अर्धनग्न लड़की का सड़कों पर घूमना प्रसिद्धि का खेल या मनोवैज्ञानिक चाल
पिछली रात इंदौर शहर में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई, जब एक युवती को भरे बाजार में अर्धनग्न अवस्था में घूमते देखा गया। यह नजारा देखकर लोग स्तब्ध रह गए, और घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पहली नजर में यह घटना किसी मानसिक तनाव या व्यक्तिगत समस्या का परिणाम लग सकती है, लेकिन इस घटना के पीछे के मनोवैज्ञानिक और सामरिक पहलुओं को समझने की आवश्यकता है।
एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर :
इतिहास में, खासकर युद्धों के दौरान, महिलाओं या विष कन्याओं का इस्तेमाल दुश्मनों द्वारा भ्रम पैदा करने के लिए किया जाता रहा है। यह एक प्रचलित मनोवैज्ञानिक रणनीति रही है, जिसका उद्देश्य दुश्मन के सैनिकों और आम लोगों में असमंजस और भय फैलाना होता है। इस तरह की घटनाओं का दस्तावेजीकरण कई युद्धों में हुआ है, जहाँ दुश्मन ने आम महिलाओं का उपयोग करके सेना और जनता के मनोबल को गिराने और सामरिक रूप से उन्हें भ्रमित करने की कोशिश की।
इंदौर की इस घटना को कुछ विशेषज्ञ इसी संदर्भ में देख रहे हैं। उनके अनुसार, यह घटना एक व्यक्तिगत मानसिक अस्थिरता से ज्यादा, एक बड़े मनोवैज्ञानिक खेल का हिस्सा हो सकती है। इतिहास में हमने कई बार देखा है कि आतंकवादी संगठनों या शत्रु राजनीतिक ताकतों ने समाज को अस्थिर करने और भ्रमित करने के लिए ऐसी रणनीतियों का इस्तेमाल किया है। मनुष्य के मानसिक संतुलन को प्रभावित करके समाज में तनाव और अस्थिरता पैदा करना एक प्रभावी हथकंडा हो सकता है।
इसके अलावा, कुछ विश्लेषकों का यह भी मानना है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा भी इस तरह के मनोवैज्ञानिक तरीके अपनाए जाते हैं, जिससे वे अपने बाजार को स्थापित करने की कोशिश करते हैं। यह केवल एक उपभोक्ता बाजार तक सीमित नहीं है, बल्कि गहरे स्तर पर सामाजिक और सांस्कृतिक संरचनाओं को प्रभावित करने की दिशा में भी यह एक खतरनाक खेल हो सकता है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो युद्धों के दौरान भी महिलाओं का इस्तेमाल समाज और सेनाओं को मानसिक रूप से कमजोर करने के लिए किया गया है। यह एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक खेल है, जिसका उपयोग आज भी विभिन्न रूपों में किया जा रहा है। इंदौर की घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कहीं हम भी किसी बड़े मनोवैज्ञानिक खेल का हिस्सा तो नहीं बन रहे हैं? क्या यह सिर्फ एक आकस्मिक घटना है, या इसके पीछे कोई गहरी साजिश छिपी है?
चाहे यह घटना किसी मानसिक स्वास्थ्य समस्या की वजह से हुई हो या फिर इसके पीछे कोई संगठित मनोवैज्ञानिक खेल हो, यह निश्चित रूप से हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक मूल्यों पर सवाल खड़ा करती है। अधिकारियों द्वारा इस घटना की जांच की जा रही है, लेकिन यह घटना हमारे सामने कई जटिल और विचारणीय मुद्दे रखती है, जिन पर हमें गंभीरता से सोचना चाहिए।
इंदौर की यह घटना समाज के मानसिक स्वास्थ्य, दुश्मनों की मनोवैज्ञानिक रणनीतियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के व्यापारिक हथकंडों पर एक नए सिरे से सोचने की जरूरत को उजागर करती है।
विगत दिनों शहर ने जो देखा वह निश्चित रुप से दुर्भाग्यपूर्ण और निन्दनीय हे ! लेकिन कई गंभीर सवाल जांच एजेंसियों के सामने खड़े भी कर रहा हे जिसकी सूक्ष्मता से जांच की जानी चाहिए ! बेशक हम यह मान बैठे हैं की यह प्रसिद्धि पाने का तरीका मात्र था ,लेकिन उस लड़की से यह कृत्य किसने करवाया,कौन रील बना रहा था ? क्या इसमें कोई मनोवैज्ञानिक रणनीति थी ? क्या इसमें किसी तरह का कोई आर्थिक लेन देन भी था ? लड़की की पारिवारिक पृस्ठभूमि उसके विदेशों में संपर्क इन सभी बातों का भी विस्तृत विश्लेषण किया जाना चाहिए ! डा दिव्या गुप्ता : सदस्य नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर-भारत सरकार )