वर्षों से लंबित भूमि अधिग्रहण के मामलों में न्याय मिलने की जागी उम्मीद
सर्वोच्च न्यायलय के बाद अब उच्च न्यायलय इंदौर पीठ ने भी सुनाया फैसला
द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर
पीढ़ियों से न्यायलय में न्याय की अपेक्षा में भूमि अधिग्रहण को ले कर लड़ रहे किसानों में अब उम्मीद जागने लगी हे ! अभी हाल ही में सर्वोच्च न्यायलय ने किसानों के पक्ष में निर्णय पारित कर मनोहरलाल विरूद्ध IDA मामले को पुनः उच्च न्यायालय को सूक्ष्म अध्ययन कर निर्णय पारित करने का निर्देश दिया था ! उसके तुरंत बाद न्यायमूर्ति प्रणय वर्मा की एकल पीठ ने ऐसे ही एक (WP 5810 /2015 एवम् अन्य) मामले में अधिग्रहण के सभी पहुलओं को शामिल कर पुनः याचिका लगाने का निर्णय पारित किया ! यह याचिका भी इंदौर विकास प्राधिकरण के विरुद्ध ही लगाया गया था !
दरअसल भूमि अधिग्रहण को लेकर न्यायलय में चल रहे मामलों में कई बड़े उतर चढाव आये , पहला वर्ष 2014 में जब सभी दलों की सहमति के बाद नविन भूमि अधिग्रहण बना ! इसी कानून में धारा 24 बनी थी जिसमे उपधारा 2 बनी ।जिसमे अधिग्रहण कब समाप्त माना जायेगा स्पष्ट किया गया और इसी धारा में कई महत्वपूर्ण निर्णय भी सर्वोच्च न्यायलय ने पारित भी किए जो सभी किसानों के पक्ष में गए ! जब तत्कालीन केंद्र सरकार को जैसे ही समझ आया की सरकार के हाथ से इस तरह से लैंड बैंक खत्म हो जायेगा तभी ताबड़तोड़ अध्यादेश लागु कर सरकार ने अपने पक्ष में कानून में बदलाव कर दिए ! पुरे देश में इसका बहुत विरोध हुवा और आखिर कार सरकार को बदलाव वापस लेने पड़े ! सिर्फ केंद्र सरकार ही नहीं पुरे देश की कई प्रदेश सरकारों ने भी अपने अपने कानून बनाना शुरू कर दिए और भूमि अधिग्रहण को किसानों के विरोध में कर दिया गया ! मध्य प्रदेश सरकार ने भी TNCP एक्ट की धारा 56 में वर्ष 2016 में असंवैधानिक बदलाव कर दिए थे और जिस पर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा किसान आंदोलन के दौरान उज्जैन में घोषणा की थी की किसान विरोधी संशोधन वापस लेंगे। यह दुसरी बात है की वह किसान विरोधी संशोधन वापस नहीं लिय। और यहाँ तक किसानों को न्यायलय में जाने के अधिकार ही ख़त्म कर दिए और सभी बदलाव को 43 साल पीछे से लागु मान लिया गया ! फिर 2020 में जस्टिस अरुण मिश्रा की संवैधानिक पीठ ने एक निर्णय दिया जिस पर खुद मुख्य न्यायाधीश ने सवाल उठा दिए ! अंततः जस्टिस एम आर शाह ने हाल ही में कई चीज़ों को स्पष्ट किया और कहा की हर मामले को न्यायलय को सूक्ष्मता के साथ देख ही निर्णय पारित करना होगा और उसके तुरंत बाद इंदौर उच्च न्यायलय ने याचिकाकर्ता को सभी पहलुओं को स्पष्ट करते हुए पुनः याचिका लगाने की स्वतंत्रता प्रदान करी !
सबसे अधिक मामले विकास प्राधिकरणों के खिलाफ न्यायलय में चल रहे हैं !
दरअसल इंदौर विकास प्राधिकरण या देश के कोई भी प्राधिकरण एक ऐसी एजेंसी हे जो विकास के नाम ज़मीनें अवशयकता से अधिक और कानूनी प्रावधानों की अनदेखी कर अधिग्रहण करते आये हैं ,उस पर भूखंड बना हज़ारों गुना मुनाफा कमा कर बेचते भी आये हैं ,सबसे बड़ी बात तो यह की कानूनी प्रावधानों का भी पालन नहीं किया जाता हे इसीलिए जस्टिस अरुण मिश्रा की संवैधानिक पीठ भी अपने निर्णय में कह चुकी की अगर गलती अधिग्रहण करने वाली एजेंसी की होगी तो उसका लाभ किसानों को मिलेगा ,अदालतों को भी हर मामले को सूक्ष्मता के साथ गुण और दोषों का विश्लेषण करना होगा और अब ऐसा होता दिखने भी लगा हे !
कुल मिलाकर दशकों से किसान अपना रोज़गार खोकर परिवार के लालन पालन की जवाबदारी के साथ न्याय पाने में जो धन और अपने जीवन का अनमोल समय अपने ख़त्म कर दिया उसमे न्याय मिलने की आशा की किरण जाग गई हैं जिसमे उसके जीवन का बिता समय तो नहीं आएगा पर उसकी भावी पीढ़ी को न्याय मिल जायेगा।