किसान न्याय यात्रा या कांग्रेस पुनर्जीवित यात्रा?

भूमि अधिग्रहण का मुद्दा नहीं उठाकर कहीं कांग्रेस का बीजेपी द्वारा सीमेंट के जंगल उगाने वाले अभियान को मोन सहमति तो नहीं ?

किसान न्याय यात्रा या कांग्रेस पुनर्जीवित यात्रा?

द एक्सपोज़ लाइव न्यूज़ नेटवर्क : मध्यप्रदेश में कांग्रेस द्वारा आयोजित "किसान न्याय यात्रा" को लेकर हाल ही में राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा हो रही है। इस यात्रा का उद्देश्य किसानों के अधिकारों के लिए लड़ना और कृषि क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का समाधान ढूंढना बताया जा रहा है। लेकिन जब यात्रा की बारीकी से जांच की जाती है, तो यह सवाल खड़ा होता है कि क्या यह वास्तव में किसानों के न्याय के लिए है या कांग्रेस की खुद को पुनर्जीवित करने की कोशिश? यह सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि हाल ही में भारतीय किसान संघ ने अपने ज्ञापन में अन्य कृषिगत मुद्दो के साथ मुख्य रुप से कृषि योग्य भूमियों के विनाशक इंदौर विकाश प्राधिकरण को भंग करने और आवश्यकता विहीन रिंग रोड के निर्माण का पुर जोर विरोध किया था 

मध्यप्रदेश: कृषि क्षेत्र का विश्लेषण

मध्यप्रदेश की कुल जनसंख्या का 74% कृषि पर निर्भर है। प्रदेश की 49.43% भूमि सिंचित है, जो राज्य को देश में सिंचित भूमि के मामले में चौथे स्थान पर रखती है। राज्य को अक्सर "सोया प्रदेश" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहाँ सोयाबीन की खेती प्रमुख रूप से होती है। यह आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि राज्य की अर्थव्यवस्था और आजीविका में कृषि की केंद्रीय भूमिका है।

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष, जो खुद एक समृद्ध किसान हैं, का नेतृत्व इस यात्रा को और प्रासंगिक बनाता है। हालांकि, यह सवाल उठता है कि केवल 26% जनसंख्या के लिए सिंचित भूमि का हिस्सा क्यों घटाया जा रहा है, जबकि प्रदेश की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है?

न्याय यात्रा के उद्देश्य पर सवाल

यात्रा का उद्देश्य भले ही किसानों के लिए न्याय की मांग करना हो, लेकिन कुछ प्रमुख मुद्दे इस यात्रा से गायब दिख रहे हैं। जैसे कि, कृषि को उद्योग का दर्जा देने की बात – यह एक ऐसा मुद्दा है जो लंबे समय से कृषि विशेषज्ञों द्वारा उठाया जा रहा है, ताकि किसानों को आर्थिक सुरक्षा मिल सके और उनकी आय में वृद्धि हो सके। लेकिन इस यात्रा में इस पर कोई ठोस चर्चा नहीं दिख रही है।

केंद्रीय कृषि मंत्री, जो खुद मध्यप्रदेश के एक समृद्ध किसान हैं, का भी इस मुद्दे पर चुप्पी सवालों को और गहरा करती है। क्या सरकार की मौन सहमति इस बात की ओर इशारा करती है कि कृषि क्षेत्र को घटाकर उद्योगों की स्थापना की जा रही है? क्या प्रदेश में ‘सीमेंट का जंगल’ बनाने की नीति को लेकर कांग्रेस का कोई विरोध नहीं है?

राजनीतिक रणनीति या असली मुद्दे?

कांग्रेस की किसान न्याय यात्रा एक ऐसे समय में हो रही है जब पार्टी अपनी राजनीतिक जमीन खो रही है। यात्रा को किसान हितैषी मुद्दों के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, लेकिन इसके पीछे की राजनीति स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यात्रा का उद्देश्य किसानों की समस्याओं को उठाना तो है, लेकिन इसमें कई बुनियादी मुद्दों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।

मुख्यत: कृषि क्षेत्र में सिंचाई व्यवस्था का सुधार, किसानों को समय पर और उचित समर्थन, और कृषि को उद्योग का दर्जा देने जैसे मुद्दे इस यात्रा से पूरी तरह गायब हैं। यह सवाल उठता है कि कांग्रेस क्या वास्तव में किसानों के हित में काम कर रही है या यह केवल आगामी चुनावों के लिए एक राजनीतिक कदम है?

किसान न्याय यात्रा में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि कांग्रेस किसानों के साथ है, लेकिन यह यात्रा कहीं अधिक कांग्रेस की खुद को पुनर्जीवित करने की कवायद लगती है। कांग्रेस को यदि वास्तव में किसानों का समर्थन चाहिए, तो उन्हें असली मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा, न कि केवल राजनीतिक यात्रा के रूप में इसे प्रस्तुत करना।

"किसान न्याय यात्रा" के नाम पर किसानों के मुद्दों को उठाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इसमें कई बुनियादी और आवश्यक मुद्दों का अभाव है। भारतीय किसान संघ के अलावा कई अन्य किसान संघ भूमि अधिग्रहण को हथियार बना कर ज़मीन हड़पने वाले विकास प्राधिकरण को भंग करने की मान दिल्ली तक कर रहे हैं ,लेकिन कांग्रेस ने इस मुद्दे को भी अनछुआ ही रखा ! इंदौर शहर के आस पास प्राधिकरण द्वारा लायी जा रही गैरज़रूरी योजना का लगातार किसान विरोध कर रहे हैं लेकिन प्रदेश अध्यक्ष खुद इंदौर के होते हुए भी मुद्दे से अनभिज्ञ प्रतीत हो रहे हैं !  यात्रा को केवल एक राजनीतिक रणनीति के रूप में देखना न केवल किसानों के लिए हानिकारक हो सकता है, बल्कि कांग्रेस की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है। अगर कांग्रेस को किसानों के दिलों में जगह बनानी है, तो उन्हें वास्तविक मुद्दों पर ईमानदारी से काम करना होगा, न कि केवल चुनावी रणनीतियों का सहारा लेना।