हिटलरशाही में लिए गए फैसले बाद में बन जाते हैं गले की हड्डी: इंदौर का बीआरटीएस एक बड़ा उदाहरण
भूमि सिमित संसाधन ,लेकिन लगातार होते हैं बेतुके प्रयोग ,साल 2013 में इंदौर शहर में मास ट्रांसपोर्टेशन की जरूरत को ध्यान में रखते हुए बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटीएस) का निर्माण किया गया था। तत्कालीन सांसद और कलेक्टर के विशेष प्रयासों और जनप्रतिनिधियों के समर्थन से यह परियोजना लागू हुई। इसके पीछे दलील दी गई थी कि भविष्य में शहर में ट्रैफिक का दबाव बढ़ेगा और इसे संभालने के लिए बीआरटीएस कारगर होगा। लेकिन समय के साथ यह परियोजना जनता के गले की हड्डी बन गई। भूमि जिसका उत्पादन संभव नहीं ,सूझबूझ से करना होगा दोहन ,नहीं तो परिणाम गंभीर !
एक्सपोज लाइव न्यूज नेटवर्क, इंदौर:
साल 2013 में इंदौर शहर में मास ट्रांसपोर्टेशन की जरूरत को ध्यान में रखते हुए बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटीएस) का निर्माण किया गया था। तत्कालीन सांसद और कलेक्टर के विशेष प्रयासों और जनप्रतिनिधियों के समर्थन से यह परियोजना लागू हुई। इसके पीछे दलील दी गई थी कि भविष्य में शहर में ट्रैफिक का दबाव बढ़ेगा और इसे संभालने के लिए बीआरटीएस कारगर होगा। लेकिन समय के साथ यह परियोजना जनता के गले की हड्डी बन गई।
शुरुआत से विवादों में घिरा बीआरटीएस
बीआरटीएस को लागू करने का फैसला शुरू से ही विवादों में रहा। कई सामाजिक संगठनों और गणमान्य नागरिकों ने इसका विरोध किया था। उनका मानना था कि शहर की जरूरतों को ध्यान में रखे बिना यह परियोजना लागू की गई है। इसके बावजूद तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने इसे लागू किया, बिना जनता के साथ संवाद किए।
जनता की राय और परेशानियां
एक बुजुर्ग शहरवासी ने बताया, "इंदौर इतना बड़ा शहर नहीं है कि यहां हर तरह के परिवहन प्रयोग किए जाएं। पलासिया से गीता भवन और नौलखा तक के लिए मास ट्रांसपोर्टेशन की जरूरत ही नहीं है।" लेकिन अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपनी ज़िद्द के चलते ऐसे प्रयोग करते आये हैं ,जिस संस्था ने इसमें इसमें सबसे ज़्यादा पूंजी लगाई वो क्या किसी निजी स्रोत से आयी थी या जनता कमाई थी ,क्या उन अधिकारीयों पर जनता के पैसे के दुरूपयोग का आपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं होना चाहिए ? आज वही संस्था जनता से करोड़ों की लीज हर साल प्राप्त कर रही हे और बेतुकी योजनएं लगातार बनती जा रही हे ,विरोध भी हो रहा हे लेकिन हर विरोध को आज दरकिनार किया जा रहा हे जो फिर गले की हड्डी बनने को तैयार हे ! उन्होंने यह भी कहा कि कभी लोग राजवाड़ा से नौलखा और पाटनीपुरा तक पैदल सफर करते थे, लेकिन अब इन सकरी गलियों में मास ट्रांसपोर्टेशन और मेट्रो जैसे प्रयोग हो रहे हैं, जो शहर के लिए अव्यावहारिक हैं। जिस दिन जनता ने हिसाब मांग लिया ज़िम्मेदारों के सामने एक बड़ी मुसीबत हो जाएगी !
प्रारंभिक परीक्षण और लागू करने में जल्दबाजी
विशेषज्ञों का कहना है कि बीआरटीएस को लागू करने से पहले इसका परीक्षण और जनसंवाद नहीं किया गया। इसकी वजह से यह परियोजना शुरू होने के बाद से ही विफल रही। लोगों को रोजमर्रा के सफर में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
फैसले का प्रभाव और भविष्य
अब, लगभग एक दशक बाद, बीआरटीएस को खत्म करने का आदेश जारी किया गया है। यह फैसला साबित करता है कि बिना पर्याप्त विचार और परीक्षण के लागू की गई परियोजनाएं लंबे समय तक कारगर नहीं हो पातीं। शहरवासियों का मानना है कि जनप्रतिनिधियों को ऐसे बड़े फैसले लेने से पहले जनता के साथ संवाद और क्षेत्र की वास्तविक जरूरतों का आकलन करना चाहिए।
बीआरटीएस का विफल होना यह सीख देता है कि किसी भी निर्णय में जनता की भागीदारी और विशेषज्ञों की राय अनिवार्य है। इंदौर जैसे तेजी से विकसित हो रहे शहर को संतुलित विकास की जरूरत है, जिसमें निर्णय जनता के हित और शहर की वास्तविक जरूरतों को ध्यान में रखकर लिए जाएं।