क्यों पीछे हट रहा इंदौर विकास प्राधिकरण..?

अवैध से वैध करने वाली कॉलोनी को अनापत्ति प्रमाण पत्र देने के मामले में इंदौर विकास प्राधिकरण के अंदर असमंजस की स्थिति पैदा हो चुकी है,  इंदौर नगर निगम द्वारा योजनाओं में समाविष्ट अवैध कॉलोनियों के संबंध में पहले ही पत्र लिख दिया गया है लेकिन अभी तक उस पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है, मात्र प्रतिवेदन सरकार को भेज अब राय मश्वरा माँगा जा रहा है जिसके चलते 110  कॉलोनी अवैध से वैध होने की श्रेणी से वंचित है।

क्यों पीछे हट रहा इंदौर विकास प्राधिकरण..?

मुख्यमंत्री की घोषणा, लेकिन प्राधिकरण से अनापत्ति प्रमाण पत्र की शर्त बन रही गले की हड्डी

वर्षों से हैं प्राधिकरण की योजना का हिस्सा लेकिन आज तक प्राधिकरण ने नहीं किया विकास

बस चुकी हैं कई अवैध कॉलोनियां, मूलभूत सुविधाएं भी, नगर निगम भी ले रहा संपत्तिकर

द एक्सपोज लाइव न्यूज़ नेटवर्क, इंदौर।

यूं तो मुख्यमंत्री की घोषणा हुए काफी समय बीत चुका है। समय-समय पर उनके द्वारा संबंधित विभागों को निर्देश भी जारी होते रहै हैं। कभी प्रक्रिया तेज करने के तो कभी भवन अनुज्ञा ऑनलाइन पोर्टल पर जारी करने के, लेकिन धरातल पर मामला कुछ और ही है। 600 से अधिक इंदौर शहर में अवैध कॉलोनी या हैं, जिन्हें वैध किया जाना है, जिसमें से लगभग 297 कॉलोनी वैध की जा चुकी हैं। 110 कॉलोनी ऐसी हैं, जो इंदौर विकास प्राधिकरण की अलग-अलग योजनाओं का भाग रही हैं। आज इन्हीं कॉलोनियों में प्राधिकरण द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र की शर्त गले की हड्डी बनती साबित होती जा रही है। 

प्राधिकरण अब यह समझ नहीं पा रहा है कि इन्हें अनापत्ति प्रमाण पत्र कैसे दिया जाए? कानूनी अड़चनों के चलते या किसी अन्य कारणों से आज प्राधिकरण अनापत्ति प्रमाण पत्र देने में हिचक रहा है। इन अवैध कही जाने वाली कॉलोनियों को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बांटकर समझा जा सकता है। दरअसल प्राधिकरण शहर के विकास के लिए योजनाएं घोषित करता आया है और जमीनों का अधिग्रहण करता आया है, जिसमे मुख्यतः तीन तरह की मुख्य समस्या आई है-

  • सबसे महत्वपूर्ण ऐसी योजनाएं, जहाँ अधिग्रहण संपूर्ण हो चूका है, लेकिन बावजूद इसके वहां अवैध बस्ती वर्षों पूर्व बस चुकी हैं।
  • ऐसी योजनाएं, जहाँ अधूरा विकास कर काफी हिस्सा बिना विकास के ही छोड़ दिया गया है।
  • ऐसी योजनाएं, जिनमे सिर्फ अधिसूचना ही जारी हो पाई है, न तो भूमि का अवार्ड घोषित किया गया है और न ही कभी भूमियों के कब्ज़े सम्बन्धी कोई कार्यवाही की गयी है।

पहली श्रेणी

सबसे पहले अगर हम बात करें सबसे पहली श्रेणी की तो यह स्थिति सभी के लिए बहुत भयावह है। जिसका सबसे सटीक उदाहरण योजना क्रमांक 94 में ग्राम खजराना के सर्वे नंबर 587, 588, 589 है, जहां पर बाकायदा अधिग्रहण की कार्रवाई संपूर्ण की जाकर जमीनों का कब्जा ले लिया गया है अवॉर्ड की मुआवजा राशि किसानों को दे दी गई है। इसके अतिरिक्त किसानों को बढ़ी हुई मुआवज़ा राशि का भुक्तान भी कर दिया गया है। विगत 23 वर्षो से राजस्व अभिलेखों में बकायदा प्राधिकरण का नाम दर्ज है, लेकिन वहां पर अवैध कॉलोनी बस चुकी है और आज तक भी अतिक्रमण जारी है, जिसे आज तक भी मौके पर जा कर देखा जा सकता है। इस श्रेणी का यह एक अतिक्रमण चिन्हित है। वहीं अगर सूक्ष्मता से जांच की जाये तो पूरे इन्दौर में कई सारे होंगे। ऐसी जगह पर अनापत्ति प्रमाण पत्र की नहीं अतिक्रमण हटाने की ज़रूरत है और ज़िम्मेदार अधिकारियों पर सख्त कार्यवाही की ज़रूरत है। यही कारण है की अधिकारी अनापत्ति को लेकर लगातार गुमराह करते रहते हैं।

आईडीए की जमीनों पर हर तरफ कब्जा

आईडीए के पुर्व संचालक राजेश उदावत द्वारा वर्ष 2016 से इस मुद्दे को लगातार उठाया और जब इसको पूर्णता देना या परिणाम का समय आया तो उन्होंने भी चुप्पी साध ली। पिछले वर्ष उन्होंने आईडीए अध्यक्ष को एक पत्र लिखा था, जिसके बाद एलआईजी लिंक रोड से लगे सभी दुकानदारों ने कार्यवाही के डर से दुकानें खाली कर दी थीं। उसी स्थान पर अब लगभग डेढ़ वर्ष बाद पुनः दुकानों के शेड डल गए हैं। एनओसी की प्रक्रिया यदि प्राधिकरण शुरु करता है, तो कई भूमियां राजस्व रिकॉर्ड में आईडीए के नाम दर्ज़ निकलेंगी और मौके पर उसके द्वारा कोई प्लॉट नहीं बेचे होने के बावजूद घनी बस्तियां मिलेंगी। इंदौर कलेक्टोरेट के निर्माण के बदले आईडीए को जो भूमि आवंटित हुई थी, उस पर भी अतिक्रमण का अंबार लगा है, जो पुरे 100 हैक्टेयर से कम नहीं होगा।

सामने आएगा बड़ा घोटाला

परंतु आईडीए बोर्ड इस तिलस्म को तोड़ने में नाकाम है, जो कालंतर में जब भी सामने आयेगा, वह बहुत बड़े घोटाले के रुप में सामने आयेगा, क्योंकि विगत 20 वर्षों से सत्ता तो बीजेपी की ही है। घोटाला करने वाले सभी बच जायेंगे और मरण आम जनता का ही होगा। क्योंकि ऐसे घोटाले कभी भी कानून की नजरों से बच नहीं सकते।

दूसरी श्रेणी

दूसरी श्रेणी की बात करें, जहां पर प्राधिकरण द्वारा आंशिक विकास किया जाकर योजना को अधूरा छोड़ दिया जिसके उदाहरण हैं। इन योजनाओं में अगर कोई अवैध कॉलोनी बस जाती है तो इसकी जिम्मेदारी प्राधिकरण के अधिकारियों की ही तय होनी चाहिए और उन्हें धारा 52 का लाभ देकर अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया जाना चाहिए। 

तीसरी श्रेणी

तीसरी श्रेणी की अगर बात, जहां सिर्फ अधिसूचना ही जारी की जा सकी है, वहां पर वैधानिक तौर पर प्राधिकरण की अनापत्ति प्रमाण पत्र की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए। क्योंकि अधिग्रहण की कार्रवाई संपूर्ण ही नहीं की जा सकी है और वहां अब वर्षों पूर्व घनी बस्तियां बस चुकी हैं। ऐसे मामलों को लेकर वर्ष 2017 में तत्कालीन संभाग आयुक्त संजय दुबे भी कह चुके थे कि इस तरह की योजनाओं में प्राधिकरण की अनापत्ति प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है।