वन विभाग बन रहा किसानों के साथ तानाशाह
पुरे प्रदेश में रोजड़ों के आतंक से किसान बेहाल ,न वन विभाग न जिला प्रशासन न ही राज्य सरकार ले रही सुध
द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर
कई बार हम किसानों को आ रही रोजड़ों की समस्या से लगातार शासन प्रशासन को अवगत कराने की कोशिश करते आ रहें हैं ,कई किसान संघठन भी इस मुद्दे को लेकर अपनी आवाज़ उठाते रहे हैं ,कुछ किसान संगठनों ने तो मुख्यमंत्री से बार बार गुहार लगाई और हार कर मुख्यमंत्री ने वन विभाग को युवा किसान संघ की शिकायत आला अफसरों को निराकरण के लिए भेजा ! आला अफसरों का जवाब भी आया और किसान संघ को पत्र भेज बताया गया की वन विभाग वर्ष २००३ में ही हर अनुविभागीय अधिकारी को निरदेशित कर चूका हे की जहाँ जहाँ भी वन्य जीवों से किसानों को समस्या आ रही हे और उनकी फसलें ख़राब हो रही हैं तत्काल पटवारी को भेज रिपोर्ट मंगा सबंधित किसान को वन्य जीवों को मारने की अनुमति प्रदान की जाये ! बेशक आदेश २००३ में आ गया हे लेकिन यह इतना गैरव्यवहारिक हे न तो किसान न ही प्रशासन इस और कुछ कर पा रहें हैं ! अगर किसान की बात की जाये तो किसान मारने का आवेदन इसलिए नहीं दे रहा की अगर अनुमति मिल भी गयी तो बन्दुक कहाँ से लाएगा और लाइसेंस बनवाने में तो कम से कम दो से तीन साल लग जायेंगे ! वहीँ प्रशासन के सामने कानून व्यवस्था एक सबसे बड़ी चुनौती हे !
क्यों बढ़ी समस्या ?
दरअसल इसे सरकार की किसानों को लेकर असवेंदनशीलता और किसानों को झूठ की पुड़िया दे कर अपना भाई बता कर वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करने की निति ही रही हे ! रोजड़ों की संख्या में इज़ाफ़ा कुछ ही सालों पहले हुवा हे और इस प्रजाति की प्रजनन क्षमता इतनी अधिक हे की एक साल में यह दो बार प्रजनन करती हैं !आज इंदौर जिले में ही संख्या पांच हज़ार के ऊपर पहुँच गयी हे ! अगर समय रहते नर प्रजाति के रोजड़ों की नसबंदी करा दी गयी होती तो आज यह समस्या विकराल रूप नहीं लेती लेकिन अधेर नगरी चौपट राजा की कहावत तो सब ही जानते हैं ! कोई भी उच्च पद पर बैठा अपने आप को किसान हितेषी और खुद किसान होने का दवा करता रहे लेकिन असलियत कुछ और ही बात कह रही हे !
२००३ का आदेश नहीं तो क्या विकल्प
२००३ के वन विभाग के आदेश में कई व्यहवारिक दिक्क़तें हैं जिसे न ही कोई प्रशासनिक अधिकारी और न ही कोई भी जनप्रतिनिधि समझ पां रहा हे और इस और कोई ठोस कदम उठा रहा हे ,वहीँ दूसरी और आज भी अगर किसी वन्य जीव की मौत किसी किसान के खेत में दुर्घटना वश हो जाती हे तो तत्काल वन विभाग का अमला fir दर्ज कराने पहुँच जाता हे लेकिन अगर वन्य जीव से किसान की फसल और ज़िन्दगी की हानि होती हे तो वन अमले को इस बात से कोई सरोकार नहीं हे ! और जब तक प्रशासन शासन के आदेश और अपने दायित्व के निर्वहन के लिऐ कटिबद्ध नहीं होगा तब तक चौतरफा स्तर पर समस्या बढ़ती रहेंगी ।
दिलीप मुकाती शहर अध्यक्ष भा कि स का कहना हे :
२००३ के आदेश के विकल्प में हम सम्भांगयुक्त को जल्द ही ज्ञापन देंगे और समस्या का हल जल्द नहीं करने पर पुरे प्रदेश में आंदोलन किया जायेगा
विपिन पाटीदार सचिव युवा किसान संघ का कहना हे:
२००३ के आदेश के विकल्प में रोजड़ों की नसबंदी और शहरों के आसपास के वन्य एवं आवासीय क्षेत्रों से रोजडो को पकड़ने के लिय टेंपरेरी मस्टर पर कर्मचारियों की नियुक्ति कर उन्हे सघन वन्य क्षेत्रों में नर की नसबंदी कर के छोड़ देना चाहिए । इसके लिए हम पहले भी प्रशासन को लिख चुकें हे लेकिन कहीं न कहीं प्रशासन की किसानों को लेकर उदासीनता इसे होने से रोक रही हे !