मंसूबा मंसूबा में मालवा का साथ ज़मीन माता के भी डुबाई दोगा

बम काण्ड के बाद बदला चुनावी माहौल ,अनुभवी कांग्रेस पार्टी द्वारा नोटा पर वोट का प्रचार क्या उसके वोटर और राष्ट्र हित में है ? नोटा का विकल्प वोटर के लिय है न की किसी पार्टी के लिय ,ग्रामीण क्षैत्र में बीजेपी की दिक्कत नीलगाय (रोजडे) और अनियंत्रित भूमि अधिग्रहण और शहरी क्षेत्र में बम कांड,वहीँ संघ से जुदा हुआ तीसरा मोर्चा मुद्दों के साथ बना रहा अपनी पकड़

मंसूबा मंसूबा में मालवा का साथ ज़मीन माता के भी डुबाई दोगा

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर 

"6 महीना से सोची रिया हों के कई करा , कोई के की बीजेपी का नेता कने चलो कोई के की कांग्रेस का नेता कने चलो , कोई के की हर गांव से निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा कर दो । अरे कई मत करों भगवान ने तमारो आधो काम  तो कर दियो है क्योंकि कांग्रेस को उम्मीदवार बीजेपी में शामिल हुईं गयो है । और जो बीजेपी को उम्मीदवार है वीके तमने पेला मोदी जी और हिंदुत्व का कारण जित्यई दियो थो तो विने पांच साल में यो काम करियो की अखा इन्दौर का आस पास 140 किलोमीटर की पेला  रोड़ बनयाई देगा ,फिर मास्टर प्लान लागू कर देगा । ताकि तमारा छोराऔर के बेरोजगार कर देगा।अभी 12 मई के एक काम कर लो इंना जनहित पार्टी वाला बा के वोट दी दो इनमें तमारे कई भी नी करनो है खाली अंगूठों लगानो है क्योंकि ईने भी देश वास्ते बीयाओ नी करियों हैं । मोदी ने कदी भी नि कीओ की जो आदमी विकास को नाम ली के तमारी ज़मीन ले वीके बोट तो । और यो काम करने वास्ते सभी मोबाईल पे अंगूठा से ट्रेक्टर फेर दो ताकि 12 तारीख का दन पूरी ज़मीन हकी जायेगी। नि तो जैसे रोजड़ा /नीलगाय की संख्या बड़ी है वैसी सीमेंट का जंगल की हुई जाएंगी "।

अंदाज़ा लगाया जा सकता हे की इंदौर शहर के आस पास 140 किलोमीटर की रिंग रोड़ ने किसानों की नींद किस कदर हराम कर रखी है, क्योंकि सरकार की परिभाषा में यह जमीनों का अधिग्रहण है और किसान की भाषा में उनके रोज़गार का अधिगृहण कर उनकी अगली पीढ़ियों को गुलामों वालें जीवन की तरफ़ धकेलना है ! इसके अलावा रोजड़े से हो रही परेशानी भी एक खासा मुद्दा हे जो आग की तरह फ़ैल रहा हे ! इसलिए किसान भी वर्तमान चुनाव में बीजेपी को वोट नहीं देने का मन बना रहें है पर वोट दे  किसको इसी कड़ी में जनहित पार्टी के प्रत्याशी के किसानों के बीच पहुंचने पर अब गावों में इस तरह से चर्चा शुरू हो गई है !

न जनता में उत्साह न कार्यकर्त्ता में उमंग 

शहर में बेमतलब हुए बम काण्ड ने सारे राजनैतिक समीकरण बदल दिए ,कुछ दिनों पहले तक कांग्रेस के गुमनाम प्रतिनिधि के सामने भाजपा जहाँ 10 लाख की लीड बता रही थी ,खुद भाजपा के राष्ट्रिय स्तर के नेता की टीम के द्वारा लाया गया राजनैतिक तूफान अब भाजपा के गले की हड्डी बनता जा रहा हे ,भले ही "भगोड़ा" उमीदवार कांग्रेस का झंडा उठाते उठाते अचानक से विरोधी झंडे के नीचे आ गया और दुश्मन के गुणगान गाने लगा ,लेकिन खुद भाजपा के सिपहसालारों के गले यह बात आसानी से उतरती नज़र नहीं आ रही ,जहाँ परंपरागत मतदाता जीत को ले कर निश्चिंत हो गया हे और अपने योगदान नगण्य भी समझने लगा हे ,भले ही जीत का अंतर पार्टी और नेता के लिए मायने रखता हो लेकिन मतदाताओं को इससे कुछ खास फर्क पड़ता दीख नहीं रहा ,जहाँ पुरे देश में मतदान प्रतिशत गिरा हे वहीँ  शहर की बात करें तो मतदान प्रतिशत में एक बड़ा अंतर देखने को मिल सकता हे ! रही बात कार्यकर्ताओं की तो यही भावना उनके मन में भी घर करती दिख रही हे ,बेशक कार्यकर्त्ता मैदान में हे लेकिन वो उत्साह कहीं न कहीं नदारद हे जो अंतिम दिन वोट प्रतिशत बढाने में खासी मदद करता हे ! 

वैसे तो सभी मुद्दे ऐसे हैं जिस पर मौजूदा सांसद कुछ विशेष राहत किसानों को नहीं दिलवा पाए हैं ,एक बार ही वो मौका देखने में आया जब उन्होंने निर्यात निति पर एक ठोस निति बनाने की संसद में मांग रखी थी ,लेकिन आज ग्रामीण इलाकों में सबसे बड़ा मुद्दा हे भूमि अधिग्रहण और नील गाय द्वारा  फसलों का नुकसान ! हाल ही में NHAI द्वारा इंदौर पश्चिम में रिंग रोड का निर्माण प्रस्तावित हे ,जिसका विरोध लगभग सारे किसान कर रहे हैं ,ये बात अलग हे की अभी तक उन्हें कोई आशा की किरण कहीं से दीख नहीं रही ,किसानों का आरोप हे की न तो कभी ग्रामीण इलाकों से इस प्रस्तावित रोड की मांग की गयी न ही इस रोड की कोई आवशयकता इंदौर  वासियों के लिए दीखती हे ,उनका आरोप हे की यह सब सरकार की उपलब्धि दिखाने की चाल हे ,केंद्र सरकार हर मंच पर  कहती हे की एक दिन में  100 की.मि रोड देश में बनाई जा रही हे ,जनता के सामने अपने इस दावे को मजबूत करने के लिए किसानों की उपजाऊ भूमि ली जा रही हे और उनके रोज़गार को छीना जा रहा हे ! सरकार बोलने के लिए ज़रूर बोलती हे की हम किसानों की सरकार हैं लेकिन असल में ऐसा कुछ नहीं हे ! किसानों की मांग हे की उद्योग बंजर भूमि पर लगें और अगर सड़क के लिए सिंचित भूमि का अधिग्रहण करने की ज़रूरत भी हो तो बदले में उतनी ही सिंचित भूमि किसानों को मिले ,भले ही इस बाबद कानून में बदलाव करने की ज़रूरत हो तो वो भी होना चाहिए ! वहीँ हर साल नील गाय (सही नाम रोजड़ा ) को लेकर भी अभी तक न राज्य और न केंद्र सरकार द्वारा किसानों को कोई राहत मिलती दीख रही हे ,बेशक सम्बंधित विभाग द्वारा पहले इस और एक आदेश दे दिया गया हे लेकिन बुद्धिजीवी जनप्रतिनिधियों को आदेश समझ ही नहीं आ रहा इसीलिए उसका क्रियान्वन भी नहीं हो पा रहा हे !  

कांग्रेस नोटा के भरोसे 

पहले उमीदवार के चयन में गलती कर बैठी कांग्रेस अब एक और गलती करने पर उतारू हे ,जिस तरीके से कांग्रेस ने अपना उमीदवार चुना था ,तभी से कोंग्रेसियों  अंतर्मन में पीड़ा झलकने लगी थी ,लेकिन पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ बोलने की किसी की हिम्मत नहीं थी ! जिस प्रकार टिकट दिया गया कई सवाल भी कांग्रेस पार्टी पर खुद कांग्रेस कार्यकर्त्ता दागते रहे ,लेकिन हिटलरशाही कहीं न कहीं भरी पड़ी और अंत वही हुआ जो हिटलरशाही का हुआ था ! हम तो डूबेंगे सनम........ !

अब जानकारों का कहना हे यदि कांग्रेस समय रहते नोटा वालें निर्णय पर विचार नहीं करता है तो इसके दूरगामी परीणाम घातक होंगे ।क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर जब अन्य दलों के साथ गठबंधन संभव है तो इन्दौर में उसके परंपरागत वोटर को योग्य  उम्मीदवार को क्यों नहीं दिया जा सकता है इसके साथ मतदाता के  मन में भी कहीं न कहीं ये सवाल खड़ा हो रहा हे की नोटा से लोकतंत्र, राष्ट्र और जनता का आखिर क्या भला होना हे , इसलिए  संघ की सोच जनहित पार्टी में कहीं न कहीं आज मतदाता ढूंढने लगा हे ! बम के बीजेपी में शमिल होने से कहीं न कहीं यह उसी घटना की और इशारा कर रहा है जिस तरह अल्प समय में आप पार्टी को जनता ने देश की राजधानी दिल्ली में सिरमौर  बनाया था । ऐसा प्रतीत होता है बम के बीजेपी में शमिल होने से जनहित पार्टी को भावी लाभ मिलने की संभावना प्रबल कर दी है ! "मै","तथ्यहिन्","स्वार्थ","अहंकार","दगा","सर्वश्रेष्ठ" जैसे शब्दों को परिभाषित करने के लिए आने वाली पीढ़ी के लिए दोनों ही राजनैतिक दलों के देव पुरुषों द्वारा किया गया यह कृत्य उदहारण ही बनेगा !

99 साल पुराना इतिहास की कहीं पुनरावत्ति तो नहीं 

देश के इतिहास में आज से ठीक 99 वर्ष पूर्व एक दृढ संकल्पित शख्श कांग्रेस की निति से रुष्ट हो अलग हुए थे ,और राष्ट्र के लिए समर्पित संघठन खड़ा किया था ,आज वही हालत फिर दखने को मिल रहे हैं जब नीतियों से रुष्ट एक और शख्श जुदा हुए हैं,बस अब फर्क इतना हे की इस बार जुदाई हो सकता हे राष्ट्र के लिए  समर्पित हो लेकिन माध्यम लोकतंत्र का रास्ता हे ! कुल मिला कर आत्मचिंतन का वक़्त दोनों ही दलों के लिए आ चूका हे ,और अगर इसमें कोई चूक हुई तो परिणाम दोनों ही दलों के लिए असहज ही होंगे !         

"क्षेत्रीय विधायक और प्रदेश सरकार के मंत्री जी से हम पीड़ित किसानों को इतनी मदद भी नहीं मिली की किसानों को राज्य पत्र में लेख अनुसार ब्यौरे किसानों को उपलब्ध हों जाए और जिन किसानों ने बीना ब्यौरे के आपत्ति लगा दी उसका क्या निराकारण हुआ उसकी जानकारी मिल जाये ,बिना सुने रोड प्रस्तावित  कर दी गयी और हमारे साथ न सांसद हैं न मंत्री । वही रोजड़ों को ले कर आदेश पहले ही मौजूद हे लेकिन कोई भी जनप्रतिनिधि अभी तक उसको क्रियान्वित नहीं करा पाया हे" ! अनिल व्यास (पीड़ित किसान-सांवेर )