कृष्णबाग (न्याय नगर) में रिमूवल की कार्रवाई: महिला ने किया आत्महत्या का प्रयास, भूमाफिया पर नहीं हुई कोई कार्रवाई
कृष्णबाग न्याय नगर के सेक्टर सी में रिमूवल कार्रवाई के दौरान प्रशासन ने 124 मकानों को ध्वस्त करने की प्रक्रिया शुरू की, जिसके बाद एक महिला ने आत्महत्या का प्रयास किया। इससे क्षेत्र के लोग आक्रोशित हो गए और उन्होंने रिमूवल टीम पर पथराव कर दिया। यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद की जा रही है, जो कि श्री राम बिल्डर्स की याचिका पर 24 साल के संघर्ष के बाद आया है। अब सवाल यह उठता है कि दोषी कौन है: भूमाफिया, जिन्होंने भोले-भाले लोगों को धोखे में रखकर अवैध प्लॉट बेच दिए; क्षेत्रीय रहवासी, जिन्होंने चुपचाप यह सब होने दिया; या फिर जिला प्रशासन, जो इन सब पर मूकदर्शक बना रहा?
द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क, इंदौर
कृष्णबाग न्याय नगर के सेक्टर सी खसरा नंबर 62 में रिमूवल की कार्रवाई के दौरान शुक्रवार सुबह एक महिला ने आत्महत्या का प्रयास कर लिया। यह घटना तब हुई जब प्रशासन ने भारी पुलिस बल और 40 पोकलेन मशीनों के साथ अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया शुरू की। यह कदम सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद उठाया गया।
महिला के आत्महत्या प्रयास के बाद क्षेत्रीय रहवासी उग्र हो गए और उन्होंने रिमूवल अमले पर जमकर पथराव कर दिया। इस दौरान पुलिस को स्थिति संभालने में काफी मशक्कत करनी पड़ी।
दोषी कौन?
इस पूरे प्रकरण में दोष किसका है, यह सवाल सबके मन में उठ रहा है। क्या दोषी वे भूमाफिया हैं जिन्होंने भोले-भाले लोगों को नोटरी पर प्लॉट बेच दिए? या फिर वे क्षेत्रीय रहवासी जिन्होंने इन भूमाफियाओं के खिलाफ आवाज नहीं उठाई और खुद को धोखे में डाल लिया?
दोष जिला प्रशासन का है या सरकारी विभागों का जिन्होंने इन अवैध निर्माणों को अपनी आंखों के सामने होते देखा और कोई कार्रवाई नहीं की। विद्युत विभाग ने बिजली कनेक्शन भी दे दिए और नगर निगम ने प्रॉपर्टी टैक्स भी वसूलना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, प्राइवेट बैंकों ने भी लोन की सुविधा मुहैया कराई।
इंदौर विकास प्राधिकरण ने योजना तो लागू कर दी, लेकिन उसे कभी पूरा नहीं किया। इस पूरी समस्या की जड़ में आखिर कौन है?
भूमाफियाओं पर कार्रवाई का अभाव
हालांकि, इस मामले में जिला प्रशासन ने अब तक उन भूमाफियाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है, जिन्होंने भोले-भाले लोगों को किसी और की जमीन पर प्लॉट बेच दिए। ये भूमाफिया शहर में अपनी कारगुजारियों के लिए कुख्यात हैं और शासन प्रशासन में उनकी गहरी पैठ भी है।
स्थानीय रहवासियों का कहना है कि भूमाफिया द्वारा उन्हें धमकाया गया था कि "अगर तुम लोग मेरे खिलाफ कुछ बोल भी दोगे तो मुझे जेल हो जाएगी और उसके बाद तुम्हें बचाने वाला कोई नहीं होगा।"
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद लोगों ने बहुत दौड़-धूप की, लेकिन विधि विशेषज्ञों की राय है कि इस निर्णय के बाद न्यायालय से कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है। कुछ रहवासियों ने स्थगन के जरिए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया है, जिसकी सुनवाई आगामी 6 अगस्त को होनी है, लेकिन उसमें भी ज्यादा उम्मीद नहीं की जा रही है। जिला प्रशासन यदि चाहे तो इन भूमाफियाओं की संपत्ति कुर्क कर पीड़ित रहवासियों को मुआवजा दिलवा सकता है।
खजराना में अवैध कॉलोनियों का जाल
खजराना के पटेल नगर, ताज नगर जैसी कई कॉलोनियां आज सरकारी जमीन पर बस चुकी हैं। यहाँ अवैध रूप से प्लॉट की खरीद-फरोख्त का काम धड़ल्ले से जारी है। निजी बिल्डर न्यायलयीन लड़ाई लड़कर जीत रहे हैं, लेकिन प्रशासन पूरी जानकारी होते हुए भी कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है और न ही न्यायालय में अपना पक्ष मजबूती से रख रहा है।
इंदौर के क्षेत्रीय रहवासी और संबंधित अधिकारी अब यह सोचने पर मजबूर हैं कि क्या प्रशासन को सिर्फ अपनी जमीन की चिंता है और लोगों की जिंदगी का कोई मोल नहीं? आखिर कब तक ऐसे भूमाफिया बेखौफ होकर जनता को छलते रहेंगे और प्रशासन मौन दर्शक बना रहेगा?