योजना 94 में किसानों को मिली जीत, आईडीए नहीं ले पाएगा जमीनें

वर्ष 1992 से ही कई किसानों ने योजना 94 (रिंग रोड और उसके आसपास की भूमियों) की वैधता को चुनौती देते हुए अदालत में याचिकाएं दायर कर रखी थी, तभी से मामला अदालत में लंबित रहा था। जिस पर 10 मार्च को जस्टिस विवेक रूसिया ने किसानों के पक्ष में निर्णय देते हुए लड़ाई का अंत किया।

योजना 94 में किसानों को मिली जीत, आईडीए नहीं ले पाएगा जमीनें
ida indore

30 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई का किसानों के पक्ष में अंत

मामला योजना 94 में लगी 12 याचिकाओं में कोर्ट के निर्णय का

द एक्सपोज लाइव न्यूज़ नेटवर्क, इंदौर। Indore News.

दरअसल किसान रिंग रोड के आसपास अधिग्रहित की गयी भूमि के अधिग्रहण को इस आधार पर चुनौती दे रहे थे कि रिंग रोड के लिए भूमियां ली जा चुकी हैं, इसलिए अधिक भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाना चाहिए और भूमियों का अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देशय के लिए अगर किया जाता है तो किसान उसका कभी विरोध नहीं करता।

वहीँ प्राधिकरण ने अधिक भूमियों का अधिग्रहण रिंग रोड की लागत निकालने हेतु किया था। साथ ही जहाँ किसानों को 1 रु वर्ग फ़ीट का मुआवज़ा दिया गया था। पर रिंग रोड के आसपास प्राधिकरण प्लाट ही कई हज़ार अधिक गुना रेट में बेचता आया है, जो लागत से हज़ारों गुना अधिक है।

मुक्त कर चुका कई भूमियां

एक और तथ्य यह भी था कि अधिग्रहण हो चुकी कई भूमियां प्राधिकरण योजना से मुक्त भी कर चुका था। ऐसे ही एक मामले में नवलखा गृह निर्माण सहकारी संस्था की भूमि भी शासन योजना से वर्ष 1996 में मुक्त कर चुका था। वहीँ एक मामले में प्राधिकरण 200 वर्ग फ़ीट भूमि को 209 रु. विकास शुल्क ले कर भी मुक्त कर चुका था और प्राधिकरण के इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायलय में चुनौती भी दे जा चुकी है, जिस पर निर्णय अभी आना बाकी है।

आठ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश

सर्वोच्च न्यायलय ने वर्ष 2014 में योजना 94 के समस्त मामलों में स्पष्ट आदेश इंदौर उच्च न्यायलय को देते हुए सभी प्रकरणों को धारा 24(2) में निपटाने हेतु निर्देशित किया, जिसे अदालत ने अस्वीकार करते हुए सभी किसानों को वर्ष 1996 के शासन के आदेश के आधार पर आसपास की भूमियों को मुक्त करने के लिए आवेदन लगाने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी थी। न्यायलय ने 24(2) पर सुनवाई नहीं करने कारण वरिष्ठ अधिवक्तओं (एके सेठी) द्वारा बहस करने से इंकार कर देना बताया। वहीँ वरिष्ठ अधिवक्ता अमित अग्रवाल के साथ अनुज भार्गव के साथ गिने चुने अधिवक्तओं ने ही धारा 24(2) पर अदालत में बहस की।

योजना से कई भूमियां पहले ही मुक्त की जा चुकी हैं

  • वर्ष 2004 में बालाराम मुकाती की 200 फ़ीट अतिरिक्त भूमि रु 209 का विकास शुल्क ले कर प्राधिकरण द्वारा मुक्त की गयी।
  • आपसी समझौते से प्राधिकरण द्वारा योजना 94 में मुक्त की गयी भूमियां
    • राजेश मंगल ( गीता गृह निर्माण ) लगभग 14 एकड़ 
    • रामेश्वर दयाल लगभग 16 एकड़ 
    • कुसुम कुंवर (स्नेह नगर गृह निर्माण ) लगभग 10 एकड़ 
    • संतोष पिता छीतर लगभग 4 हेक्टयर 
    • मयूर गृह निर्माण लगभग 4 हेक्टयर
  • 1996 को नवलखा गृह निर्माण की अतरिक्त भूमि बिना विकास शुल्क लिए राज्य शासन द्वारा मुक्त कर दी गयी।

हमेशा कानूनी लड़ाई में उलझाता रहा प्राधिकरण

यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह भी है कि जब जब शासन और न्यायालय द्वारा भूमियां मुक्त की गयीं, तब तब प्राधिकरण द्वारा अदालती लड़ाई में मामला उलझाया जाता रहा और खुद के द्वारा मुक्त की गयी भूमियों पर हमेशा मौन धारण किये रहता है। इसी प्रकार अभी आये निर्णय में जिस राज्य शासन के आदेश 24/8/1996 का हवाला दे कर किसानो को रिलीफ दी गयी है, प्राधिकरण द्वारा उसे भी न्यायलय में चुनौती दी जा रही है और सर्वोच्च न्यायलय का निर्णय अभी भी अपेक्षित है। 

प्राधिकरण के लिए अभी कठिन है डगर पनघट की 

बेशक प्राधिकरण का राजनैतिक बोर्ड मामले में आये निर्णय का बिना पढ़े और समझे श्रेय खुद ले रहा है, लेकिन प्राधिकरण के अधिकारी विगत 1 साल से ही मामले को जल्द निपटाने के प्रयास कर रहे थे और अब कुछ भी हाथ नहीं लगने से काफी निराश भी हैं। वहीँ किसानों और भूस्वामियों में एक बड़ी उम्मीद जगाने से काफी हर्ष का माहौल है और अदालत के निर्णय का खुले मन से स्वागत भी कर रहे हैं।

किसानों की पीड़ा को किसी ने तो समझा

बेशक 24/2 पर जस्टिस रूसिया की एकल पीठ ने कोई अनुतोष याचिकाकर्ता को नहीं दी, जिन्होंने सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के अनुक्रम में वर्ष 2015 में याचिका प्रस्तुत की थी और और बदली हुई परिस्थिति 6 मार्च 2020 की संवैधानिक पीठ के निर्णय के अनुक्रम में भी अनुतोष चाहा गया था। यह आगे तय होगा, पर उन्होंने किसानों की पीड़ा और दर्द को समझते हुवे जाने अनजाने संविधान के आर्टिकल 14 का लाभ अवश्य प्रदान कर दिया, जो न्याय व्यव्स्था की श्रेष्ठता को दर्शाता है।

पहले शासन से अनुतोष मांगें

दूसरी ओर उन्होंने 24 अक्षरों के शासन के आदेश पर यह भी स्वतंत्रता याचिकाकर्ताओं को दे दी कि अगर आपने शासन से इस आदेश के अनुक्रम में कोई अनुतोष नहीं मांगी है, तो पहले आप मांगे और अगर शासन नहीं देता है, तो आप याचिका के माध्यम से न्यायालय में आ सकते हैं। वहीं दूसरी ओर उन्होंने यह भी कहा की अगर उपरोक्त आदेश को चुनौती देते हुए कोई याचिकाकर्ता पहले ही युगल पीठ के समक्ष याचिका प्रस्तुत कर चुका है, तो वह इस न्यायालय में अवमानना याचिका दायर कर न्याय पा सकता है।