्राधिकरण अपने पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय से पिछले महीने जीत चुका है। इसी योजना में सुयश एक्सिम को जारी की गई एनओसी को त्रुटिपूर्ण मानते हुए दोषी अधिकारियों पर विभागीय जांच का आदेश भी प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई दे चुके हैं। बावजूद इसके प्राधिकरण पैदा हुई संशय की स्थिति को खत्म करने में है नाकाम दिख रहा है।
अब प्राधिकरण पूरे मामले को टीएनसीपी विभाग पर डालने की तैयारी कर रहा है। मामले की सुनवाई करते हुए प्रमुख सचिव के सामने प्राधिकरण ने यह तर्क रखा था की योजना से भूमियों को मुक्त करने की शक्तियां केवल धारा 52 के तहत राज्य शासन के पास निहित है और हमारे द्वारा दी गई जानकारी, जिसे एनओसी भी कहा जाता है, उसका कोई महत्व नहीं है। इसलिए यह कहना की भूमियों को प्राधिकरण ने योजना से मुक्त किया है गलत है।
इसकके बाद प्रमुख सचिव ने भी अपने आदेश में लिखा कि धारा 50 की अधिसूचना शामिल हो चुकी भूमियों पर कोई भी खरीदी-बिक्री नहीं की जा सकती है, ना ही उस पर कोई निजी विकास कार्य किया जा सकता है। किसी भी भूमि को योजना से मुक्त करना धारा 52 में सिर्फ राज्य शासन का ही अधिकार है। इसी बात को लेकर जहां प्राधिकरण का एक धड़ा जहां जारी हो चुकी त्रुटिपूर्ण एनओसी को निरस्त करने की बात कर रहा है, वहीं एक धड़ा सिरे से निरस्तीकरण को नकार रहा है और अब पूरा मामला टीएनसीपी के पाले में खिसकाने की तैयारी कर रहा है।
एक्सपोज लाइव ने किया था खुलासा
इस मामले में एक्सपोज लाइव ने पहले ही एक खबर के जरिए चेताया था कि किस तरह यह घोटाला हो रहा है। इस संबंध में पूरी खबर पढ़े यहां –
भूअर्जन अधिकारी ने प्राधिकरण को पहुंचाया करोड़ों का नुकसान
किसने जारी की एनओसी
दरअसल ये एनओसी वर्ष 2010 से लेकर 2013 तक भू-अर्जन अधिकारी रहै रिपुसूदन शर्मा और प्रतुल सिन्हा द्वारा जारी की गई थीं। जहाँ रिपुसूदन शर्मा सेवानिवृत्त हो चुके हैं, वहीं प्रतुल सिन्हा एमपीआईडीसी इंदौर में पदस्थ है। अब देखना यह है कि प्रमुख सचिव के आदेश के बाद दोनों पर क्या कार्यवाही की जाती है। सेवानिवृत्ति के बाद विभागीय जांच संभव नहीं है, लेकिन आईपीसी की धारा 467 के तहत धोखाधड़ी का मामला ज़रूर दर्ज किया जा सकता है।
एनओसी को मात्र जानकारी बता कर गुमराह कर रहा प्राधिकरण
अपने अधिकारीयों को बचाने की मंशा के चलते प्राधिकरण ने तर्क दिया की हम सिर्फ बतौर जानकारी ऐसे पत्र निकाल देते हैं, जबकि आईडीए की एनओसी मिलते ही टीएनसीपी न सिर्फ स्थल अनुमोदन कर देता है, बल्कि निगम भी उस भूमि पर भवन अनुज्ञा जारी कर देता है। जहाँ तक जानकारी की बात है, योजना की अधिसूचना अस्तित्व में रहते हुए प्राधिकरण किसी भी भूमि के बारे में ऐसी जानकारी नहीं दे सकता। अगर योजना की अधिसूचना और भूअर्जन की कार्यवाही शुरू हो जाती है तो किसी भी सूरत में एनओसी जारी नहीं की जा सकती है।
जारी की गई हैं इस तरह की एनओसी
बिक चुकी जमीन पर क्या करेगा आईडीए..?
सुयश एक्सिम के मामले में भी ठीक उल्टा हुवा है। प्राधिकरण आज भी कई ऐसे सवाल पर मौन है, जैसे अगर एनओसी मिलने के बाद उस भूमि का स्वामित्व ही बदल गया हो और ज़मीन किसी तीसरे के नाम वैधानिक तरीके से हो चुकी है तो प्राधिकरण अधिसूचना अस्तित्व में रहते हुए और सर्वोच्च न्यायलय से केस जीतने के बाद भी कुछ नहीं कर पायेगा, क्यूंकि अधिसूचना में नाम किसी और का है और आज मौके पर भूमि का मालिक कोई और है।
जीतने के बाद भी नहीं मिलेगा कुछ भी
बेशक प्राधिकरण अध्यक्ष ने भौतिक सत्यापन की बात कहते हुए योजना की भूमियों के भौतिक सत्यापन की बात कही थी, लेकिन आज तक भी इस ओर कोई ठोस रिपोर्ट प्राधिकरण जुटा पाया है। कुल मिलाकर सबकुछ जीतने के बाद भी प्राधिकरण को कुछ खास हासिल हो जाये ऐसा दिख नहीं रहा। इस पूरे घटनाक्रम ने फिर प्राधिकरण की कार्यशैली को उजागर किया है।
हम नहीं हैं जिम्मेदार
कस्टोडियन डिपार्टमेंट से सुयश एक्सिम के मामले में जो भी एनओसी जारी की गयी है, उसके लिए टीएनसीपी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। योजना के सारे दस्तावेज प्राधिकरण के पास मौजूद थे, बावजूद उसके भ्रामक जानकारी दी गयी। हमने स्थल अनुमोदन रवोक कर दिया है, जिसको सुयश एक्सिम ने उच्च न्यायलय में चुनौती दी है, हम शासन के सामने पक्ष पूरी तरह स्पष्ट करेंगे।
एस के मुद्गल, संयुक्त संचालक, टीएनसीपी