प्राधिकरण की गफलत भरी, रिकॉर्ड से अलग नीतियों से परेशान जनता और, शासन
प्राधिकरण बोर्ड बैठक दिनांक 28/5/2016 विषय क्रमांक 18 यह लिखा गया था कि प्राधिकारी की योजना के लिए भू अर्जन अधिनियम 1894 के प्रावधानों के तहत् भूमि के अर्जन की कार्यवाही हुई है। उक्त अधिनियम अब प्रभावशील नहीं है और उसके स्थान पर नवीन भू अर्जन अधिनियम 2013 प्रभावी हो गया है अतः ऐसी स्थिति में भू अर्जन अधिनियम 1894 निरसीत होने से अधिनियम की धारा 48 के तहत् डिनोटिफिकेशन की कार्यवाही नहीं हो सकती। उक्त बोर्ड नोट पर तत्कालीन विधि, भू अर्जन, मुख्य नगर नियोजक , और मुख्य कार्यपालिक अधिकारी के हस्ताक्षर है क्योंकि वह जानते थे कि दोनों कानून केंद्र के है उसमें हस्तक्षेप करना प्रदेश शासन के अधिकार में नहीं है । क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में प्राधिकरण में प्राधिकारी की और शासन की गुडविल से अधिक अपने अधिकारियों की गलतियों को छुपाना है शायद यही वज़ह है कि विगत कुछ समय से चौतरफा प्राधिकरण की कार्यशैली का विरोध हो रहा है !
द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर
यूँ तो प्राधिकरण का भी अपना दायरा होता हे और इसे भी कानून के दायरे में ही सबकुछ करना पड़ता हे ,लेकिन विगत कुछ वर्षों से क़ानून के बहार जा कर कार्यशैली अब प्राधिकरण में आम हो चली हे ,मास्टर प्लान की सड़कों को बनाने के लिए जन्मी यह संस्था अब कानून के साथ भी खिलवाड़ करने लगी हे ! हर मामले पेंच डाल कर उलझाना प्राधिकरण के अधिकारी भली भांति जानते हैं,इतना ही नहीं अपने स्वार्थ के लिए शासन तक से ऐसे आदेश पारित करवा लेते हैं जो किसी भी कानून के दायरे में नहीं आते !
ताज़ा मामला अयोध्यापुरी योजना 77 से संभंधित हे ,उक्त योजना वर्ष 1985 में प्राधिकरण द्वारा बनाई गयी थी जिसे उच्च न्यायलय द्वारा वर्ष 1996 में अवैधानिक मानते हुए निरस्त कर दिया गया था ,सम्पूर्ण योजना में लगभग 100 हेक्ट भूमि का अधिग्रहण किया जाना था ,और इसका अवार्ड भी पारित किया जा चूका था ,शासन की अनुमति नहीं लिए जाने के साथ कई और भी वैधानिक कमियां इसमें रही जिसके कारण योजना न्यायलय द्वारा समापत कर दी गयी !
कुछ वर्षों पहले योजना में शामिल अयोध्यापुरी को NOC भी प्रदान कर दी गयी जिसे बाद में बदल दिया गया ,पहले कहा गया योजना में कुछ भी राशि खर्च नहीं की अब 70 लाख बतौर खर्च बताई जा रही हे और योजना में डी नोटिफिकेशन का पेंच फंसा दिया गया हे जिसकी कानूनी रूप से कोई आवशयकता नहीं हे !
क्या हे वैधानिक स्थिति ?
दरअसल वर्ष 2016 में प्राधिकरण के विधि अधिकारी ,भूअर्जन अधिकारी ,नगर नियोजक और खुद मुख्य कार्यपालन अधिकारी के हस्ताक्षर से बोर्ड नोट तैयार किया गया और प्रस्ताव बोर्ड के समक्ष रखा गया जिसमे पूछा गया की " भूमि अधिग्रहण कानून 1894 निरसित ( खत्म ) किया जा चूका हे और कई जगह न्यायलय द्वारा भी इसके तहत योजनाओं को समाप्त किया जा चूका हे ,क्यूंकि ख़तम हो चुके कानून की धारा 48 के तहत अब डी नोटिफिकेशन नहीं किया जा सकता अतः स्थिति का स्पष्टीकरण दिया जाना उचित होगा ! जिस पर वर्ष 2016 में ही पारित संकल्प 75 में कहा गया की ऐसी कोई भी योजना जो न्यायलय द्वारा खत्म की जा चुकी हे में डी नोटिफिकेशन की कार्यवाही की जाना आवश्यक नहीं होगा ,संकल्प में योजना 53 ,77 ,45 और 95 का भी ज़िक्र था !
गफलत भरा TNCP में संशोधन
वहीँ वर्ष 2020 में प्रदेश सरकार द्वारा उक्त एक्ट संशोधन कर दिया गया और लिखा गया की जहाँ जहाँ भी योजना में 10% स्वीकृत रही राशि से कम खर्च किया गया हे उन भूमियों को खर्च की गयी राशि की पुनः भूमि स्वामियों से मांग कर मुक्त किया जा सकता हे ,यहीं से डी नोटिफिकेशन के बात शुरू हो गयी ,अब सवाल यह उठता हे की राशि स्वीकृत हुई भी थी या नहीं इसका कहीं कोई स्पष्टीकरण कहीं से भी नहीं दिया जा रहा हे !
उठ रहे सवाल
पुरे मामले को अगर समझा जाए तो योजना का क्रियान्वन वर्ष 1985 में शुरू किया गया था ,हर योजना MPTNCP एक्ट (राज शासन द्वारा घोषित कानून )के तहत घोषित की जाती हे और अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू की जाती हे ,लेकिन समय सीमा निकल जाने के बाद एजेंसी भूमि अधिग्रहण कानून 1857 (केंद्र द्वारा पारित लेकिन वर्ष 2013 से समाप्त )के तहत अनिवार्य अर्जन भूमियों का किया जाता हे ! भूमि अधिग्रहण कानून के तहत जैसे ही कार्यवाही शुरू की जाती हे MPTNCP एक्ट का प्रभाव उसी वक़्त समाप्त हो जाता हे बेशक योजना की प्राथमिक घोषणा इसी के तहत हुई हो ! अब जब 1894 कानून ख़त्म हे ,और डी नोटिफिकेशन की कार्यवाही इस कानून की ही नहीं जा सकती ,प्राधिकरण द्वारा अस्वीकृत राशि वापस मांगने के चक्कर में MPTNCP एक्ट के तहत दी नोटिफिकेशन की बात कही जा रही हे ! विधि विशेषयगयों का भी मानना हे की ऐसा अगर किया जाता हे तो यह अवैधानिक हो होगा ,क्यूंकि कोई भी 2 कानून एक दूसरे को काट नहीं सकते !
अयोध्या पूरी के एक पीड़ित सदस्य का कहना हे की हमें हर भर झांसा दिया जा रहा हे ,संस्था के 400 सदस्य अकारण परेशान हो रहे हैं ,जब डी नोटिफिकेशन ज़रूरी ही नहीं तो बिना मतलब परेशान करने का क्या औचित्य ?
वहीँ विधि एवं भूअर्जन अधिकारी इ.वि.प्रा सुदीप मीणा कहना हे " उक्त योजना में प्राधिकरण द्वारा लगभग 70 लाख राशि खर्च की गयी हे ,जिसे भूस्वामियों से वापस माँगा जायेगा , इस हेतु योजना को डी नोटिफाई कर राशि वापस मांगने की विज्ञप्ति जल्द प्रकाशित की जाएगी ! "