इंदौर को एलिवेटेड ब्रिज की नहीं है जरूरत

इंदौर के एबी रोड पर एलिवेटेड रोड पुल की शहर को जरूरत नहीं है। बीआरटीएस पर  एलाआइजी चौराहे से नौलखा चौराहे तक प्रस्तावित इस ब्रिज को लेकर शहर के आर्किटेक्ट व इंजीनियर अतुल शेठ ने कुछ सवाल खड़े किए हैं। साथ ही कुछ सुझाव भी दिए हैं कि कैसे बीआरटीएस का ट्रैफिक सुधारा जा सकता है।

इंदौर को एलिवेटेड ब्रिज की नहीं है जरूरत

बीआरटीएस के ट्रैफिक सुधार के बजाय हो जाएगा शहर का कबाड़ा

इंजीनियर और आर्किटेक्ट अतुल शेठ ने पूरे प्रोजेक्ट पर खड़े किए सवाल

कहा, अफसर मनमानी करते हुए गैरजरूरी प्रोजेक्ट थोप रहे हैं जनता पर

द एक्सपोज लाइव न्यूज नेटवर्क, इंदौर। Indore News.

आर्किटेक्ट अतुल शेठ का इस बारे में कहना है कि इसके निर्माण की मांग कभी किसी ने नहीं की। इस एलिवेटेड रोड के लिए कभी कोई सर्वे नहीं किया, जिसमें इसकी उपयोगिता बताई गई हो या सिद्ध की गई हो। हां, लेकिन इसके बदले पलासिया, शिवाजी प्रतिमा, विजय नगर और नवलखा चौराहों पर पुलों की मांग लगातार उठ रही है।  

बिना सर्वे के टेंडर बुलाए

शेठ का कहना है कि पीडब्ल्यूडी विभाग के अधिकारियों के अनुसार उन्होंने कोई सर्वे नहीं किया था, केवल ऊपर के आदेश अनुसार टेंडर बुला लिए है। क्या उपयोगिता होगी, कितना लाभ होगा, कोई आंकड़ा उनके पास नहीं है।

टेंडर होने के बाद जब उपयोगिता नहीं होने की बात तत्कालीन मंत्री के ध्यान में लाई गई, तो उनके कहने पर अधिकारियों ने ग्रेटर कैलाश रोड, गीता भवन रोड और शिवाजी प्रतिमा रोड पर एक-एक भुजा बिना सर्वे के उतार दी। पर अब भी उपयोगिता का कोई निश्चित आंकड़ा उनके पास नहीं है।

इस तरह करवाया सर्वे

सारी बातों को ध्यान में लाने पर सांसद शंकर लालवानी ने मुख्यमंत्री से बात करके प्रमुख सचिव से बात की। इसके बाद विषेशज्ञों प्रोफेसर ओपी भाटिया, पूर्व चीफ इंजीनियर सतीश गर्ग, प्रो. वंदना तारे, पूर्व सिटी इंजीनीयर एसके बायस, नारंग, इंजीनियर अतुल शेठ और पीडब्ल्यूडी इंजीनियरों की एक बैठक बुलाई। इसमें सर्वसम्मति से उपयोगिता जानने के लिए यातायात का सर्वे करने को कहा। 

सर्वे में भी कोई तथ्य नहीं

शेठ ने बताया कि एक महीने में हुए सर्वे के बाद विभाग ने इसकी जानकारी सभी को भेजी। इस रिपोर्ट को पढ़ने पर आश्चर्य और दुख हुआ, जिसमें सत्यता का कोई आकलन नहीं था। केवल विभिन्न चौराहों के कुछ आंकड़ों की जानकारी थी। इसमे आधुनिक, वैज्ञानिक तरीकों का कोई इस्तेमाल नहीं किया था, न ही कोई तथ्यात्मक और वैज्ञानिक आधार था। जिस कंपनी से इसे करवाया गया, उसका नाम भी नहीं था। जानकारी निकाली तो सामने आया कि उस कंपनी को इसका कोई अनुभव ही नहीं था। जैसा विभाग ने कहा, उसने वैसा करके दे दिया।

इन मुद्दों पर उठाए सवाल

  • टेंडर में बीआरटीएस की सर्विसेस या सुविधा, जैसे पानी,  ड्रेनेज, टेलीफोन, बिजली लाइन, बीआरटीएस के स्टॉप, मेट्रो लाइन आदि का समावेश और उससे सम्बन्धित खर्च लागत में शामिल नहीं हैं।
  • इंदौर के किसी मास्टर प्लान में इस एलिवेटेड रोड की आवश्यकता नहीं बताई गई है।
  • इस पूरी योजना को कभी जनता को बताया ही नहीं गया, न ही सुझाव मांगे गए। जनप्रतिनिधियों को कोई जानकारी नहीं है।
  • मुख्यमंत्री के यह कहने के बावजूद कि सबकी राय से ही निर्णय लेगें, बगैर किसी सहमति या वार्ता के कार्य आदेश जारी कर दिया गया। नगर निगम से निर्माण के लिए अनुमति मांगी गई है।
  • एलिवेटेड रोड बनाने में 2 साल का समय दिया है। मगर आज तक के अनुभव और बगैर आधुनिक तकनीक के टेंडर में उल्लेख के, स्थानीय समस्या और उपलब्ध सुविधाओं में सुधार व पुनर्निर्माण में लगने वाले समय को देखते हुए, कम से कम 4 साल लगेंगे।
  • आज उपलब्ध यातायात का वास्तविक रुप से अध्ययन करने पर एलाआइजी और नौलखा चौराहा के बीच जितना ट्रैफिक है, इसमें 3 भुजा को भी मिला लें तो भी कह सकते हैं कि 10 फीसदी से भी कम ट्रैफिक होगा, जो एलिवेटेड रोड पर जाएगा। 90 फीसदी ट्रैफिक नीचे ही रहेगा। नीचे की सड़क की चौड़ाई और कम हो जाएगी।
  • इसके बनने के बाद बीआरटीएस का क्या होगा। जब बीच में 8 फुट के पिलर और उसकी सुरक्षा का घेरा 10  से 12  फुट का बनने के बाद बॉटल नेक (शिवाजी से एलआइजी) में जगह और और कम हो जाएगी, और जाम ज्यादा लगेगा।
  • इसके बनने के बाद पलासिया चौराहा, शिवाजी जंक्शन, एलाआइजी चौराहे पर समस्या और विकराल हो जाएगी। इसका कोई अध्ययन नहीं किया गया है।
  • निर्माण के 4 वर्षों में ट्रैफिक को कैसे नियंत्रित करेंगे,इसका जनता पर क्या भार पड़ेगा, इसका कोई आकलन नहीं किया गया है।
  • अभी इसकी लागत 325 करोड़ पर बताई है। यह काम पूरा होते होते और सर्विसेस का खर्चा जोड़ते जोड़ते यह बढ़कर कितनी होगी मालूम नहीं। अंदाज करें तो 400 करोड़ से भी ज्यादा होगी।  

ये दिए हैं सुझाव

  • इस योजना को तत्काल रोक कर, पूरा अध्ययन वैज्ञानिक आधार पर करवाना चाहिए। सारे चौराहों व भुजाओं के ट्रैफिक का पूरा अध्ययन किया जाए। फिर आकलन किया जाए कि शहर के लिए क्या उपयोगी होगा। बीआरटीएस का एक मास्टर प्लान दिया जाए, जिसे जनता को भी बताकर निर्णय लिया जाए।
  • इंदौर की मूल समस्या बीआरटीएस के तीन-चार चौराहे हैं। जहां पर सबसे ज्यादा ट्रैफिक कंजेक्शन होता है, पलासिया, नेमावर, शिवाजी वाटिका और नेमावर चौराहा। पूर्व प्लान के अनुसार पलासिया पर ग्रेड सेपरेटर बनाया जाए, जिसकी लागत 70 करोड़ है। अन्य तीन चौराहों प पुल बनाए तो प्रत्येक की लागत 50 करोड़ आएगी। 220 करोड़ में समस्या हल हो जाएगी।