प्राधिकरण ने विधायक को पकड़ाया खत्म कानून से डी नोटिफिकेशन का लॉलीपॉप
समय रहते विधिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया और उसी कृत्य को छुपाने के लिए ख़त्म योजनाओं डी नोटिफाई करने और कई भूमियों के मूल स्वरूप में परिवर्तन आने के बाद एक नया डी नोटिफाई का चक्रव्यूह रचा जा रहा हे ,जबकि कई प्रकरण ऐसे है की शासन के निर्णय को प्राधिकारण ने नहीं माना और कोर्ट में याचिका दायर की गई। अब जब अधिकारियो द्वारा किए गए कृत्य जिसका समय समय समय पर बोर्ड ने भी सहयोग किया और वही कृत्य वर्तमान बोर्ड भी कर रहा है !अतीत की गलतियों को सुधार कर सही निर्णय यदि नहीं लिया जाता है तो इंदौर के हजारों लोगों को न्याय मिलने की रास्ता कैसे निकलेगा ? खत्म कानून में डी नोटिफाई की कार्यवाही कैसे संभव हैं क्योंकि जो कानून जीवित नहीं है उसके अंतर्गत डी नोटिफाई अधिकार ही नहीं है !
दशकों से ज़मीनें प्राधिकरण की योजनाओं में उलझी पड़ी ,हर बार छोड़ने के नाम पर खेला जाता हे एक नया दांव ,इस बार खत्म हो चुके कानून की धारा में ज़मीनें छोड़ने का आश्वाशन , अधिकारियों को चुनाव खत्म होने का इंतज़ार क्यूंकि उसके बाद सिकंदर तो वही होंगे ,ज़मीनें मुक्त करने में कोई दिलचस्पी नहीं ! आईडीए का सच कोर्ट में विचाराधीन, अनगिनत प्रकरण आज तक लंबित
द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर
गोल गोल धानी इत्ता इत्ता पानी इस खेल को खेलते खेलते कई जवान हो गए और कई बुज़ुर्ग लेकिन इंदौर विकास प्राधिकरण जिसे कई और भी उपनामों से जाना जाता हे आज भी इस खेल को बखूबी खेलते दीख रहा हे ! खिलाडी बदलते रहे लेकिन तासीर और ज़स्बा आज भी वही ! यूँ तो प्राधिकरण का जन्म मास्टर प्लान की सड़कों के निर्माण के लिए हुवा था लेकिन धीरे धीरे एक सरकारी कॉलोनाइजर बन गया ,बिना ज़मीन खरीदे कॉलोनी विकसित करना इसकी सबसे बड़ी ताकत बन गयी ,भूमि अधिग्रहण का हथियार प्राधिकरण को मिल गया और किसानों के बुरे दिनों की शुरुआत हो गयी , किसान ही नहीं अब तो जनता भी परेशान होने लगी !
वर्षों से बिना विकास पड़ी भूमियों को योजना से मुक्त करवाने पीड़ित जनता के साथ जैसे ही विधायक मेंदोला पहुंचे , प्राधिकरण ने खत्म हो चुके कानून के तहत ज़मीनों को डी नोटिफाई करने का दिया आश्वाशन ,जहाँ १० % से कम विकास हुआ उन्हें योजना से मुक्त करने का कानून पहले ही लागु ,लेकिन फिर एक नया खेल ,कैसे भी चुनाव हो जाएँ ,ज़मीन छोड़ने की नहीं मंशा ,फिर सामने आया प्राधिकरण का खौफनाक रूप , कानून का जानकार प्राधिकरण कैसे जनता और जन प्रतिनिधियों को करता हे गुमराह इसे समझने की ज़रूरत , 1894 कानून खत्म हुए दशक बीतने को आया लेकिन फिर भी उसी में राहत देने की बात , नविन भूमि अधिग्रहण 2013 आ गया अस्तित्व में , न्यायालय द्वारा ख़त्म की जा चुकी योजनाओं में डी नोटिफिकेशन की ज़रूरत नहीं होने का वर्ष 2016 में संकल्प पारित , जिसमें शासन को सूचना देने का लेख है जो कभी दिया नहीं क्योंकि प्राधिकरण का काम का तरीका शासन के ऊपर प्रशासन करने का है ! स्थिती बिगड़ती देख अब कहा जा रहा ऐसी योजनाएं में भी शासन द्वारा डी नोटिफिकेशन की ज़रूरत ,प्राधिकरण बोर्ड की कार्यशैली संदेह के घेरे में ! इसके पहले विधायक हार्डिया भी कई बार प्राधिकरण की कार्यशैली पर गंभीर सवाल विधानसभा तक उठा चुके हैं !
योजना के नाम पर प्राधिकरण ने सैकड़ों हेक्टेयर ज़मीनों की अधिसूचना निकलना शुरू कर दी ,अगर आंकड़ों की बात करें तो लगभग 177 योजनाएं प्राधिकरण अब तक निकाल चूका हे और अभी हाल ही में TPS के नाम से 9 नवीन योजनएं प्राधिकरण ने बनाई हैं ! हर योजना में कुछ न कुछ खामी रखना भी इसकी आदत में शुमार हो गया जिसका कारण रहा भूमाफियों का विकास ! कई योजना को न्यायलय में चुनौती दी गयी ,कई योजना को न्यायालय द्वारा ख़तम कर दिया ,कुछ में खुद प्राधिकरण ने भूमिस्वामियों की ज़मीन अनापत्ति प्रमाण पत्र दे कर योजना से मुक्त कर दी ,जिन्हे मुक्त किया गया उस पर नगर तथा ग्राम निवेश ने स्थल अनुमोदन भी दिया और कलेक्टर कार्यालय ने डायवर्सन भी कर दिया ! कुछ ज़मीने दशकों से बिना विकास पड़ी रही और वहां निर्माण हो गए ! अब इन्ही सब बातों को ले कर शहर की जनता परेशान हे जिसे समझते हुए प्रदेश सरकार ने कानून बनाया ,कानून में लिखा गया की जिन योजनों में स्वीकृत राशि का 10 % भी विकास नहीं किया जा सका हे ऐसी योजनाओं की भूमियां स्वतः मुक्त हो जाती हैं लेकिन आज तक इस और कोई बात नहीं की जा रही !
योजना के सच को ऐसे भी समझा जा सकता
प्राधिकरण अक्सर 2 तरह से भूमि का अधिग्रहण करता आया हे ,पहला TNCP एक्ट की धारा 56 में आपसी समझौते से और दूसरा अनिवार्य अर्जन 1894 भूमि अधिग्रहण के तहत ,दोनों ही कानून अधिग्रहण शासन की स्वीकृति के बाद ही संभव होता हे ,बेशक TNCP एक्ट राज्य और 1894 कानून केन्द्र सरकार का हे ,जो की वर्ष 2014 में नविन भूमि अधिग्रहण आने के बाद ख़तम हो चूका हे ! नविन भूमि अधिग्रहण के तहत प्राधिकरण द्वारा अभी तक कोई भी योजना स्वीकृत नहीं की जा सकी हे क्यूंकि उसमे नगद मुआवज़े की शर्तें किसान हितेषी होने के साथ स्पष्ट भी हैं ! 1894 कानून जो की अंग्रेज़ों द्वारा बनाया गया था और शासन हितेषी होते हूए किसान विरोधी भी हुवा करता था जिसे प्राधिकरण ने हथियार बना कर एक अच्छा खासा लैंड बैंक तैयार कर लिया ,बेशक आज उसपर भूमाफिया काबिज़ हैं ये बात अलग हे ! और उनको उस जगह से हटाने में प्राधिकरण की कोई विशेष रूचि भी नहीं ,कारण भी स्पष्ट हे !
कैसे आ रही समस्या
प्राधिकरण द्वारा जो भी भूमियां अधिग्रहित की जा चुकी हैं उसमे से कई योजनाएं ऐसी हैं जिसमे अधिग्रहण की कार्यवाही पूर्ण नहीं की जा सकी हैं ,महज़ प्रारंभिक अधिसूचना जारी कर छोड़ दिया गया हे जैसे योजना 171जिसमे लगभग 13 संस्थाएं आज तक परेशान हैं ,दूसरा ऐसी कई योजनएं हैं जो आरभ से ही विधि अनुसार नहीं थी और न्यायलय में चुनौती देते ही उस योजना को न्यायलय द्वारा समाप्त कर दिया गया जैसे योजना 53,77,95 और 47 ए जिसमे प्राधिकरण द्वारा अन्नपति प्रमाण पत्र अपने स्तर पर जारी कर भूमियां योजना से मुक्त कर दी गयी ,तीसरा ऐसी योजनएं हैं जहाँ अवार्ड घोषित कर कोई अन्य कार्यवाही नहीं की जा सकी और विकास भी आधा अधूरा छोड़ दिया गया और अब वहां कॉलोनियां बस चुकी हैं जिसके लिए निगम द्वारा अन्नपति प्रमाण पत्र की मांग की गयी हे ,ऐसी ही कई कॉलोनियां और भी हैं जिसके लिए अब जनप्रतिनिधि भी सक्रिय हो गए हैं जिन्हे पुराने कानून के तहत डी नोटिफिकेशन की लॉलीपॉप पकड़ा दी गयी हे ! अब सवाल यह उठ रहा हे जब कानून ही ख़तम हो गया तो तो उसके तहत अन्य कोई कार्यवाही कैसे की जा सकती हे ? अगर हो भी गयी तो क्या वो विधिक रूप से सही मणि जा सकती हे ?
- जहाँ तक मात्र प्रारभिक अधिसूचना जारी कर कोई अन्य कार्य नहीं किया गया हे उसके लिए कानून बन चूका हे जिसमे अगर स्वीकृत राशि का 10 % से भी काम खर्च किया गया हे वो सारी भूमियां स्वतः ही योजना से मुक्त हो जाती हैं जिसे प्राधिकरण द्वारा लगातार या तो छुपाया जा रहा हे या गुमराह किया जा रहा हे !
- जहां तक न्यायालय द्वारा विधिक रूप से समाप्त योजनाओं का प्रश्न है ऐसी योजनाओं में प्राधिकरण पहले ही अनापत्ति प्रमाण पत्र देकर भूमियों को मुक्त कर चुका है और अब उन्हीं भूमियों को डी नोटिफिकेशन करने की बात कर रहा है अब सवाल यह उठ रहा है कि जब अनापत्ति प्रमाण पत्र पहले जारी कर दिया गया उस पर अन्य विभागों द्वारा भी कार्यवाही कर दी गई अब उसे डिनोटिफाई करने की बात की जा रही है तो यह कितना विधि सम्मत है क्योंकि अगर ऐसा किया जाता है तो अन्य विभागों द्वारा की गई कार्यवाही भी स्वतः शून्य हो जाती है और पुनः वही कार्यवाही के लिए लोगों को विभागों के चक्कर लगाने पड़ेंगे ! ऐसी ही कई अन्य भूमियां और संस्थाएं आज समाप्त हो चुकी योजनाओं में मौजूद हैं जहां पर भूमि अधिग्रहण के किसी भी कानून के तहत वह भूमियां मुक्त हो जाती हैं जिसका सटीक उदाहरण योजना 53 में रघुवंशी गृह निर्माण जैसी संस्था है जिसे प्राधिकरण ने आज भी लटका के रखा हुआ है जबकि ना तो भूमि का विधिवत अधिग्रहण किया गया है ना ही योजना अब विधिक रूप से मौजूद हे , योजना अनुसार वहां विकास भी नहीं किया जा सकता है और ना ही 10% से ज्यादा राशि खर्च की गई है दरअसल योजना 53 में जो भी थोड़ी बहुत राशि खर्च की गई है उसकी कभी स्वीकृति भी नहीं ली गई थी !
- जो भूमिया बिना विकास के आज भी योजनाओं में जीवित है लेकिन वहां बस्तियां बस चुकी है उसे भी अगर डीनोटिफाई किया जाता है तो वह विधिसम्मत नहीं होगा क्योंकि डी नोटिफिकेशन का प्रावधान 1894 कानून में ही दिया गया है जो पहले ही निरसित हो चुका है
- बहरहाल अगर वाक़ई प्राधिकरण जनता और जनप्रतिनिधियों को रहत देना चाहता हे तो रास्ते साफ़ हैं लेकिन क्यों गुमराह कर रहा हे यह शोध का विषय हो सकता हे !