भूमि अधिग्रहण को लेकर सर्वोच्च न्यायलय ने दिया महत्वपूर्ण आदेश ,भारतीय किसान संघ पहले से कह रहा था यही बात ,अब फिर मैदान में
जिन मुद्दों को लेकर भारतीय किसान संघ विरोध दर्ज करा रहा है, उनमें जनहित के नाम पर अनियंत्रित अधिग्रहण और उपजाऊ भूमि को खत्म करने की नीति का विरोध शामिल है। कभी आर्थिक कॉरिडोर, कभी रिंग रोड, और कभी अहिल्या पथ का नाम लेते हुए, हर मामले को जनहित बताकर बिना किसी आवश्यकतानुसार अधिग्रहण का विरोध लगातार बढ़ रहा है। इसी को लेकर अब सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों ने और जोर पकड़ लिया है। अब भारतीय किसान संघ ने विरोध और तेज कर दिया है, इंदौर विकास प्राधिकरण पर सबसे अधिक अनियंत्रित अधिग्रहण का आरोप लगाया जा रहा है।
द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी भूमि अधिग्रहण के मामलों में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि हर निजी संपत्ति को 'सार्वजनिक उद्देश्य' के नाम पर अधिग्रहण नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि बिना उचित प्रक्रिया अपनाए और भूमि स्वामी के अधिकारों की सुरक्षा के बिना अधिग्रहण करना संविधान के अनुच्छेद 39(b) और 300A का उल्लंघन है।
इस फैसले में, कोर्ट ने अनुच्छेद 300A के तहत कुछ प्रक्रियात्मक अधिकार तय किए, जिसमें नोटिस देने, सुनवाई का मौका देने, कारण बताने और न्यायसंगत मुआवजा देने जैसी आवश्यकताएं शामिल हैं। यह निर्णय उन मामलों पर भी लागू होता है, जहाँ सरकार भूमि को 'सार्वजनिक उद्देश्य' के नाम पर बिना किसी स्पष्ट कारण के हड़पने का प्रयास करती है। इस तरह के अधिग्रहण को अनुचित ठहराते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान संपत्ति के अधिकार की सुरक्षा करता है और इसके उल्लंघन पर कठोर कदम उठाए जाने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सात महत्वपूर्ण प्रक्रियात्मक अधिकार स्थापित किए। ये प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि कोई भी अधिग्रहण सिर्फ उचित और न्यायसंगत प्रक्रिया का पालन करके ही हो सके। :
1.अधिसूचना का अधिकार: भूमि स्वामी को पहले से सूचित करना जरूरी है ताकि उसे पता हो कि उसकी संपत्ति को अधिग्रहित किया जा रहा है। इस अधिसूचना का उद्देश्य भूमि स्वामी को अपने अधिकारों की जानकारी देना है।
2. सुनवाई का अधिकार: अधिग्रहण की प्रक्रिया में भूमि स्वामी को अपने विचार और आपत्तियां रखने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए, ताकि उनकी चिंताओं को सुना जा सके।
3. कारण बताने का अधिकार: अधिग्रहण के कारणों को स्पष्ट और तर्कसंगत रूप में बताना आवश्यक है, ताकि भूमि स्वामी यह समझ सके कि क्यों और किस उद्देश्य से उसकी संपत्ति का अधिग्रहण किया जा रहा है।
4. केवल सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अधिग्रहण: भूमि का अधिग्रहण तभी वैध होगा जब इसे किसी वास्तविक सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किया जा रहा हो, न कि किसी अन्य निजी या अवैध मंशा के तहत।
5. न्यायसंगत मुआवजा: अधिग्रहण के मामले में भूमि स्वामी को उसकी संपत्ति का उचित और निष्पक्ष मुआवजा दिया जाना चाहिए।
6. समयसीमा का पालन: पूरी प्रक्रिया को एक तय समयसीमा में संपन्न करना आवश्यक है ताकि अधिग्रहण की प्रक्रिया अनिश्चितकाल तक लटकी न रहे और भूमि स्वामी को लंबे समय तक प्रतीक्षा न करनी पड़े।
7. निष्कर्ष पर पहुंचना: अंततः अधिग्रहण प्रक्रिया का एक निष्कर्ष पर पहुंचना और उसे त्वरित रूप से निष्पादित करना अनिवार्य है।
ये सात प्रक्रियाएं सुनिश्चित करती हैं कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 300A के अंतर्गत सुरक्षित तरीके से हो और किसी भी नागरिक को उसकी संपत्ति से अवैध रूप से वंचित न किया जाए।
इन्ही बातों को लेकर किसान संघ द्वारा आज कलेक्टर इंदौर को जिले की उपजाऊ जमीन अधिग्रहण को निरस्त करने के लिए बड़ी संख्या में ज्ञापन दिया जिसमे मांग की गयी :-
1.)पश्चिमी रिंगरोड़ के लिए किसान 100% असहमत हैं, अतः इस योजना को पूर्णरूप से निरस्त किया जाए.
2)इकनॉमिक कॉरिडोर व अहिल्या पथ में किसानों की 100%सहमति के बगैर किसी भी प्रकार का अधिग्रहण ना किया जाए.
3.)अतिआवश्यक होने पर किसान की सहमति पर अधिग्रहित भुमि के बदले उसी पटवारी हल्के के 2 गुना भुमि दी जाए.
4.) इंदौर विकास प्राधिकरण जो सरकारी भू -माफिया की तरह काम करता हैं उसे भंग किया जाए.