भूमि अधिग्रहण कानून के तहत सर्वोच्च न्यायलय द्वारा पारित निर्णय से किसानों में हर्ष

किसानों को अब अधिनियम 2013 की धारा 24 के सभी प्रावधान का लाभ उनके तथ्यों के आधार पर मिल सकेगा और अधिनियम 1894 के तहत् भी  सर्वोच्च न्यायलय द्वारा  पारित इस निर्णय से किसानों में हर्ष का माहौल  है और  किसानों ने कहा की भारत की न्यापालिका श्रेष्ठ है ! अधिग्रहण अगर निरसित कानून 1894 में किया गया हे तो उसके प्रावधानों के अनुसार की गयी कार्यवाही को भी देखना होगा अदालतों को अब अधिग्रहण को समाप्त  या बरक़रार रखने के लिए नविन भूमि अधिग्रहण की धारा 24 पर्याप्त  नहीं

भूमि अधिग्रहण कानून के तहत सर्वोच्च न्यायलय द्वारा पारित निर्णय से किसानों में हर्ष

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर 

अभी हाल ही में सर्वोच्च न्यायलय की जस्टिस एम् आर शाह की पीठ ने प्राधिकरण  विरुद्ध  मनोहरलाल की याचिका को निराकृत करते हुए उसे पुनः इंदौर उच्च न्यायलय को रिमांड कर दिया ! न्यायलय ने याचिका में दिए गए तथ्यों का पुनरावलोकन करने का आदेश भी उच्च न्यायलय को दिया साथ ही 12 महीने में गुण  और दोष के आधार पर निराकृत करने आ आदेश भी दिया ! वर्ष 2020  में  न्यायमूर्ति  अरुण मिश्रा वाली संवैधानिक  पीठ द्वारा दिए गए के निर्णय के बाद अदालतों के सामने संशय की स्थिति पैदा हो गयी थी  ! इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्वे मुख्य न्यायधीश  एस ए बोबड़े ने भी कहा था की उक्त  निर्णय में के कुछ पहलुओं पर अभी भी विचारण शेष है जिसके कई पहलू अभी भी अनुत्तरित है पर आंशिक रूप  से  न्यायमूर्ति  एम् आर शाह की बैंच द्वारा दिए गए इस निर्णय से कुछ संशय की स्थिति  दूर हुई है और वापस किसानों में एक उम्मीद की किरण जागी  हे  ! ज्ञात रहे न्यायमूर्ति शाह भी उक्त संवैधानिक पीठ का हिस्सा रहे थे !  

दरअसल इंदौर विकास प्राधिकरण विरुद्ध मनोहर लाल द्वारा दायर की गयी याचिका पर वर्ष 2006 में इंदौर उच्च न्यायलय ने अधिग्रहण को 1894 के प्रावधानों के आलोक में समाप्त  कर दिया था जिसके विरूद्ध प्राधिकरण ने अपील दायर की थी ,याचिका के चलन में रहते ही वर्ष 2014 में नविन भूमि अधिग्रहण आया और मनोहरलाल द्वारा नविन कानून की धारा 24 के तहत भी अधिग्रहण को समाप्त  करने का निवेदन न्यायलय से किया गया जिसे स्वीकार करते हुए न्यायलय  ने मनोहरलाल के पक्ष में निर्णय दिया और अधिग्रहण को समाप्त  कर दिया ! नविन अधिग्रहण के प्रावधानों में अधिग्रहण समाप्त  करने ( धारा  24 (2) में 3 महत्वपूर्ण बातें कही गयी थी जिसमे अवार्ड का 2014 के 5 वर्ष पूर्व यानि 2009 के पूर्व घोषित होना भूमि का 1894 के प्रावधानों के तहत अवार्ड घोषित होने के 5 वर्षों तक कब्ज़ा नहीं लेना या भूमि की मुआवज़ा राशि का भुगतान 5वर्षों के अंदर नहीं किया गया हो तो सम्पूर्ण अधिग्रहण की कार्यवाही को शून्य मान लेने का प्रावधान था !

वर्ष 2020  में सर्वोच्च न्यायलय की न्यायमूर्ति  अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ ने "या" को हटाकर "और" कर दिया वहीँ मुआवज़े के लिए यह भी निर्णीत कर दिया के किसान को मुआवज़ा मिला या नहीं इससे कोई फर्क नहीं पढता ,अगर भूअर्जन अधिकारी ने मुआवज़े की सूचना किसान को दे दी उतना ही पर्याप्त  माना जायेगा ! चूँकि पहले दिए प्रावधानों के तहत न्यायलय कई अधिग्रहण समाप्त कर चूका था और नई परिभाषा के चलते एक संशय की स्थिति पैदा हो चली थी !   2013 कानून जब अस्तित्व में आया उसमे स्पष्ट लिखा था की मुआवज़े की राशि किसान के खाते में जमा हो जानी  चाहिए जिसे संवैधानिक पीठ ने   बदल दिया  और सिर्फ मुआवज़े की सुचना को ही पर्याप्त मान लिया  !

पूर्व मुख्य न्यायाधीश भी संवैधानिक पीठ के निर्णय पर उठा चुके हे सवाल 

संवैधानिक पीठ  का निर्णय शुरू से ही विवादों में घिर रहा  क्यूंकि  लोकसभा में पारित कानून और पुणे मुन्सिपल के आदेश के आधार पर  देश के हजारों किसानों के प्रकरण निराकृत हुवे और वे लाभन्वित हुवे थे।  सैकड़ों  निर्णयों के विपरीत जाकर न्यायमूर्ति  मिश्रा  की संवैधानिक पीठ ने लोकसभा द्वारा पारित कानून और सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय को एक नई परिभाषा दे दी  जिसका प्रभाव सविधान के अनुच्छेद 14 जिसमें सभी को समानता का अधिकार हे  को  संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया था । जिस कानून ने पहले हजारों किसानों को जीवन दान दिया उसी कानून से अब हजारों किसानों को फांसी होगी । संभवत इसलिए ही पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने  संवैधानिक पीठ के निर्णय में कई पहलुओं पर विचारण हेतु कहा था !  पीठ ने सिर्फ धारा 24की उपधारा 2 को पुनः परिभाषित किया था ,बाकि प्रावधानों को जस का तस ही रहने दिया गया था,किसानों को मुआवज़े का अधिकार पूरी तरह से सुरक्षित रखा था ! 

धारा 24 को सिर्फ 24 ( 2 ) समझा जा रहा हे 

अब जस्टिस एम् आर शाह द्वारा पारित निर्णय में स्पष्ट कर दिया गया हे की धारा 24का दायरा सिर्फ उपधारा (2) तक सिमित नहीं हे और अदालतों को धारा  २4 के सभी प्रावधानों का भी सूक्ष्म अध्ध्यन कर निर्णय पारित करने होंगे ! धारा 24 में ही अन्य प्रावधान और भी हैं जैसे अगर अधिकतम किसानों या बहुधारकों को मुआवज़ा राशि का भुगतान 5 साल के अंदर नहीं किया गया हे तो सभी किसान जो 1894कानून की धारा 4 की अधिसूचना में शामिल थे वे 2014 कानून के प्रावधानों के अनुसार अधिकतम मुआवज़े के हक़दार होंगे ! जहाँ तक 24 (2) के बात हे वह संवेधानिक पीठ प्रावधानों को स्पष्ट कर चुकी हे लेकिन 1894 के प्रावधानों के अनुसार अगर अधिग्रहण को चुनौती दी गयी हे तो उसी कानून के प्रावधानों को भी अदालतों को देखना होगा ! 

किसानों में जागी उम्मीद 

किसानों का कहना हे 2021 के बाद वर्षों से चल रही लड़ाई अधर में चली गयी थी लेकिन इस निर्णय के पारित होने के बाद कहा जा सकता हे की कानून में देर ज़रूर हे लेकिन अंधेर बिलकुल नहीं हे ! इस निर्णय के बाद किसानों के पक्ष में निर्णय पारित होने की पूरी उम्मीद हे !