सुप्रीम कोर्ट ने कहा: भूमि अधिग्रहण के बाद मुआवजा रोकना असंवैधानिक,आज के बाजार भाव से मुआवज़ा देने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि कोई भी सरकार भूमि अधिग्रहण के वर्षों बाद मुआवजे का भुगतान रोक नहीं सकती। यह टिप्पणी कर्नाटक सरकार के उस मामले में आई जिसमें 1986 में भूमि अधिग्रहण के बावजूद मालिक को मुआवजा नहीं दिया गया था। अदालत ने कर्नाटक सरकार को आदेश दिया कि वह 2019 की बाजार दर के आधार पर मुआवजा दे। फैसले के बाद किसानों में जागी उम्मीद की नई किरण !

सुप्रीम कोर्ट ने कहा: भूमि अधिग्रहण के बाद मुआवजा रोकना असंवैधानिक,आज के बाजार भाव से मुआवज़ा देने का आदेश

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क  

 न्यायमूर्ति सूर्यकांत और उज्जल भुयान की पीठ ने जयलक्ष्मम्मा और अन्य भूमि मालिकों की याचिका पर सुनवाई की। उनके लगभग दो एकड़ भूमि का अधिग्रहण मैसूरु के हिंकल गांव में विजय नगर लेआउट विकसित करने के लिए किया गया था। अंतिम अधिग्रहण अधिसूचना मार्च 1984 में जारी की गई और मुआवजा निर्धारण 1986 में हुआ।

अदालत ने कहा, "1986 का मुआवजा निर्धारण कर्नाटक सरकार को उचित और न्यायसंगत मुआवजा देने से मुक्त नहीं करता। मुआवजा न देना संविधान के अनुच्छेद 300ए (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन है। अधिकारियों ने 33 वर्षों तक मुआवजा रोकने का कोई ठोस कानूनी या तथ्यात्मक आधार नहीं दिया।"

निर्णय के प्रमुख बिंदु

1. 2019 में मुआवजा दिया गया: अदालत ने पाया कि 1986 की दर पर मुआवजा 2019 में दिया गया, जो अनुचित था।

2. मुआवजा निर्धारण: विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी को निर्देश दिया गया कि वह 1 जून 2019 के बाजार मूल्य के अनुसार मुआवजा निर्धारित करें और चार सप्ताह के भीतर संबंधित अदालत में जमा करें।

3. भूमि स्वामित्व: भूमि मालिक को मुआवजा प्राप्त करने के बाद बिना किसी अड़चन के भूमि का स्वामित्व सरकार को सौंपने का आदेश दिया गया।

इंदौर विकास प्राधिकरण के लिए सबक , इसी तरह के सबसे ज़्यादा मामले प्राधिकरण के खिलाफ अदालतों में विचाराधीन  

इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) जैसे शहरी विकास निकायों के लिए यह निर्णय एक अहम उदाहरण है। जब शहरी विकास के लिए भूमि अधिग्रहण किया जाता है, तो भूमि मालिकों को समय पर और उचित मुआवजा सुनिश्चित करना चाहिए। वर्षों तक मुआवजा रोकना न केवल कानूनी विवाद पैदा करता है, बल्कि विकास परियोजनाओं में देरी भी करता है। IDA की अक्सर अदालत को गुमराह करने की निति रही हे बेशक अब अदालतों का रुख भी कड़ा होता जा रहा जिसके सुखद परिणाम जल्द देखने को भी मिल सकते हैं ! 

आईडीए को सुनिश्चित करना चाहिए कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पारदर्शी और संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार हो। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में सुधार और भूमि मालिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मील का पत्थर है। सर्वोच्च न्यायलय के इस निर्णय के बाद अब वर्षों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे किसानों को भी अदालतों से राहत मिलने की उम्मीद जाग गयी हे क्यूंकि विकास प्राधिकरण के खिलाफ दस्तावेजी साक्ष्य भी अब किसानों द्वारा अदालत में पेश किये जा चुके हैं जिन्ही किसी भी स्तर पर किसी के भी द्वारा नकारा नहीं जा सकता !