आईडीए ने सुप्रीम कोर्ट को दिया झूठा शपथ-पत्र, किसान ने आईडीए को भेजा नोटिस

वर्षों से प्राधिकरण द्वारा गलत तरीके से इंदौर की पूर्वी रिंग रोड बनाने के लिए अधिग्रहण की जा चुकी शहर के 7 गांव (निरंजनपुर, पीपलियाकुमार, खजराना, पीपल्याहाना, मूसाखेड़ी, चितावद पीपलियराव) की, भूमियों पर मुआवज़ा नहीं मिलने और अधिग्रहण की प्रक्रिया विधिसम्मत नहीं होने से लड़ाई लड़ रहे किसानों के साथ एक बार फिर इंदौर विकास प्राधिकरण ने धोखा किया है।

आईडीए ने सुप्रीम कोर्ट को दिया झूठा शपथ-पत्र, किसान ने आईडीए को भेजा नोटिस
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योजना 94 में उच्च न्यायलय में लंबित याचिका को निराकृत बता सर्वोच्च न्यायलय को किया गुमराह

सीईओ और भूअर्जन अधिकारी को दिया गया धारा 340 के तहत नोटिस, अधिकारियों में मचा हड़कंप

द एक्सपोज लाइव न्यूज नेटवर्क, इंदौर।

आईडीए की इस धोखाधड़ी के खिलाफ एक किसान ने आईडीए को नोटिस भेजा है। एडवोकेट दुर्गेश शर्मा के जरिए यह नोटिस एडिशनल कलेक्टर नरेंद्रनाथ पांडे (तत्कालीन भूअर्जन अधिकारी आईडीए), एडिशनल एमडी एमपी टूरिज्म बोर्ड विवेक श्रोत्रिय (तत्कालीन सीईओ आईडीए) और आईडीए सीईओ रामप्रकाश अहीरवार को भेजा गया है।

इस नोटिस में कहा गया है कि आईडीए ने सुप्रीम कोर्ट में गलत शपथ पत्र देकर न्यायलय की अवमानना की है साथ ही सीआरपीसी की धारा 340 के तहत अपराध भी किया है। नोटिस में मांग की गई है कि नोटिस मिलने के साथ दिन के भीतर सिविल अपील 10135/2014 को वापस ले लें, नहीं तो किसान की तरफ से उक्त अफसरों के खिलाफ कानूनी और न्यायलयीन प्रक्रिया के तहत सिविल और क्रिमिनल आरोपों के तहत कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इस पूरी प्रक्रिया के हर्जे-खर्चे के जवाबदार भी उक्त अफसर ही होंगे।

क्या है पूरा मामला..?

दरअसल योजना में अधिग्रहण को ले कर समय-समय पर कभी शासन ने भूमियों को छोड़ा तो कभी प्राधिकरण स्तर पर फैसले लेते हुवे प्राधिकरण बोर्ड द्वारा भूमियों को छोड़ा गया। इसी क्रम में वर्ष 2009 में हाई कोर्ट इंदौर ने डबल बेंच में किसानों के पक्ष में यह निर्णय दिया कि जिस तरह प्राधिकरण बोर्ड द्वारा संकल्प 393, दिनांक 3/10/2003 को बालाराम मुकाती की भूमि जिन शर्तों पर छोड़ी है, उन शर्तों पर इन किसानों की भूमियों को 6 माह में मुक्त करो।

इस आदेश की एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि कोर्ट ने लिख दिया कि भूमियों का अवॉर्ड 2 साल की समय सीमा के बहार है, जो प्राधिकरण की सबसे बड़ी विधिक उलझन है। इस आदेश को प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। प्रकरण के विचाराधीन रहते वर्ष 2014 में नवीन भूमि अधिग्रहण लागू होने से सुप्रीम कोर्ट ने 11/11/2014 और 5/12/2014 को धारा 24 के तथ्यों को निराकृत करने के आदेश दे दिए। जिससे याचिकाओं का स्वरुप भी बदल गया और बात सिर्फ मुआवज़े और भौतिक कब्ज़े तक सीमित रह गयी।

रिंगरोड के अलावा सारी जमीनें मुक्त करने का है आदेश

वर्ष 2014 में चूँकि सभी याचिकाएं सर्वोच्च न्यायलय में 1894 भूमि अधिग्रहण के प्रावधानों के अनुसार एवम् बोर्ड संकल्प 393, जो बालाराम मुकाती के संदर्भ में पारित हुआ था, को चुनौती देते हुए लंबित थीं। सभी याचिकाओं में नवीन भूमि अधिग्रहण 2014 की धारा 24 के प्रावधानों का लाभ लेने के लिए संशोधन कर दिया गया, जिस पर सर्वोच्च न्यायलय ने सभी किसानों को प्रावधानों में उल्लिखित दो बातें "कब्ज़ा और मुआवज़ा" की स्थिति पर उच्च न्यायलय में याचिका प्रस्तुत करने का आदेश पारित किया।

यही याचिकाएं 10 मार्च 2022 को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ द्वारा यह कहते हुए निराकृत कर दी गयीं कि राज्य शासन वर्ष 1996 में एक आदेश के द्वारा योजना 94 में ही एक याचिकाकर्ता के लिए प्राधिकरण को रिंग रोड के अलावा अधिग्रहित की जा चुकी जमीन भी छोड़ने का आदेश दे चूका है। इसलिए अदालत बाकि याचिकाकर्ताओं को भी राज्य शासन के उक्त आदेश का लाभ देता है।  याचिकाकर्ता चाहें तो राज्य शासन के पास जा कर उक्त आदेश के अनुसार रिंग रोड के अलावा अधिक अधिग्रहित की जा चुकी भूमियों को मुक्त करने का आवेदन लगा सकता है।

किसानों को बंधी थी उम्मीद

इसका मुख्य कारण था कि WP 4328/2014 के अधिवक्ता ने धारा 24 के तथ्यों पर बहस करने से मना कर दिया था। फलस्वरूप लगभग सभी याचिका उसी अभिमत पर निराकृत कर दी गईं थीं। इसलिए अभी उनमें से सिर्फ 3 याचिकाओं को छोड़कर सभी WA के रूप में इंदौर हाई कोर्ट में पेंडिंग हैं। आईडीए विरूद्ध मनोहरलाल के आदेश आने के बाद, कम से कम प्राधिकरण की योजना 94 के जो किसान कोर्ट लंबी लड़ाई लड़ रहें है, उसमे उनको अभी तक की सर्वाधिक उम्मीद जाग गई थी कि संवैधानिक पीठ के इस निर्णय के बाद उनको न्याय अवश्य मिलेगा। किसी का अधिग्रहण निरस्त होगा, तो किसी को अधिनियम 2013 के अनुसार मुआवजा मिलेगा।

और आईडीए ने कर दिया खेल

आईडीए यह तथ्य भली-भांति जानता है, इसलिए उसने किसानों को नुकसान पहुंचाने के लिय सुप्रीम कोर्ट में हारने के बाद, जो याचिकाएं वर्ष 2014 से पेंडिंग थीं, उनको रिवाईव करवा दीं, मगर सुप्रीम कोर्ट को यह नहीं बताया कि कोर्ट के वर्ष 2014 के आदेश से जो याचिका इंदौर हाई कोर्ट गईं हैं, उसमे से अधिकांश में WA में पड़ी हैं, साथ ही दो याचिकाएं जबलपुर में लंबित हैं। दरअसल प्राधिकरण के ही दस्तावेजी साक्ष्य यह बताते हैं कि संवैधानिक पीठ के निर्णय के बाद हाई कोर्ट से किसानों को लाभ मिलना तय है। इसलिए समय पूर्व सत्य छुपाकर वहां सिविल अपील रिवाइव कर लेंगे तो उसमें कम से कम बालाराम मुकाती के आदेश को यथावत रहने से प्राधिकरण को उसकी शर्तों के अनुसार पैसा और 25 वर्षों की लीज का पैसा मिल जाएगा।

होल्कर वारिस की मौत के 23 साल बाद उनसे कब्जा ले आया आईडीए

प्राधिकरण के रिकॉर्ड से ही पता चलता है की प्राधिकरण ने मुआवजा राशि समय पर जमा नहीं की और भौतिक कब्जा रसीद ऐसी निर्मित की है कि इंदौर महाराज साहब श्री यशवंतराव की बेटी राजकन्या सावित्री बाई, जिनकी मृत्यु वर्ष 1968 में हो गईं थी, उनसे इन्होंने 7/6/1991 को कब्जा ले लिया। वहीं रिंग रोड का निर्माण बिना विधिक कब्जा प्राप्त किए किया गया है, क्योंकि खजराना से पिपलियाकुमार तक रोड़ बनाने की स्वीकृति 19/3/1991 को दे दी थी, जबकि खजराना का अवार्ड 20/3/1991 को पारित किया। इसका कार्यादेश 8/4/91 को जारी किया था। जबकि अवॉर्ड की मुआवजा राशि का पार्ट पेमेंट भी 7/5/1991 को जमा किया था।

कोर्ट में झूठे तथ्य पेश किए

अब जब वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायलय द्वारा धारा 24 के प्रावधानों के अनुसार याचिका लगाने और उस पर धारा 24 को नहीं सुनते हुए इंदौर उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1996 में राज्य शासन द्वारा पारित आदेश का लाभ किसानों को 10 मार्च 2022 को दे चूका है। प्राधिकरण द्वारा यही फैसला अपने पक्ष में नहीं आने की वजह से प्राधिकरण द्वारा रिवाइवल पिटीशन लगा दी गयी, ताकि किसान उसका लाभ न ले सकें। लेकिन जिन किसानों को ले कर यह याचिका लगायी गयी है, उसमे आलम नायता का भी नाम लिख दिया गया, जबकि उस पर निर्णय आना अभी बाकि है।   

किसानों पर डाला आर्थिक बोझ

प्राधिकरण के अधिकारियों ने तो झूठे दस्तावेज लगाकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका रिवाइवल करा दी, लेकिन इसका खामियाजा पिछले 40 साल से अपने हक की लड़ाई लड़ रहे किसानों को चुकाना पड़ रहा है। जबलपुर हाई कोर्ट में वकीलों की फीस और अब सुप्रीम कोर्ट के वकीलों की भारी-भरकम फीस, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता की फीस हर पेशी पर लाखों की होती है। इतनी मोटी फीस वहन करना प्राधिकरण के लिए मामूली बात है, लेकिन किसानों के लिए नहीं। पर किसानों के अधिवक्ताओं की सतर्कता और किसानों की साक्षरता और शासन व प्रशासनिक अधिकारी, जो सत्य के साथ खड़े होते हैं, इन्होंने प्राधिकरण के उन अधिकारियों की नीद उड़ा दी है, जो विधिक कार्य रिकॉर्ड में उपलब्ध दस्तावेजों से पृथक करते हैं।