फिर शुरू वाहनों की चेकिंग, विशेष अभियान 7 जुलाई से 7 सितम्बर तक

भोपाल मुख्यालय से सभी जिलों के पुलिस प्रमुखों को आदेश दिया गया है की इस दौरान सभी वाहनों की लगातार सघन चकिंग की जाये, साथ ही हैलमेट और सीट बेल्ट के उपयोग को भी सुनिश्चित किया जाये, हर जगह सीट बेल्ट और हैलमेट के उपयोग की जागरूकता फैलाई जाये। 

फिर शुरू वाहनों की चेकिंग, विशेष अभियान 7 जुलाई से 7 सितम्बर तक

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने दिए सभी जिलों के पुलिस प्रमुखों को कार्यवाही के आदेश उच्च

न्यायलय के निर्देश के बाद जारी किया गया आदेश, जबलपुर उच्च न्यायालय में याचिका लंबित 

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क, इंदौर।

आदेश भी ठीक है और कार्यवाही भी होना चाहिए, लेकिन कई सवाल एक आमजन के मन में इस आदेश के बाद आने लगे हैं। सबसे पहला सवाल कार्यवाही सिर्फ 2 महीने ही क्यों? समय का जो चयन किया गया है, वो दोनों महीने भारी  बरसात के होंगे। हर जगह वाटर लॉगिंग की समस्या बनी रहेगी। सड़कों पर यातायात का अत्यधिक दबाव पहले ही होगा। उसमे अलग से चेकिंग के नाम पर और समस्या  पैदा होगी।

अगर अत्यधिक वर्षा हो गयी तो पुलिस महकमा आमजन की सुरक्षा में लगेगा। पहले ही पूरे प्रदेश में पुलिसकर्मियों की कमी आम बात हो गयी है। ऐसे में इस तरह की मुहिम की इस समय  समझ के परे है। एक अहम् सवाल यह भी उठता है कि क्या सिर्फ मुहिम अदालत के आदेश के परिपालन में होनी है या वाक़ई प्रदेश की पुलिस  इस ओर संजीदा है या  चुनावी वर्ष है। सरकार  भी किसी तरह का न्यायालयीन  जोखिम नहीं लेना चाह रही है। 

डर पैदा करना भी जरूरी

बेशक हैलमेट और सीट बेल्ट सुरक्षा की दृष्टि से बेहत महत्वपूर्ण है और आमजन को भी इसके महत्त्व को समझना पड़ेगा। सख्ती इनके उपयोग के लिए एक सही कदम है, लेकिन पुलिस को अब इसके उपयोग हेतु  जागरूकता लाने के लिए आमजन में डर भी पैदा करने की ज़रूरत है। इन्शोरेन्स कंपनियां मौत का डर बता कर अपनी पॉलिसियां बेचती हैं। कुछ ऐसी ही रणनीति पर अब पुलिस को सोचने की ज़रूरत है।

जागरुकता की जरूरत अब भी

जहाँ तक बात है चालान बनाने की तो सीट बेल्ट और हैलमेट के उपयोग को भी समझना होगा। चेकिंग पॉइंट्स हर जगह न हो उसको सुनिश्चित करना होगा। जगह-जगह कभी लेफ्ट टर्न या संकरी रोड्स पर चेकिंग पॉइंट्स लगा कर पहले ही चींटी की गति से चलने वाले ट्रैफिक को चेकिंग के नाम पर रोकना जनता के लिए परेशानी ही साबित होगा। सड़क के नियम सिर्फ हैलमेट, सीट बेल्ट, लाइसेंस और इन्शोरेन्स तक ही सीमित नहीं हैं, सड़क पर वाहन को चलाने, गलत साइड से ओवर टेक न करना, सिंग्नल को नहीं तोडना, जल्दबाजी नहीं करना, बेमतलब हॉर्न नहीं बजाना, उलटी दिशा में नहीं चलना, पैदल सड़क पार कर रहे व्यक्ति को सड़क पार कर लेने देना, नियम सड़क पार करने वालों पर भी लागू होते हैं। अक्सर देखा गया है कि जिस तरफ का सिग्नल चालू होता है, आमजन उसी वक़्त गाड़ियों के सामने से सड़क पार करते हैं। ऐसी कई बातें और भी हैं, जिनके लिए जागरूकता फैलाई जाने की सख्त ज़रूरत है।

चालानी कार्रवाई तुरंत और ऑनलाइन हो

चेकिंग पॉइंट्स के विकल्प के तौर पर पेट्रोलिंग का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसमें दो पहिया वाहनों  पर लगातार पुलिस द्वारा पेट्रोलिंग की जाये और ट्रैफिक के नियमों का उल्लंघन करने वालों से बिना बातचीत किये तत्काल एक फोटो खींच चालान  उसके निवास स्थान पर पहुंचा दिया जाये। चालान  की राशि भी ऑनलाइन ले ली  जाये, ताकि किसी भी तरह का कोई समायोजन किसी के भी द्वारा उसमें न हो सके। पहले भी ऐसी व्यवस्था लागू हो चुकी थी, लेकिन इन्हीं सब बातों के चलते सुचारू रूप से नहीं चल पायी। अगर उसमे कानून बदलने की ज़रूरत हो तो वो भी किया जाये।  

सख्ती की जरूरत शहर के बजाय हाईवे पर

ट्रैफिक नियमों के सबसे ज़यादा धज्जियाँ राजमार्गों पर उड़ाई जाती हैं, पिछले कुछ वर्षों में हादसे भी यही सबसे ज़यादा हुए हैं। नशे की हालत में युवा अपने हाथ आजमने भी इन्ही राजमार्गों पर अक्सर देखे जाते हैं। इन्ही राजमार्गों पर सख्त पेट्रोलिंग की भी ज़रूरत अब शहर की मांग है न कि पलासिया, सियागंज, विजय नगर, रैडिसन, भंवरकुंवा जैसे अति व्यस्ततम चौराहों पर। दुनिया के व्यस्ततम यातायात वाले शहर लंदन और न्यूयार्क के यातायात प्रबंधन को समझ यहाँ आज़माना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। आर्टिफीसियल इंटेलेजन्स का इस्तेमाल भी इस हेतु किया जा सकता है।

ट्रैफिक नियम पर सख्ती अब समय की मांग

यातायात के नियम सख्ती से पालन होना अब शहर की ज़रूरत हो चुकी है। पुलिस विभाग को भी अब ट्रैफिक को सूक्ष्म तरीके से समझने की ज़रूरत है। सुरक्षा और यातायात के नियम दोनों के लिए जागरूकता ज़रूरी है। पुलिस, निगम और जिला प्रशासन के बीच ट्रैफिक को ले कर बेहतर तालमेल के ज़रूरत को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।

  • अतुल सेठ, आर्किटेक्ट-इंदौर