बंद होना चाहिए उपहारों (FREEBIES ) की खैरात
राजनैतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार (रेवड़ी) बांटने की परम्परा रोकने के लिए सख्त कानून बनाने की ज़रूरत है। पूरे देश में आज एक ज्वलंत मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है। आग में घी तब डल गया जब प्रधानमंत्री मोदी ने मुफ्त उपहार बांटने को रेवड़ी नाम दिया और बिना किसी का नाम लिए दिल्ली सरकार की मुफ्त बिजली, मुफ्त शिक्षा और मुफ्त इलाज देने की घोषणा पर सवाल उठा डाले। आज देश के बुद्धिजीवी भी इस बहस में कूद पड़े और कूदना लाज़मी भी है, क्यूंकि देश के सीमित संसाधनों को इस तरह फ्री में बांटना कहीं न कहीं देश की जनता के साथ धोखा भी है।
आज राजनीतिक दलों और सरकारों द्वारा प्रदान किए जाने वाले मुफ्त उपहारों को रोकने के लिए कानून का बनना एक संभावना है, लेकिन कई महत्वपूर्ण बातें हैं, जिनका विशेष ध्यान भी रखना होगा जैसे कानूनी ढांचा, राजनीतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और एक लोकतांत्रिक समाज में सरकार की भूमिका।
कानूनी ढांचा और संवैधानिकता
राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहारों को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से किसी भी कानून को देश के संवैधानिक प्रावधानों का पालन करने की आवश्यकता होगी। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इस तरह के कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करें, जिसमें संविधान द्वारा भाषण, संघ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शामिल है।
परिभाषा और दायरा
कानून को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता होगी कि "फ्रीबी " क्या है और इसकी प्रयोज्यता की सीमाएं निर्धारित करें। इससे न सिर्फ अस्पष्टता से बचा जा सकेगा बल्कि इसके क्रियान्वन में निरंतरता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। अक्सर देखने में आया हे की कई सरकारें कर्ज लेकर ऐसी फ्रीबी दे दिया करती हे, ऐसा नहीं हे की इस और अभी तक कोई कानून नहीं बना,वर्ष 2003 में राजकोषीय ज़िम्मेदारी और बजट प्रबंधन ( FRBM) एक्ट लागु किया गया था जिसके तहत कोई भी सरकार उसकी सरकारी संस्थाओं के माध्यम से उसके सकल घरेलु उत्पाद का 3% से ज़याद कर्ज नहीं ले सकती,लेकिन आज सरकारें अपनी PSU और अर्धशासकीय संस्थान के माध्यम से ज़यादा कर्ज ले रही हैं जो तय सीमा से कहीं अधिक हो रहा हे ,ऐसे में ज़रूरी हे की PSU और अर्धशासकीय संस्थान को भी FRBM के दायरे में रखे जाने की आवश्यकता हे ताकि वित्तीय अनुशासन बना रहे और देश के प्रत्येक नागरिक पर कर्ज की सीमा भी अपने दायरे में रहे।
प्रवर्तन और दंड
कानून को लागू करने के लिए प्रभावी तंत्र स्थापित करना और गैर-अनुपालन के लिए दंड लगाना महत्वपूर्ण होगा। इसका उचित क्रियान्वन सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त संसाधन, निगरानी प्रणाली और निष्पक्ष निरीक्षण की आवश्यकता होगी।
जनता की भावना और राजनीतिक इच्छाशक्ति
इस तरह के कानून की व्यवहार्यता और स्वीकृति,प्रचलित सार्वजनिक भावना और इस मुद्दे को हल करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगी। यदि परिवर्तन के लिए अपर्याप्त सार्वजनिक मांग है तो राजनीतिक दल विरोध कर सकते हैं या कानून को दरकिनार करने के तरीके खोज सकते हैं।
लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर प्रभाव
संसाधनों के दुरुपयोग को रोकने और निष्पक्ष और प्रतिस्पर्धी चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित करने के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है। अगर कोई राजनैतिक दल चुनाव ऐसी फ्रीबी की घोषणा करता हे तो उसको लिए लगने वाली राशि के स्रोतों का भी उलेख करना अनिवार्य होना चाहिए,अगर क़र्ज़ लेकर घी पिने की निति पर कोई राजनैतिक दल चुनाव लड़ता हे और जनता को फ्रीबी का लालच देता हे तो इसे हतोऊत्साहित किया जाना चाहिए।
केवल कानून पर निर्भर रहने के बजाय, राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहारों के मुद्दे को संबोधित करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें मुफ्त उपहारों के परिणामों के बारे में मतदाताओं के बीच जागरूकता बढ़ाना, जिम्मेदार शासन को प्रोत्साहित करना और अभियान के वित्तपोषण में पारदर्शिता को बढ़ावा देना शामिल है। इसमें जवाबदेही और नागरिक भागीदारी की संस्कृति को बढ़ावा देना भी शामिल है, जहां मतदाता अल्पकालिक लाभों के बजाय पार्टी की व्यापक दृष्टि और नीतियों के आधार पर उचित विकल्प चुन सके ।
आखिरकार, मुफ्त उपहारों को विनियमित करने और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने के बीच सही संतुलन बनाना एक जटिल चुनौती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कानूनी, संवैधानिक और सामाजिक कारकों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है कि कोई भी उपाय प्रभावी, निष्पक्ष और लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुरूप ही होना चाहिए ।
इस आलेख को श्री अजय व्यास, पूर्व कार्यपालक निदेशक, यूको बैंक ने लिखा है। अजय व्यास का बेंकिग में महत्वपूर्ण पदों पर 35 साल का अनुभव है एवं वे राष्ट्रीय, सामाजिक और वित्तीय समस्याओं पर सटीक, बेबाक बातचीत कर विचार रखते हैं।