इंदौर में भाजपा का अंतर्कलह शहर के विकास पर भारी: सवालों के घेरे में महापौर
हाल ही में इंदौर के महापौर के खिलाफ वायरल हुए एक वीडियो ने शहर में राजनीतिक सरगर्मी को तेज कर दिया है। इस वीडियो में महापौर को सलाह दी गई है और उनके खिलाफ शिकायतें जाहिर की गई हैं। इसके बाद, कई और वीडियो भी वायरल हो रहे हैं, जिनमें महापौर पर भ्रष्टाचार और नगर निगम की खराब स्थिति के आरोप लगाए जा रहे हैं। वहीं, महापौर और उनके समर्थकों का कहना है कि यह एक राजनीतिक साजिश है, जिसका मकसद उनकी छवि को खराब करना और शहर को बदनाम करना है।
द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर
भारत में पहले से ही कवि कह गए हैं: "निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।" यह वाक्यांश हमें सिखाता है कि आलोचकों को पास रखना चाहिए, क्योंकि वे हमें सुधार की दिशा दिखाते हैं। वर्तमान में, हमारे शहरों की स्थिति कुछ वैसी ही हो गई है जैसे महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ की। उस समय रथ इसलिए गतिमान था क्योंकि उस पर भगवान श्री कृष्ण और हनुमान विराजमान थे।
आज के समय में हमारे शहर रूपी रथ का संचालन संतोषी जनता के हाथों में है। यही कारण है कि सामूहिक आक्रोश ज्वालामुखी की तरह भीतर सुलग रहा है। अगर शहर में कोई माननीय आता है, तो उनके रास्ते के गड्ढे एक रात में भर दिए जाते हैं, लेकिन आम नागरिकों की तकलीफें अनदेखी रह जाती हैं।
कम से कम छोटे-छोटे कामों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि शहर के नागरिक रोज़मर्रा की दुर्घटनाओं से बच सकें। शहर के शासक को कथनी और करनी के अंतर को समझना चाहिए, क्योंकि वह भाग्यशाली है कि जनता उसे वास्तविकता का आईना दिखा रही है। जनता के अनमोल समय और प्रकृति के विनाश पर आधारित विकास कभी स्थायी नहीं हो सकता।
आप सनातन परंपरा की बात करते हैं, लेकिन शायद आप यह भूल रहे हैं कि लाखों वर्षों के इतिहास में राजा जनता के सवालों का खुद उत्तर देता था, उसे किसी सहारे की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।
महापौर पर लगे आरोपों पर जवाबदेही कहां?
इंदौर, जो स्वच्छता और विकास के क्षेत्र में लंबे समय से अव्वल रहा है, वहां के हालात आज ऐसे कैसे हो गए? जनता यह सवाल उठा रही है कि नगर निगम में हो रहे भ्रष्टाचार, स्वच्छता की गिरती स्थिति, और विकास कार्यों की धीमी रफ्तार के पीछे कौन जिम्मेदार है। महापौर और भाजपा ने पिछले 20 सालों से नगर निगम पर कब्जा बनाए रखा है, लेकिन इन वर्षों में शहर की दुर्दशा पर भी उंगलियां उठ रही हैं, आप भले ही बांहे चढाने वाले नहीं हो सकते लेकिन योजनाएं बनाने और उसके सही क्रियान्वन को तो सही अंजाम दे सकते हैं,शहर की गंदगी ,शहर की यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए भी क्या आपको ज्ञान देने की ज़रूरत हे ? अगर ऐसा हे तो जनता के सवाल कहाँ गलत हैं ,बेशक आप इसे राजनैतिक साज़िश का तमगा दे रहें हैं लेकिन आप अपने समर्थकों से ही पूछ लें की क्या सवाल गलत हे ?
महापौर की योग्यता और अपेक्षाएं:
शहरवासियों को महापौर से बहुत उम्मीदें थीं, विशेष रूप से उनकी शैक्षणिक योग्यता के कारण। लेकिन कहीं न कहीं, वे अपने दायित्वों को पूरी तरह निभाने में असफल दिख रहे हैं। जनता का मानना है कि एक पढ़ा-लिखा नेता, चाहे वह खुद मैदान में न उतरे, फिर भी अधिकारियों को उचित मार्गदर्शन देने में सक्षम होना चाहिए। लेकिन अधिकारियों की कार्यशैली और नगर निगम के कामकाज को लेकर नाराजगी बढ़ रही है।
क्या यह केवल राजनीतिक साजिश है?
महापौर के समर्थक इस पूरे मामले को एक राजनीतिक साजिश बता रहे हैं। उनका कहना है कि शहर में जलजमाव या अन्य समस्याएं नहीं हैं, लेकिन वास्तविकता कुछ और बयां करती है। इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें, तो एक समय था जब इंदौर में भारी बारिश के बाद भी जलजमाव नहीं होता था। आज यह स्थिति क्यों बदली, इसके पीछे क्या कारण हैं, इस पर चर्चा होनी चाहिए। क्यों मामला मुख्यमंत्री तक जा पहुंचा ?क्यों मुख्यमंत्री को अधिकारीयों को जनप्रतिनिधियों को तवज़्ज़ो देने की नसीहत देनी पड़ गयी ,क्या आप नहीं जानते बिना आग के धुंआ नहीं उठता ? हर चीज़ को साजिश कब तक कहेंगे ?
महापौर और भाजपा का यह कहना कि शहर को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है, एक ऐसा तर्क है जिसे जनता आसानी से मानने को तैयार नहीं है। इंदौर की जनता जानना चाहती है कि आखिर क्यों पिछले दो दशकों से नगर निगम पर काबिज भाजपा शहर की समस्याओं को सुलझाने में नाकाम रही है?
अब समय आ गया है कि महापौर और उनके सहयोगी इन सवालों का स्पष्ट और सटीक उत्तर दें। जनता यह जानने की हकदार है कि आखिरकार इंदौर का भविष्य किस दिशा में जा रहा है।