"उड़ता" प्राधिकरण

प्राधिकरण ने आय बढ़ाने के लिए अब लिया शराब का सहारा

"उड़ता" प्राधिकरण
Indore Development authority

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क इंदौर 

कदम रखना संभलकर महफिल-ए-रिंदा में जाहिद!

यहाँ पगडी उछलती है,इसे मयखाना कहते हैं!!...

 मिर्जा गालिब के  इस शेर को शायद प्राधिकरण समझ नहीं पाया, वैसे तो प्राधिकरण अपनी मर्जी का मालिक भी रहा है और अभी तक उसने कई ऐसे कार्य किये  जो ना तो कानून के दायरे में और ना ही शासन की नीतियों के अंतर्गत थे ! वैसे तो प्राधिकरण का जन्म शहर के मास्टर प्लान की सड़कों को बनाकर शहर का विकास करने के लिए हुआ था लेकिन धीरे-धीरे प्राधिकरण एक सरकारी कॉलोनाइजर बन  कर रह गया !

जमीनों का व्यवसाय (जनहित) करने के लिए उसने किसानों की करोड़ों की जमीन  कौड़ियों के दाम अधिग्रहित कर किसानों का शोषण किया है और आज तक किसान अदालतों में मारा मारा फिर रहा है ! अब  यही  प्राधिकरण किसानों की जमीन पर शराब के ठेके देना शुरू कर रहा है !

जहां मास्टर प्लान में शैक्षणिक संस्थाओं , अस्पतालों ,सिनेमाघर , शॉपिंग मॉल को जमीने देने का प्रावधान है लेकिन उसी मास्टर प्लान में कहीं भी शराब के ठेके के लिए जमीने देने का कहीं कोई उल्लेख नहीं है ! लेकिन अब प्राधिकरण बाकायदा निविदा आमंत्रित कर शराब के ठेके खोलने के लिए जमीन देने को राजी है !

देश की सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार कह चुकी है की जमीनों का अधिग्रहण सिर्फ जनहित के लिए ही किया जा सकता है लेकिन प्राधिकरण ने कितना जनहित शहर में किया है यह पूरा शहर भली भांति जानता है ! अब सवाल यह  उठता है कि जो काम प्राधिकरण अपने जन्म से लेकर अभी तक नहीं कर पाया अब ऐसा क्या हो गया कि जनहित और विकास के मूल उद्देश्य से भटक कर अब शराब बेचने के रास्ते खोल रहा है ?

निश्चित तौर पर कहीं ना कहीं नवनिर्वाचित अध्यक्ष की सोच भी इससे उजागर हो रही है, जहां खुद भारतीय जनता पार्टी के कई वरिष्ठ नेता शराबबंदी की वकालत कर रहे हैं वही नवनिर्वाचित अध्यक्ष शायद उन वरिष्ठ नेताओं की इस बात से इत्तेफाक रखते नहीं दिख रहे ! किसानों से ओने पौने दाम में जमीनों का अधिग्रहण करना उनके रोजगार को छीन लेना और उन्हीं की उस जमीन पर जहाँ पहले अनाज उगा करता था अब  शराब की दुकानें खोल देना इसके पीछे नवनिर्वाचित अध्यक्ष की क्या मंशा है यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा !

बेशक उनकी दलील हो सकती हे की इससे  प्राधिकरण को अतिरिक्त आय होगी लेकिन इस छोटी सी अतिरिक्त आय की तरफ भागना और अपने बेशकीमती लैंड बैंक  (जैसे संक्षिप्त उदाहरण 2 दिन पूर्व ही प्राधिकरण के पूर्व संचालक राजेश उदावत ने  प्राधिकरण की 230 करोड़ की भूमी पर अवैध कब्ज़ा जैसे तथ्यों की और अध्यक्ष का ध्यान आकर्षित करवाया था ) की और ध्यान नहीं देना उचित  प्रतीत नहीं होता हे  ! ना ही शराब की दुकान खोलने को जनहित कहा जा सकता है जो प्राधिकरण का मूल उद्देश्य रहा है , ना ही मास्टर प्लान में  शराब की दुकानें खोलने का कोई प्रावधान आज दिनांक तक मौजूद है इसी का नाम अंधेर नगरी चौपट राजा है!