इंदौर विकास प्राधिकरण को एक बार फिर लगा उच्च न्यायालय से बड़ा झटका

न्यायालयीन प्रक्रिया को खिलवाड़ बनाकर खेलना पड़ा प्राधिकरण को भारी ! उच्च न्यायालय हुआ नाराज ! प्राधिकरण द्वारा लगाई गई अपील पर सख्त होते हुए उच्च न्यायालय ने न सिर्फ अर्थदंड लगाया बल्कि न्यायालय के कीमती समय को बर्बाद करने पर तल्ख टिप्पणी करते हुए यह भी कहा प्राधिकरण की कार्यप्रणाली के कारण ही प्रकरण में बार-बार याचिकाएं दायर होती रही हैं !

इंदौर विकास प्राधिकरण को एक बार फिर लगा  उच्च न्यायालय से बड़ा झटका
high court indore bench
इंदौर विकास प्राधिकरण को एक बार फिर लगा  उच्च न्यायालय से बड़ा झटका

द एक्सपोज लाइव  न्यूज़ नेटवर्क

लक्ष्मी गृह निर्माण सहकारी संस्था और इंदौर विकास प्राधिकरण के बीच चल रहे न्यायालीन विवाद पर प्राधिकरण द्वारा दायर की गई अपील पर उच्च न्यायालय की युगल पीठ ने  ना सिर्फ एकल पीठ  द्वारा पारित निर्णय को सही ठहराया बल्कि और सख्त होते हुए प्राधिकरण और मुख्य कार्यपालिका अधिकारी पर अर्थदंड भी लगाया

 दरअसल मामला  इंदौर विकास प्राधिकरण की योजना ११४  पार्ट १  में समाविष्ट रही लक्ष्मी गृह निर्माण की  लगभग 20 एकड़ भूमि से संबंधित है जिसे प्राधिकरण ने  वर्ष १९८४/८५  में योजना में अधिग्रहित किया था , जिस पर बाद में प्राधिकरण द्वारा संस्था के साथ  वर्ष १९८६ में संकल्प 9 के तहत अनुबंध किया गया और संस्था को योजना अनुरूप निजी विकास करने की अनुमति दी गई ! प्राधिकरण द्वारा कलेक्टर को भूमि का अधिग्रहण नहीं करने हेतु आवेदन भी दिया गया  और कुछ वर्षों बाद प्राधिकरण द्वारा संस्था की कुछ जमीन पर MR 11 का निर्माण किया गया ! बिना अधिग्रहण किए सड़क के मुख्य मार्ग और ग्रीन बेल्ट का निर्माण प्राधिकरण द्वारा संस्था की ३.३९ एकर भूमि पर बिना   मुआवजा दिए कर लिया गया जिसके कारन  संस्था को न्यायालय की शरण में मजबूर होकर जाना पड़ा और न्यायालय ने संस्था की याचिका को समाप्त करते हुए प्राधिकरण को सड़क में शामिल हो चुकी  भूमि का मुआवजा देने के लिए निर्देशित भी किया जिस पर प्राधिकरण ने वर्ष २००९ में लगभग   ६६  लाख का मुआवजा संस्था को दिया !

 वर्ष २०१८ में प्राधिकरण द्वारा संस्था को एक पत्र लिखकर बताया गया की जो मुआवजा प्राधिकरण द्वारा दिया गया है वह ज्यादा भूमि का है क्योंकि जितनी भूमि का मुआवजा दिया गया है उतनी भूमि प्राधिकरण द्वारा इस्तेमाल नहीं की गई है अतः आप लगभग ६ लाख रुपए वापस प्राधिकरण में जमा करें और  लगभग १ करोड़ ३० लाख डेवलपमेंट चार्जेस की मांग भी संस्था से की गई !

 

मामले की छानबीन जब न्यायालय द्वारा की गई तो पता लगा कि जो मुआवजा पूर्व में दिया गया था वह मुआवजा सही था क्योंकि भूमि पर मुख्य मार्ग के अलावा ग्रीन बेल्ट का निर्माण भी कर लिया गया था जिसे प्राधिकरण अपनी याचिकाओं में छुपाता आया था और जिस विकास शुल्क  की मांग प्राधिकरण द्वारा की जा रही थी वह बिना बोर्ड की अनुमति और अधिकार क्षेत्र से बाहर आकर मु.का.अ द्वारा अवेधानिक तरीके से की जा रही हे जिस पर न्यायालय की युगल पीठ द्वारा काफी नाराजगी भी प्रकट की गई !

 

अर्थदंड के अलावा ग्रीन बेल्ट की भूमि पर देना होगा नवीन भूमि अधिग्रहण 2013 के अनुसार मुआवजा ! प्राधिकरण द्वारा विकास शुल्क की मांग को भी किया खारिज !

 

 निर्णय में स्पष्ट किया गया कि प्राधिकरण और मुख्य कार्यपालिका अधिकारी सिर्फ  दंड देना होगा साथ ही लगभग २४०० स्क.मी. भूमि पर ग्रीन बेल्ट बना दिए जाने और मुआवजा नहीं दिए जाने पर प्राधिकरण को नवीन भूमि अधिग्रहण 2013 के अनुसार संस्था को  मुआवजा भी देना होगा  जिसकी कई करोड़ों में होती है

 

पहले भी सर्वोच्च न्यायालय अधिकारियों और सरकारों की कार्यप्रणाली पर कई बार नाराज हो चुका है

 यह कोई पहला मामला नहीं है जिस पर न्यायालय द्वारा सरकारों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाए जा रहे हैं कुछ ही वर्षों पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए तल्ख अंदाज में  सरकारों को चेतावनी दी थी और शक्ति से निर्देश भी दिया था कि जिस  प्रकरण को को सरकार अपने स्तर पर कानून के प्रावधानों के अनुसार निपटा सकती है उसे निपटा लेना चाहिए और कोशिश करना चाहिए कि मामला न्यायालय में ना आए लेकिन ऐसा आज तक नहीं हो पा रहा है

 

जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस अमरनाथ की युगल पीठ ने  दिया निर्णय

 

यह  पहला मौका नहीं है जब उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ द्वारा प्राधिकरण पर सख्त टिप्पणी करते हुए उसके खिलाफ फैसला दिया है इसके पहले भी इंदौर खंडपीठ प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर कई गंभीर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए प्राधिकरण के खिलाफ फैसले पारित कर चुका है , हाल ही में योजना क्रमांक ५९  , टीपीएस ९  और योजना क्रमांक ९४  में प्राधिकरण न्यायालय के सामने मुंह की खा चुका है ! अब प्राधिकरण हर मामले को सर्वोच न्यायलय में घसीटने की तैयारी कर रहा हे ,वैसे अभी हाल ही में प्राधिकरण द्वारा योजना ५९ में दायर की गयी रिव्यु याचिका सर्वोच न्यायलय ख़ारिज कर चूका हे जिसमे प्राधिकरण को २५ करोड़ का मुआवजा ज़मीन मालिकों को देना पड़ेगा !