बक्सवाहा के जंगल को बलि वेदी पर चढ़ाकर कहते हैं, “आनंद की अनुभूति है पेड़ लगाना”

नर्मदा जयंती 19 फरवरी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रतिदिन एक पौधा लगाने का संकल्प लिया और लगातार एक पौधा लगा रहे हैं। उनका कहना है कि यह प्रदेश की जनता के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करने का प्रयास था। तकरीबन चार महीने में 131 पेड़ लगा चुके हैं सीएम साहब। हां लेकिन बक्सवाहा के जंगल के दो लाख पेड़ों के डेथ वारंट पर दस्तखत करने के बाद।

बक्सवाहा के जंगल को बलि वेदी पर चढ़ाकर कहते हैं, “आनंद की अनुभूति है पेड़ लगाना”

सीएम साहब दो लाख पेडों को बचा लीजिए, वहां के वृक्ष भी जीवित ऑक्सीजन प्लांट ही हैं..!

115 दिन में 131 पेड़ लगाकर हीरो तो बन गए, पर उन दो लाख पेड़ों की बलि क्यों लेते हैं..?

बचा लीजिए साहब, प्रदेश का भविष्य ही नहीं, लाखों पशु-पक्षियों का बसेरा और प्रदेशवासियों की उम्मीदें आपसे ही हैं..!

द एक्सपोज लाइव न्यूज नेटवर्क, भोपाल। Bhopal News.

मुख्यमंत्री ने पचमढ़ी में 2016 में लगाए गए आम के पेड़ में आये फल को देखकर ट्वीट किया था कि ''आप भी जब पौधा लगाएँगे, उसकी देखभाल करेंगे और जब वह पेड़ बड़ा होकर आपको फल देगा तो मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि उससे ज्यादा आनंद की अनुभूति आप को नहीं होगी।''

उनका यह ट्वीट वायरल हुआ, पर उससे ज्यादा वायरल है हैशटेग सेव बक्सवाहा फॉरेस्ट। इसको लेकर सीएम साहब ट्वीट की नहीं, बल्कि उस डेथ वारंट को रद्द करने की जरूरत है, जिस पर दस्तखत करना प्रदेश के पर्यावरण को बर्बाद करने की दिशा में सबसे घातक कदम है।

सीएम साहब, यह सब आप ही कहते हैं ना.. !

तन-मन और धन से भी ऊपर वन, प्रकृति और पर्यावरण को रखना हमारी संस्कृति हमारा संस्कार है और इसका पालन आवश्यक है। कोरोना ने ही हमें इस दिशा में सीख दी है कि मानव अस्तित्व के लिए प्रकृति की शक्तियों के साथ सामन्जस्य रखना जरूरी है। इसके लिए धरती की हरियाली बढ़ाना सबसे सरल उपाय है। यह ऐसा कार्य है, जो प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर पर कर सकता है।

तो फिर इस संस्कृति को नष्ट करके हीरे निकालना जरूरी क्यों हो गया है..? प्रकृति के सामंजस्य बैठने से ज्यादा जरूरी, कुछ कीमती पत्थर क्योंकर हो गए..? आप इन दो लाख पेड़ों को बचाने के लिए अपने स्तर पर प्रयास क्यों नहीं कर रहे हैं..?

भारतीय संस्कृति में पौधों के रोपण को शुभ कार्य माना गया है। वृक्ष पूजनीय है, क्योंकि उन पर देवताओं का वास माना गया है। कई भारतीय संस्कारों, व्रतों और त्योहारों के माध्यम से वृक्षों की पूजा-अर्चना की परम्परा है। प्राणवायु का यह बड़ा स्रोत वास्तव में प्राण-रक्षक है। वृक्ष जीवित ऑक्सीजन प्लांट हैं। वृक्ष लगाने और इसकी देखभाल करने से धरती पर न केवल ऑक्सीजन बढ़ेगी अपितु सम्पूर्ण जीवन ऊर्जा की वृद्धि होगी।

क्यों आज देवों के वास को बचाने से ज्यादा जरूरी एक बड़े कॉरपोरेट हाउस की तिजोरियां भरना है..? इन जीवित ऑक्सीजन प्लांट को लगाने की प्रेरणा देने के साथ ऑक्सीजन की पूरी फैक्टरी को नष्ट करने की क्या मजबूरी है..?

पौधा लगाना जीवन रोपने के समान है। पेड़ हमें जीवन देते हैं। एक बड़ा पेड़ कई पक्षियों और जीव-जंतुओं को आश्रय प्रदान करता है। प्रत्येक पेड़ की पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में भूमिका है। स्थानीय जलवायु के अनुरूप ही वृक्षारोपण किया जाए।  

जीवन के इस स्त्रोत को काटना क्यों जरूरी है..? लाखों पशु-पक्षियों के आश्रय को उजाड़ना क्यों जरूरी हो रहा है..? प्रदेशवासियों की भावनाएं क्यों नहीं आप तक पहुंच पा रही हैं..? क्यों प्रदेश में पेड़ बचाओ आंदोलन की अगुवाई आप खुद नहीं कर पा रहे हैं..?