इंदौर विकास प्राधिकरण ने फिर खेला अजीब खेल ,शतरंज का खेल बिना पांसे के शुरू
एक ही तीर से कई निशाने ,किसान का गला घोंटते घोंटते अब बिल्डरों को भी उलझाने की तैयारी ,8 कि.मी. में 1400 हेक्ट ज़मीन पर "अहिल्या पथ" नाम से प्रस्तावित की योजना, योजना के नाम पर बड़े जमीनी व्यवसाय की तैयारी,प्रस्तावित क्षेत्र पर लगभग 1200 करोड़ की ज़मीन की हुई खरीद फरोख्त ,अभी शासन की मंज़ूरी नहीं ,हो चुकी सैकड़ों हैक्टेयर ज़मीन की TNC,बाद में होगी योजना में शामिल ,बिना मास्टर प्लान योजना करी घोषित ,कानून लिया अपने हाथ ,बड़े "खेला" का अंदेशा ,कई मौज़ूदा योजनाएं अभी भी अधूरी लेकिन फिर भी इतिहास की सबसे बड़ी योजना,मंत्री तक को किया गया गुमराह , भारतीय किसान संघ पहले ही विरोध शुरू कर चुका है।
द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर
यूँ तो विकास प्राधिकरण को कई उपमाएं शहर में दी जाती रही हैं ,शासन की दुधारू गाय समझी जाने वाली विकास प्राधिकरण के खेल भी निराले रहे हैं ! मास्टर प्लान को लागु करने के उद्देशय से जन्मी यह संस्था अब सरकारी कॉलोनाइजर बन चुकी है ! शासन किसी का भी हो ज़मीन के खेल तो इसी के माध्यम से होते आये हैं ,और हथियार का नाम "योजना" ! एक समय था जब प्राधिकरण योजना लागु करता था ,आसपास की ज़मीनों के भाव आसमान छूने लगते थे ,बेशक शोषण किसान का होता रहा हे लेकिन ज़मीन के व्यापारिओं के भाग्य चमक जाते थे ,प्राधिकरण का नाम आते ही विकास की संभावना बढ़ जाती थी ! कुछ समय बाद कुछ दूरगामी सोच रखने वाले अधिकारीयों ने इसी बात का निजी फायदा लेना शुरू कर दिया ,विकास के नाम पर लैंड बढ़ाने और ज़मीन का खेल खेलने के चक्कर में "योजना" नामक हथियार का नाज़ायज़ इस्तेमाल भी शुरू कर दिया ! कमरे में बैठ कर योजनाएं बनाई जाने लगी और फिर ज़मीनों का गन्दा खेल शुरू हुआ ! ऐसे कई उदाहरण आज शहर में देखने को मिल सकते हैं ,कई भूमाफिया आज शहर के गणमान्य भी बन बैठे हैं ! कमरों में बैठ योजना बनाई जाने लगी और भौतिक सर्वे को लगभग हटा ही दिया गया ,बस नक्शा देखा और योजना बना डाली ,कितने मकान बने हैं ,किस ज़मीन की TNC हो चुकी हे जैसे तमाम तथ्य नगण्य कर दिए गए ,मज़े की बात तो यह की शासन ने भी स्वीकृति प्रदान कर दी ,और आज योजना अधूरी पड़ी है ,लोग अदालत के चक्कर लगा रहे हैं ,ज़मीनों पर भूमाफिया ने अवैध बसाहट बसा दी ,शासन से बिजली,पानी, वोटर कार्ड भी दिलवा दिए ,प्लाट हे लेकिन बनाने की अनुमति नहीं जैसी कई समस्या अब आम हो चुकी हैं !
ऐसा ही एक खेल प्राधिकरण ने हाल ही में खेला ,खेल के खिलाडी भी नौसिखिये ज़रूर हैं लेकिन हुनर में माहिर ,अहिल्या पथ के नाम से 1400 हेक्ट ज़मीन पर योजना प्रस्तावित कमरे में बैठ कर ही कर दी ,आश्चर्य जनक बात यह की शासन से कोई अनुमति नहीं ,मास्टर प्लान का कोई अता पता नहीं और योजना पहुँच गयी बाजार में ! ज़मीन के सौदागरों ने ताबड़तोड़ ज़मीने खरीदना शुरू कर दी और TNC से अनुमति भी लेना शुरू कर दी ,और ज़मीन के भाव भी आसमान पर पहुंचा दिए ,किसका कितना फायदा हुआ ये तो अब शासन को समझना है लेकिन योजना प्रस्तावित कर दी गयी है और आगे पीछे प्रस्ताव अनुरूप अनुमति भी मिल ही जाएगी ,और जैसा होता आया है जो प्रस्ताव है बेशक वो भोपाल में वर्त्तमान अधिकारीयों के भी समझ नहीं आ रहा हो लेकिन भविष्य में क्या होता हे किसको पता ?
किसानों के साथ अब बिल्डर भी प्राधिकरण के निशाने पर
जो योजना बिना शासन और बिना मास्टर प्लान के 1400 हेक्ट पर प्रस्तावित की गयी हे उसमे कई ज़मीनों की TNC भी हो चुकी हे और वही भूमियां प्रस्तावित योजना में शामिल कर ली गयी हैं ,यानि स्पष्ट हे TNC का होना न होना इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा ,बाद में बिल्डरों का भी वही हाल होगा जो आज किसानों का हो रहा हे ,योजना 171 में शामिल पुष्पविहार ,न्याय नगर इसके सटीक उदहारण भी हो सकते हैं ,बिना भूअर्जन करे सिर्फ प्रारभिक अधिसूचना के आधार पर ही प्राधिकरण ने हज़ारों परिवारों को उलझा रखा हे ,कालिंदी गृह निर्माण भी एक सटीक उदहारण हो सकता हे जहाँ पर किसान के साथ हज़ारों प्लाट धारक 35 साल से योजना ख़तम होने के बावजूद भी संघर्ष कर रहे हैं ! ज़मीन और प्राधिकरण की नीतियों के जानकारों का कहना हे ,प्राधिकरण अब धीरे धीरे ज़मीन व्यवसाय पर एकाधिकार जमाना चाहता हे इस बात से तो यही प्रतीत हो रहा हे ,अभी तक किसानों को उलझाया जा रहा था अब निजी बिल्डरों को भी उलझाने की तैयारी लग रही हे !
क्या हे नियम ?
वर्ष 2019 में नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम में लैंड पूलिंग योजना को तत्कालीन सरकार द्वारा शामिल किया गया था जिसका मकसद वर्ष 2014 में केंद्र सरकार द्वारा पारित नविन भूमि अधिग्रहण में मुआवज़े (गाइड लाइन का 2 गुना और 4 गुना ) प्रावधानित किया गया था ,सरकार की दलील थी की विकास के अधिग्रहित की जाने वाली भूमियों के लिए सरकार के पास इतनी राशि उपलब्ध नहीं हे ,इसीलिए सरकार अपना खुद का नया भूमि अधिग्रहण कानून बना रही हे ,जिसमे मुआवज़े के बदले किसान को विकसित भूखंड देना प्रावधानित किया गया ! बेशक इसका विरोध आज तक जारी हे क्यूंकि किसानों का कहना हे यह कानून भी एकपक्षीय हे और विधि अनुसार भी नहीं हे ! इसे प्रावधानित करने के लिए नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम को संशोधित किया गया ,और इसकी एक महत्वपूर्ण शर्त भी यही थी की मास्टर प्लान को लागु करने के लिए एजेंसी इस योजना का लाभ ले सकती हे ! लेकिन अहिल्या पथ के मामले में इसमें से एक भी शर्त का पालन होता नहीं दीख रहा ,जिस जगह योजना प्रस्तावित की गयी हे ,वहां की सभी भूमियां अभी कृषि या ग्रीन बेल्ट हे और वहां मास्टर प्लान अभी न लागु हो सका हे और न ही निकट भविष्य में लागु होता दीख रहा हे और अभी तक तो उसका ड्राफ्ट तक तैयार नहीं हे फिर भी लैंड पूलिंग योजना में प्रस्तावित कर दिया गया ! अब सवाल यह उठ रहा हे की प्राधिकरण ने बिना मास्टर प्लान योजना प्रस्तावित कर बाजार में कैसे दे दी ,अगर योजना प्रस्तावित भी करनी थी तो शासन को अपने स्तर पर भेज देना थी ,इसके पीछे क्या कारण रहे वो भी एक बड़ा रहस्य हे !
TNCP से ले कर भोपाल तक गले नहीं उतर रही बात उठ रहे सवाल
सूत्रों की माने तो अध्यक्ष एवं संभागयुक्त के साथ मुख्य सचिव द्वारा योजना का प्रारूप देख अधिकारीयों से सवाल भी किये गए की क्या इसके पहले इतिहास में इतनी बड़ी योजना लागु की गयी हे ? साथ ही छोटी योजना की नसीहत देते हुए प्रारूप को ठन्डे बस्ते में फ़िलहाल डाल दिया गया ! वहीँ TNCP द्वारा भी अभी योजना को ठन्डे बास्ते में डाल दिया गया हे क्यूंकि मुआवज़े में विकसित भूमि के वितरण ,प्राधिकरण के हिस्से में वाली ज़मीन को लेकर प्राधिकरण की वाइबिलिटी नहीं बैठ रही ,किसी भी योजना में कम से कम 20% विकसित भूमि प्राधिकरण के हिस्से में आना चाहिए तभी जा कर योजना का क्रियान्वन किया जाना चाहिए ! दूसरा सबसे बड़ा सवाल यह भी उठ रहा हे की विभागीय मंत्री भी अनुभवी हैं और इंदौर से ही हैं ,शहर के लिए उनकी संजीदगी भी किसी से छुपी नहीं फिर इतना बड़ा निर्णय प्राधिकरण ने अपने स्तर पर कैसे ले लिया ? क्यूंकि अगर उनको भी इस बारे में भनक होती तो शायद वे ऐसा होने ही नहीं देते