2 मिनट का सबर कर लो  भिया   घंटों के  जाम से बच जाओगे

शहर के बाशिंदे ही लजवा रहे  शहर को, सड़क पर  ऐसे चलते हैं जैसे इलायची के जहाज खाली होने वाले  हैं

2 मिनट का सबर कर लो  भिया   घंटों के  जाम से बच जाओगे

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क

शहर की मैन रोड पर जनता को इस तरह चलते देखा जाता हे  जैसे न सड़क बचेगी ना ही उनकी महंगी गाड़ी और ना ही जीवन, इस तरह होड़  लगाते हैं  मानो जहां खड़े हैं या जिस सड़क पर चल रहे हैं उस पर भूकंप आने वाला है और सब कुछ खत्म होने वाला हे और अगर जल्दी वहाँ से निकल गए तो अमरजड़ी इन्ही को मिल जाएगी  !  सीधी चलती गाड़ियों के सामने से पहले अपनी गाड़ी निकालने की होड़  जैसे माइकल शूमाकर की आत्मा इन्हीं के अंदर आ गई हे , किसी रेस  ट्रैक पर गाड़ी चल रही है और जीतने पर करोड़ों का इनाम मिलेगा और देश के प्रधानमंत्री इन्हे पुरस्कारों से नवाज़ देंगे !  नवयुवकों के अलावा  अधेड़ उम्र और महिलाओं को भी इस होड़ में शामिल देख बड़ा अचरज  होता है !  पढ़े-लिखे और कोट टाई  वाले तो ज्यादा ही समझदार है जहां देखते हैं 3 गाड़ियां किसी कारण से एक के पीछे एक कुछ सेकण्डों के लिए जैसे ही रूकती हे  बस कहानी वहीं से शुरू हो जाती है और गाड़ी चलाने के सारे गुण उसी टाइम इन लोगों में देखने को मिलते हैं ! रॉन्ग साइड से गाड़ी को आगे कैसे ले जाना गाड़ी पीछे लेकर फिर कहीं भी फसा देना यह एक आम बात शहर में हो गई !

इतना ही नहीं ट्रैफिक पुलिस भी नो पार्किंग, धीरे चलो , दुर्घटना से देर भली जैसे 18वीं सदी के नारों पर ही टिकी हुई है ! कई पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी और अनुभवी अधिकारी आज शहर में मौजूद है लेकिन कहीं भी ट्रैफिक के नियम या जनता को जागृत करने वाले  स्लोगन इस्तेमाल नहीं कर पा रही है!  और शायद उनकी भी गलती नहीं हे  ट्रैफिक तो छोड़ो  शहर की पुलिस के पास ही  पर्याप्त अमला नहीं हे  और हर पुलिस वाले के ऊपर काम का बोझ इतना है कि वह लीक से हटकर सोचने को तैयार ही नहीं या उनके पास समय ही नहीं !  गाड़ी चलाते वक्त सब्र रखें, गाड़ी को रॉन्ग साइड से ओवरटेक ना करें, गलत लेन में ना चले, पैदल चलने वालों को पहले निकल जाने दे ,बुज़ुर्गों को पहले साइड दें.,जाम की स्थिति सब्र और बुद्धि का सही इस्तेमाल करें ,सिग्नल शुरू होते ही हॉर्न का उपयोग न करें ,सड़क पर बेतरतीब कही भी वाहन  न रोकें  जैसी बातें पुलिस महकमा जनता को जागृत करने के लिए कहीं इस्तेमाल ही नहीं करता और 18वीं सदी के नारों पर ही पूरी ट्रैफिक व्यवस्था का जिम्मा सौंप रखा है ! 

 स्वच्छता में शहर ने  पूरे देश में नाम कमा लिया लेकिन ट्रैफिक व्यवस्था में शहर की जनता ने पूरे देश में शहर का नाम मिट्टी में मिला कर रखा है !  बिना जनता के सहयोग के न स्वच्छता में शहर नंबर वन हो सकता था और ना ही ट्रैफिक व्यवस्था में हो पाएगा !  सोशल मीडिया व्हाट्सएप और मोबाइल फोन ने  आदमी के अंदर इतना उतावलापन डाल दिया हे  सब्र तो कहीं खो ही गई!  पैदल चलने वाले भी कम नहीं है जेबरा क्रॉसिंग का कंसेप्ट तो  शहर को कभी समझ ही नहीं आएगा  क्योंकि जब सिग्नल बंद होता है गाड़ियां  रुकी रहती है पैदल चलने वली जनता भी  गाड़ियों के पास आकर खड़ी  हो जाती  हे  और जैसी सिग्नल चालू होता है रजनीकांत की आत्मा इनके अंदर आती है और यह गाड़ियों के बीच में से स्टंट करते हुए निकलने की कोशिश  करते दिख जाते हैं ! 

रही बात यातायात पुलिस की तो वो भी क्या करें काम का बोझ इतना है जहां पर पैदल चलने वाले गाड़ियों से आगे निकल जाते हैं ऐसे ही भीड़ वाले इलाके में गाड़ियां रोक कर चालानी कार्रवाई अफसरों के कहने पर करना शुरू कर देते हैं !  जिन  लेफ्ट टर्न  को निगम द्वारा इसलिए चौड़ा  किया गया की यातायात  का दबाव कम हो और यातायात सुगम हो , अक्सर यातायात पुलिस उन्ही लेफ्ट टर्न पर खड़े  होकर गाड़ियां रोक लेती हे ! बस वाले तो किसी के बस में ही नहीं सिग्नल क्रॉस करते ही सवारी के लिए गाड़ी रोक लेते हे अब तो शहर में सिग्नल के पास ही कई जगह अघोषित बस स्टैंड बन गए हे !  सोने पर सुहागा तो एक अजूबे मॉल ने कर  डाला जिसको देखने के लिए बायपास के मेन कैरेज वे पर ही मेरे शहर के बाशिंदे गाड़ी अपने बाप की सड़क समझकर पार्क  कर रहें हे ,अब किसी दिन कोई ट्रक वाला कुचल देगा तो कई समाज वाले  मॉल और पुलिस  के खिलाफ प्रदर्शन करने में एकजुट हो जायेंगे !  बस शहर की बेचारी पुलिस  को कोसते  रहते हैं खुद की गलती दिखाई नहीं देती ! अगर  पुलिस समझाइश देने आती हे, चालानी कार्यवाही करती हे तो आजकल भिया नहीं तो किसी अदालत के जज साहब का नाम भी ले लेंगे फिर भी नहीं माने  तो बात भी करा देंगे  फिर भिया या जज साहब  पुलिस वालों को अच्छे से समझा ही देंगे !  अगर कोई कड़क अधिकारी यदाकदा मिल गया उस टाइम तो चालान  बना देगा  लेकिन बाद में शहर में रहेगा के नहीं  इसकी कोई गारंटी  भी नहीं होती ! बेशक बड़ी-बड़ी बैठक यातायात व्यवस्था को लेकर  अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपने स्तर पर कर रहे हैं लेकिन यातायात को वैज्ञानिक तरीके से कैसे सुधारा जा सकता हे  इस और कहीं कोई बातचीत या निर्णय अभी तक नहीं देखने को मिला  ! बस दिखा हे तो सिर्फ तुगलकी फरमान !