इंदौर में 800 करोड़ की जमीन शासन के हाथ से निकली
हाईकोर्ट के एक फैसले ने शासन को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने गांधी नगर हाउसिंग सोसाइटी के मामले में संस्था के पक्ष में फैसला दिया और करीब आठ सौ करोड़ की जमीन शासन के हाथ से निकलती नजर आ रही है। शासन इस फैसले के खिलाफ अपील की तैयारी कर रहा है।
जमीनों के विवादों के बीच मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला
श्री गांधी नगर गृह निर्माण सहकारी संस्था को 178 हेक्टेयर जमीन मिलने की राह खुली
द एक्सपोज लाइव न्यूज नेटवर्क, इंदौर।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार और भगवान बाहुबली दिगंबर ट्रस्ट द्वारा दायर अपीलों को खारिज करते हुए श्री गांधी नगर गृह निर्माण सहकारी संस्था के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। यह मामला 441.61 एकड़ भूमि पर अधिकार और कब्जे से संबंधित था, जिसे 1949 में सहकारी संस्था को विशेष पट्टे पर दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
1949 में, श्री गांधी नगर गृह निर्माण सहकारी संस्था को 441.61 एकड़ भूमि विशेष पट्टे के माध्यम से आवंटित की गई थी। संस्था ने इस भूमि पर कॉलोनी विकसित की। 1984 में राज्य सरकार ने एक नोटिस जारी कर संस्था को निर्माण कार्य रोकने का आदेश दिया और दावा किया कि 25 एकड़ छोड़कर बाकी भूमि पर सरकार का कब्जा है। इसके बाद सहकारी संस्था ने अदालत में मुकदमा दायर किया।
अदालती प्रक्रिया और अपील
ट्रायल कोर्ट: ट्रायल कोर्ट ने सहकारी संस्था के खिलाफ फैसला सुनाया।
प्रथम अपीलीय अदालत: 2019 में प्रथम अपीलीय अदालत ने ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटते हुए सहकारी संस्था के पक्ष में निर्णय दिया।
उच्च न्यायालय: राज्य सरकार और भगवान बाहुबली दिगंबर ट्रस्ट ने इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की।
उच्च न्यायालय का निर्णय
1. राज्य सरकार का दावा खारिज:
- राज्य सरकार ने दावा किया कि 25 एकड़ छोड़कर बाकी भूमि का कब्जा सरकार ने ले लिया है।
- अदालत ने पाया कि सरकार इस दावे को साबित करने के लिए कोई वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सकी।
- सरकार द्वारा प्रस्तुत 1966 का एक पत्र हस्ताक्षर रहित और कानूनी रूप से अमान्य पाया गया।
2. सहकारी संस्था का पक्ष मजबूत:
- सहकारी संस्था ने यह साबित किया कि 1981 तक 106 एकड़ भूमि पर कॉलोनी का विकास किया गया था।
- अदालत ने पाया कि सहकारी संस्था ने भूमि को कभी सरकार को वापस नहीं सौंपा।
3. भगवान बाहुबली दिगंबर ट्रस्ट का दावा खारिज:
- ट्रस्ट ने भूमि पर अधिकार का दावा किया, लेकिन अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा कि ट्रस्ट मामले का पक्षकार नहीं था।
फैसले के मुख्य बिंदु
- सहकारी संस्था का भूमि पर अधिकार और कब्जा वैध है।
- राज्य सरकार और ट्रस्ट के दावे बिना सबूत के अस्वीकार किए गए।
- ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए प्रथम अपीलीय अदालत के निर्णय को सही ठहराया गया।
इस फैसले का महत्व
यह फैसला सहकारी संस्थाओं के भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए एक मील का पत्थर है। अदालत ने स्पष्ट किया कि भूमि विवादों में प्रामाणिक साक्ष्यों की आवश्यकता होती है।