वर्ण शंकर विचार धारा की और बढ़ती "भाजपा"

अल्पकालीन लाभ के लिय दीर्घ कालीन हानि की और अग्रसर, श्रीराम निति के साथ थे जनमत के साथ नहीं तभी तो रामराज्य को धरा का स्वर्णिम काल कहा जाता हे

वर्ण शंकर विचार धारा की और बढ़ती "भाजपा"
courtesy :Hariom

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर 

भाजपा के बड़े नेताओं ने जो खेल इंदौर में खेला ,पूरा देश और शहर स्तब्ध रह गया  और यह सोचने को मजबूर हो गया की यह राजनीति का उत्थान है या पतन ? क्योंकि एक मजबूत लोकतंत्र के पर्याय इस शहर ने फिर एक इतिहास रच दिया ! इस बार इतिहास के पन्नों में यह घटना सुनहरे अक्षरों में नहीं लिखी जाने वाली ,कितना कालिख शहर के मुँह पर फेंक दिया गया यह तो वक़्त ही बताएगा ,बहरहाल जो भी हुआ वो कोई नया नहीं हे ,पिछले कुछ वर्षों से "भाजपा" की यही रीती निति रही हे ,"तोड़ो और जोड़ो" ! साम ,दाम ,दंड, भेद कोई सा भी हथियार चला लो,दिल्ली सब संभाल लेगी ! होना भी चाहिए विपक्ष भी तो हाशिए पर जा ही चूका हे ,भाजपा को तो सत्ता का नशा हे ,विपक्ष कौन से अवसाद से घिर गया ? सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी का तमगा लगाने वाली विपक्षी पार्टी ,फूंक फूंक कर कदम रखने वाली पार्टी ,पंच और सरपंच के टिकट में भी स्क्रींनिंग करने वाली पार्टी ,आखिर अपने लोकसभा प्रत्याशी के चरित्र को समझने में गलती कैसे कर गयी ? 15 लाख की घडी पहनने वाला उमीदवार दिखाई दिया ,कर्म वीर उम्मीदवार नहीं दिखा । इसलिए  वर्तमान टिकिट दाता की आँखों का तारा लोकसभा उम्मीदवार ,चलते युद्ध में रणछोड़ दुश्मन खेमे में कैसे और क्यों जा बैठा ?  प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष स्तर के नेता भाजपा को कोसते कोसते अचानक से उस भाजपा में  शामिल हो गए  ! वो तो रणछोड़ कहे ही जायेंगे  लेकिन आपके मंझे नेता तो रण लड़ने से ही मना  कर गए ,उन्हें इतिहास में किस नाम से जाना जायेगा ये सब जानते हैं !

वास्तव में वह भाजपा में शामिल हुवै है या कलम के ऐनकाउंटर के भय उन्होंने अपने आप को अल्प समय के लिय सुरक्षित जैल में जमा कर लिया हे  यह तो समय ही बतायेगा। क्योंकि पुलिस जब ऐनकाउंटर के मोड पर रहती है तब समझदार बदमाश खुद को कुछ समय के लिय जैल में डाल लेते है ! यदि यह निति इन आने वाले राजनीतिज्ञो की रहीं तो यह संख्या लाखों में है जिसका भावी नुकसान करोड़ों में होगा ! इन्हे कांग्रेस ने किन शर्तों पर  प्रत्याशी बनाया  था ? जो नेता आज भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकते थे ,जिन लोगों ने जीवन भर पार्टी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया ,जिन कार्यकर्तओं की मुद्द्दों पर पकड़ हे ,जो लीड कम कर सकते थे उन्हें अलग हटा एक नया नवेला प्रत्याशी जिसे खुद अपने पर भरोसा नहीं हों उस पर कांग्रेस जैसी अनुभवी पार्टी ने टिकिट  क्यों  दे दिया ? ये सब शहर आपसे भी तो पूछ रहा हे !  जब भी कोई नेता आपको छोड़ भाजपा में शामिल हुआ एक ही बात सबने कही "हमें उचित सम्मान नहीं मिला" अब लोकसभा प्रत्याशी से बड़ा सम्मान तो कुछ भी नहीं हो सकता ? ( छचुंदर के माथे पर चमेली का तेल लगाने पर भी वह संतुष्ट नहीं होती  ) अब नए नवेले रूठे नेता को आखिर और कितना सम्मान आपकी पार्टी से चाहिए था ? पार्टी स्तर पर तो सबसे बड़ा सम्मान दे दिया गया था ,कुछ निजी सम्मान/स्वार्थ तो आड़े नहीं आ गया ? बेशक जनता जो हुआ उसे जायज़ नहीं मान रही, न ही भाजपा के बुद्धिजीवी वरिष्ठ नेता ,न कार्यकर्त्ता ,न संघ लेकिन सवाल तो आपसे भी जनता मांग ही रही हे ! मान लिया आप कमज़ोर हो गए हे लेकिन ज़िंदा तो आप आज भी हैं। जनता का सामना तो आपको भी करना ही पड़ेगा !पलायन करने वाले नेता और उनको अपनी पार्टी में स्थान देने वालें नेता के गलत होने से आप को सही कभी भी नहीं माना जा सकता है !

बेशक मान लिया जाए की कांग्रेस से प्रशिक्षित और मंझे नेता अब पार्टी का दामन छोड़ भाजपा में जा रहे हैं ,सत्ता का पूरा सुख कांग्रेस के झंडे तले  भोगने के बाद कहीं न कहीं प्रताड़ना की बात का बहाना बनाकर जिसका राज उसका पुत होने को चरितार्थ कर दल बदल कर कहने लगे ! भाजपा की निति में विकास का भविष्य है और अपने आप को "विकास" की मुख्य धारा से जोड़ भी लिया और जोड़ भी रहे हैं शायद जोड़ते भी रहेंगे। जबकि पूर्व के राजनीतिक जीवन में भाजपा को कोसते रहें। खेर कहते है बुरा वक़्त अपने और पराये के बीच  का अंतर समझा देता हे,कांग्रेस के लिए भी अब यह समय आत्मचिंतन का हे  ! आज कांग्रेस हाशिये पर भी हे ,इन्ही के बड़े नेताओं की मुद्द्दों पर पकड़ भी ढीली है ,जिस राम को पूरा देश अपना आराध्य देव मान पूजता है उन्ही के भव्य मंदिर का विरोध भी ये कर देते हैं ! लेकिन जिस राम और हनुमान की छत्र छाया में भाजपा आज बैठी है ,कहीं न कहीं उनके पद चिन्हों का अनुसरण करने में  लगातार बड़ी चूक भी करती जा रही है जिसका आंशिक परिणाम शीघ्र ही सामने आ सकता है। ,बेशक आपने प्रभु श्री राम को पूर्ण सम्मान के साथ विराजमान किया लेकिन ये सब आपका प्रयास नहीं था ,देश के करोड़ों सनातनियों के प्रयास भी इसमें शामिल थे, आपके निमित्त यह शुभ कार्य कहीं न कहीं प्रभु श्री राम का ही आदेश था ! 

रामायण में तो दलबदल एक ही शख्श  ने किया था जिसका मूल कारण निति और अनीति था, चुकी श्री राम निति के साथ थे  इसलिए उसने भाई का साथ छोड़ा ,अब लोकतंत्र और  कलयुग है तो संख्या भी बढ़ना स्वाभाविक है ,दलबदल से  आप कितने मज़बूत हुवे हो इसका फैसला आना बाकी है  ,संख्या आपके पास ज़्यादा है ! संघ के संथापक ने भी कांग्रेस छोड़ संघ की स्थापना की ,उसी संघ ने और उसके सहयोगी संगठन ने आज भाजपा को चरम पर पहुँचाया ,जिन लोगों ने जीवन भर उनकी सोच का विरोध किया आज वो आपके साथ शरीर से आए  है अथवा आत्मा से इसका निर्णय होना अभी बाकी है ! क्यों आये ,कैसे आये ,कब तक के लिए आये इसका विश्लेषण तो आपको करना ही पड़ेगा ,लेकिन एक बात तो स्पष्ट है  भिन्न विचारधारा के मिलन से वर्ण शंकर विचारधारा का जन्म होता  है  इसलिए यह कहना लाज़मी भी हो जाता है :

 "दगा किसी का सगा नहीं ,किया नहीं तो कर के देखो , किया उनका घर देखो " !

जिस तरह हेडगेवार कांग्रेस की निति का विरोध करते हुए अलग हुए उसी तरह संघ के मजबूत लोग भी कुछ समय से  भाजपा से रुष्ट होकर अलग हो गए ,नई पार्टी भी बनी और अब प्रत्याशी भी मैदान में हैं ,संघ का अनुभव मुद्दों पर पकड़ भी देखने को मिल रही है,हो सकता हे मुद्दे आज किसी की समझ न आएं लेकिन दीर्घकालीन  नुकसान  सामने आ सकता है  यदि ऐसा होता है तो इसका परिणाम पार्टी के पितृ पुरुषों की मेहनत को ख़त्म करना है ! अगर आज भी नहीं चेते और अल्पकालीन सोच में ही सिमटे रहे ,सत्ता के नशे के बुरे परिणाम भी आने वाले समय में आपको भोगने ही पडेंगे ! 

क्योंकि इतिहास साक्षी है की राष्ट्र कल्याण अल्पकालीन योजना पर संभव नहीं है दीर्घकालीन सोच अकाट्य कर्म साधना से ही संभव है !