राजनीतिक मार्केटिंग में उलझती निगम की सत्ता

अधिकारियों के जाल में उलझ कर रह गए महापौर ( पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता )

राजनीतिक मार्केटिंग में उलझती निगम की सत्ता
courtesy : sarita

द एक्सपोज लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर

नए मेयर के शपथ लेते ही शहर की जनता कयास लगाने लगी थी की एक अतिरिक्त महाधिवक्ता, एक प्रखर अधिवक्ता ने शहर की कमाल संभाली हे  तो निश्चित तौर पर शहर का विकास और भला होगा ! कई उम्मीद भी इस तेजतर्रार अधिवक्ता से लगाई जा रही थी, कयास यह भी लगाए जा रहे थे कि अब शहर बेहतर से बेहतरीन होने वाला हे  ! स्वच्छता हो, सड़कें हो, विकास हो हर जगह अब इंदौर का परचम लहराएगा ,नई-नई विकास योजनाएं बनेंगी शहर को ट्रैफिक की समस्या से निजात मिलेगी, अधिकारियों पर अंकुश रहेगा और बेलगाम भ्रष्टाचार भी रुकेगा !

लेकिन निगम की और विशेष तौर पर महापौर  की कार्यप्रणाली में अभी तक ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला ! वे सिर्फ हिंदुत्व और अध्यात्म के एजेंडे पर  चलते हुए ही दिख रहे हैं और शहर की जनता में अपनी उसी तरह  छवि निर्मित करते नज़र आ रहे हैं  ! शहर के विकास की तरफ ट्रैफिक को सुगम करने के लिए ना कोई नीति है ना कोई रणनीति ! अपनी कार्यप्रणाली के लिए बदनाम निगम के अधिकारियों ने नए नवेले महापौर को ऐसा उलझाया कि पहला ही निर्णय उनसे यह कहते हुए करवा दिया की  निगम में पैसे की कमी है और राजस्व की जरूरत हे , इतना सुनते ही तेजतर्रार पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता  ने दुकानों पर लगे  साइन बोर्ड पर टैक्स लगाने का निर्णय ले लिया और व्यापारियों का विरोध भी उन्होंने झेला !  बाद में कहा गया कि 2017 में यह निर्णय  राज्य शासन ने दिया था ! अब सवाल ये उठता हे  कि जब 2017 में या निर्णय राज्य शासन दे चुका था तो पिछले दो-तीन सालों से अधिकारियों ने इस को क्रियान्वित क्यों नहीं किया ?  क्या वे नई परिषद का इंतजार करते रहे ? कुल मिलाकर महापौर को अब समझने की जरूरत हे  कि अधिकारी तो अधिकारी होता हे और इनकी कार्यप्रणाली क्या होती हे उसको समझना आसान भी नहीं  होता हे !  जनप्रतिनिधियों के कंधे पर बंदूक रखकर चलाना इनकी फितरत होती हे ! अब निगम को तेजतर्रार महाधिवक्ता नहीं बांहें चढ़ाने वाला एक तेजतर्रार महापौर चाहिए जैसा इंदौर के इतिहास  में हुआ था ,तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी इंदौर ने विकास को देखा था ! अपनी जिद और अड़ी बाजी जो कुछ अवैध भवन अधिकारियों ने ध्वस्त तो किए हैं और उसको लेकर भी उन्होंने  महापौर की मार्केटिंग करना शुरू कर दी है करना जायज़ भी हे !  पिछले ही दिनों द एक्सपोज़ लाइव ने तकरीबन 200 करोड़ की जमीन पर हो रहे अतिक्रमण का सच सबके सामने लाया था ,MR 9  पर चल रहे एक बड़े अवैध मटन मार्केट का सुच भी उजागर किया था  लेकिन अभी तक न महापौर और ना ही अधिकारी इसकी सुध ले रहे हैं ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ एक ही मामला है ऐसे कई मामले हैं जिससे नगर निगम की आय बढ़ा सकती है वरन अनियंत्रित अतिक्रमण भी रोके जा सकते हैं ! 

अधिकारी जो जनप्रतिनिधियों को नियम एवम विधिक प्रावधानों का हवाला देकर घुमा देते हैं परन्तु वे ही अधिकारी न्यायालीन   प्रकरण होने पर अधिवक्ता की शरण में जाते हैं ! आज जब वहीं तेज तरार अधिवक्ता जन प्रतिनिधि के रूप में इनके सामने हैं तो उन्हें भी घुमाया जा रहा हे ! अब शहर कल्याण के लिय नए महापौर को अपनी अलौकिक शक्तियों का उपयोग लेना होगा।